अब खैर नहीं हनुमान की; पॉलिटिक्स में एंट्री ली है तो कुदृष्टि पड़नी ही है ! 

अचानक हनुमान ख़ास हो गए !  जिस नेता को देखो वो हनुमान को लपक रहा है ! अजब गजब सी स्थिति है ; आलम कुछ ऐसा है कि बजरंग बली को कहना पड़ रहा है - छोड़ते भी नहीं मेरा हाथ और थामते भी नहीं ; ये कैसी मोहब्बत है उनकी, गैर भी नहीं कहते हमें और अपना मानते भी नहीं ! 

हनुमान भी गदगद हैं ! कल तक तो भक्त जन तभी "........भूत पिशाच निकट न आवे, महावीर जब नाम सुनावे ,,,,,," पढ़ते थे जब भयाक्रांत होते थे ! अब तो पांचों वक्त हनुमान चालीसा पढ़ी जाने लगी हैं , वो भी लाउडस्पीकर में ! 

घोर कलियुग ही है तभी तो देवी देवताओं को भी कृपा द्ष्टि की जरुरत आन पड़ी है। इस बार राजनीति ने विशेष कृपा दृष्टि डाली है राम भक्त महावीर हनुमान पर !  चूँकि "राम" पर तो कॉपी राइट एक ख़ास पार्टी का हो गया है, अन्य पार्टियों ने भाया मीडिया का रास्ता अपनाना श्रेयस्कर समझा है ; वैसे भी माना तो यही जाता है कि राम तक पहुंचने के लिए पहले हनुमान के पास शरणागत होना पड़ता है।  

हनुमान दलित थे !

पॉलिटिक्स के लिए हनुमान को एक्सप्लॉइट सबसे पहले शायद योगी आदित्यनाथ ने ही किया था जब उन्होंने हनुमान को दलित समुदाय का बता दिया था !

लेकिन बात यदि हनुमान चालीसा की करें तो इसके पाठ का दोहन सर्वप्रथम अरविन्द केजरीवाल ने किया था ! अब मुंबई के राज ठाकरे को हनुमान चालीसा याद आई है ! वे भी राम के आसरे अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं ! राम के आसरे होना मतलब बीजेपी के आसरे होना ही हुआ ना ! हालाँकि ये लॉजिक केजरीवाल पे लागू नहीं होता क्योंकि वे स्वयं दिवाली मनाने अयोध्या पहुँच गए थे और दिल्ली वासियों को भी ट्रेन से अयोध्या रवाना कर दिया था। रामजी की डायरेक्ट कृपा का उन्हें विश्वास है ! 

हनुमान पॉलिटिक्स में !

लेकिन "सबके अपने अपने राम" की तर्ज पर "सबके अपने अपने हनुमान" होते तो कोई बात नहीं थी ! बहस राजनीति के गलियारों तक ही सीमित रह जाती ; "कट्टर हिंदुत्व को हराने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व अपना लिया है' वाला लॉजिक ठीक वैसे ही चल जाता जैसे केजरीवाल खूब बोलते रहे पॉलिटिक्स कीचड़ है लेकिन पॉलिटिक्स में आ गए इस लॉजिक के साथ कि कीचड़ साफ़ करने के लिए कीचड़ में उतरना ही पड़ता है ! 

परंतु बात अज़ान - लाउड स्पीकर - हनुमान चालीसा क्योंकर हो गयी ? कोई 'रॉकेट साइंस' की जरूरत नहीं है इस तुच्छ पॉलिटिक्स को समझने के लिए !  मकसद "हम बनाम वो" खड़ा करना है और जस्टिफाई भी कर दिया जा रहा है पास्ट को उद्धत कर कर के ! ध्यान जो भटकाना है रियल समस्याओं की तरफ से, नाकामियों की तरफ से ! 

वास्तविक हनुमान भक्तों को पता है हनुमान चालीसा कब और क्यों पढ़ी जाती हैं; उन्हें कंठस्थ भी है ! पांचों वक्त हनुमान चालीसा पढ़ने का ना तो कोई विधान है ना ही कोई औचित्य ! और लाउडस्पीकर पर पढ़ वे लोग रहे हैं जिन्होंने शायद पहले कभी पढ़ी ही ना हो; पुस्तक देखकर जो पढ़ रहे हैं ! 

एक और सच्चाई है इस कंट्रोवर्सी के पीछे की ! लाउडस्पीकर तो बेचारा है, निशाना आज अचानक "अजान" है चूँकि कट्टरपंथियों को शह जो मिल रही है, प्रोटेक्शन भी मिला हुआ है ! " सबका साथ सबका विकास" और अब। '...सबका विश्वास' भी एक ढकोसला मात्र है, फेस सेविंग एक्सरसाइज है !

लेकिन अन्य सभी पार्टियां भी आज एक क्लियर स्टैंड नहीं लेती ; क्यों नहीं ले पाती, समझने के लिए, फिर वही बात, किसी 'रॉकेट साइंस' की जरूरत नहीं है ! हिंदुओं के साथ खड़े दिखने की कवायद जो है !   

हास्यास्पद ही है जब बड़े नेता(अन्य सभी पार्टियों में से एक के) हनुमान जयंती की शुभकामनाएं देते हैं देशवासियों को और उनके फॉलोवर्स  हनुमान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने वालों का भी मजाक उड़ाते है, "हनुमान चालीसा वालों उठ जाओ ! २ बजने वाले हैं। तुम लोग तीन बजे से ही शुरू हो जाओ।  और यार नहाना ज़रूर।"  इसे भी फेस सेविंग एक्सरसाइज ही कहेंगे ना ! 

अब राजनीति देखिये शिवसेना ने राज ठाकरे को बीजेपी का लाउडस्पीकर ही करार दे दिया है। लेकिन राज ठाकरे की अजान के मुकाबले लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ने की मुहिम महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश और गोवा तक पहुंच चुकी है। पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो घरों पर ही लाउडस्पीकर लगाने की मुहीम शुरू हो गयी है। 

वैसे लाउडस्पीकर कंट्रोवर्सी पुरानी है; हाँ,  हाइप इस बार मिल गया है ! वजह समझी जा सकती है, एक बार फिर, समझने के लिए किसी 'रॉकेट साइंस' की जरुरत नहीं है। इस बार आग भले ही पहले मुंबई में लगी,  हनुमान चालीसा पाठ के लिए लाउडस्पीकर पहले वाराणसी में लग गया ; पीएम का संसदीय क्षेत्र जो है ! बोले तो उनकी मौन स्वीकृति है उनकी ! वहां के साकेत नगर में काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन के अध्यक्ष सुधीर सिंह ने अपने घर की छत पर लाउडस्पीकर लगाया गया है ताकि जब जब अजान का वक्त हो तेज आवाज में हनुमान चालीसा बजाया जा सके। साथ ही सुधीर जी की कोशिश है कि शहर के ज्यादा से ज्यादा घरों की छतों पर लाउडस्पीकर लगाया जाये और अजान के वक्त पूरे पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ हो सके।  

आखिर कंट्रोवर्सी क्यों हो रही है ? फिर वही 'रॉकेट साइंस' कहें तो सिर्फ और सिर्फ तुच्छ पॉलिटिक्स ही वजह है। बनारस में भोर से ही मंदिरों के घंटे सुने जाते रहे हैं। जब श्रद्धालु आने लगते हैं, फूल माला और जल चढ़ाने के बाद हर कोई एक बार घंटा जरूर बजाता है - और पूरे शहर में न सही, लेकिन घाट किनारे बसे मोहल्ले के लोगों की नींद उसी आवाज के साथ खुलती है।  अजान की आवाज तो बाद में आती है, पहले तो कानों में घंटा-घड़ियाल ही गूंजता है। मंदिरों में भोर की आरती के वक्त ये रोजाना की बात होती है। ये बात अलग है कि कौन सो कर उठता है? देर से सो कर उठने वालों को तो वही आवाज सुनायी देगी जो उस वक्त माहौल में गूंज रही होगी। तो फिर आज ही हायतौबा क्यों ? 

जैसा पहले भी कहा, लाउडस्पीकर 'बेचारा' है, असल निशाना 'अजान' पे है ! "हमें" लगने लगा कि "मोदीकाल" में हम ऐसा कर सकते हैं ! कहीं पहले होते रहे और आज भी कहीं कहीं मसलन बंगाल में हो रहे अत्यधिक तुष्टिकरण से उपजी कुंठा तो नहीं ! या फिर फॉलो किया जा रहा है केजरीवाल जी को जिन्होंने हनुमान चालीसा पढ़ते पढ़ते दिल्ली के बाद पंजाब में भी सरकार बना ली ! खैर ! देर आयद दुरुस्त आयद ! राज ठाकरे उम्मीद जो लगा बैठे हैं कि अंततः उनका सोलह सालों का राजनीति में "कद" पाने का संघर्ष अब हनुमान चालीसा के बल पर फलीभूत होगा ! 

स्टीव जॉब्स , मार्क जुकरबर्ग और जूलिया रॉबर्ट्स नीम करौली बाबा के हनुमान मंदिर की शरण में

छोड़िये अरविंद केजरीवाल और राज ठाकरे को, ऐसे बहुत लोग हैं जिनके लिए हनुमान चालीसा बरसों बरस बहुत बड़ा संबल रहा है. जैसे कोई मोटिवेशनल उपाय हो - 'संकट कटै मिटै सब पीरा...' कानों में गूंजते ही बड़ी राहत मिलती है, खास कर उन सभी को जो मुश्किलों से जूझ रहे हैं ! फिर लोग सुन चुके है कैसे स्टीव जॉब्स ने हनुमान जी के मंदिर आने के बाद एप्पल सरीखी कंपनी कड़ी कर दी ! फेसबुक के मार्क जकरबर्ग भी हनुमान भक्त बताये जाते है। सो पांच वक्त हनुमान चालीसा की ये पहल भी अच्छी लगती है. चलो बहाना कोई और ही सही, लोग हनुमान चालीसा का पाठ तो कर रहे हैं। 

वैसे जब पहली बार अजान कही गई थी या हनुमान चालीसा पढ़ी गई थी, लाउडस्पीकर था ही नहीं ! प्रत्यक्ष रुपस या अप्रत्यक्ष रूप से दक्षिणपंथयों के मुख से निकल ही गया है कि मुद्दा "अजान" है क्योंकि एलान है कि अल्लाह सबसे बड़ा है (अल्लाहु अकबर -अल्लाहु अकबर) और "मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं"(अश्हदुअल्ला  इलाहा इल्लल्लाह) ! तर्क दिया जा रहा है कि ऐसे कैसे एलानिया कहा जा सकता है ? 

हालाँकि "अजान" की व्याख्या ही गलत की गई है और ऐसा करते हैं कट्टरपंथी समूह वो चाहे हिंदू हो या मुस्लिम ही हो ; आखिर धर्म की दुकान दोनों की ही चलनी जो चाहिए ! 

सही व्याख्या अपभ्रंश क्योंकर हुई तो वजह है "अकबर" शब्द का अनर्थ किये जाने से ! "अज़ान" अरबी शब्द है जिसका  भावार्थ ‘पुकार कर बताना’ या ‘घोषणा करना’ है। अज़ान देकर लोगों को पुकारा, बताया, बुलाया जाता है कि नमाज़ का निर्धारित समय आ गया, सब लोग उपासना स्थल (मस्जिद) में आ जाएं। ‘अकबर’ के अरबी शब्द का अर्थ है ‘बड़ा’। यह इस्लामी परिभाषा में ईश्वर अल्लाह की गुणवाचक संज्ञा है। इस परिभाषा में अकबर का अर्थ होता है बहुत बड़ा, सबसे बड़ा। अज़ान के प्रथम बोल हैं: ‘अल्लाहु अकबर’ अर्थात अल्लाह बहुत बड़ा/सबसे बड़ा है। इसमें यह भाव निहित है कि अल्लाह के सिवाय दूसरों में जो भी, जैसी भी, जितनी भी बड़ाइयां पाई जाती हैं, वे ईश-प्रदत्त हैं; और ईश्वर की महिमा व बड़ाई से बहुत छोटी, तुच्छ, अपूर्ण, अस्थायी, त्रुटियुक्त हैं। अज़ान के ये बोल १४००  वर्ष पुराने हैं। भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में नमाज़ियों को मस्जिद में बुलाने के लिए लगभग डेढ़ हज़ार साल से निरंतर यह आवाज़ लगाई जाती रही है। यह आवाज़ इस्लामी शरीअ़त के अनुसार, सिर्फ़ उसी वक़्त लगाई जा सकती है जब नमाज़ का निर्धारित समय आ गया हो !

 सूर्योदय से घंटा-डेढ़ घंटा पहले।  (फ़ज्र की नमाज़)
 दूपहर, सूरज ढलना शुरू होने के बाद। (जु़हर की नमाज़)
 सूर्यास्त से लगभग डेढ़-दो घंटे पहले। (अस्र की नमाज़)
 सूर्यास्त के तुरंत बाद।   (मग़रिब की नमाज़)
 सूर्यास्त के लगभग दो घंटे बाद। (इशा की नमाज़)

फिर जहाँ मंदिर है वहां भी आरती समयानुसार ही होती है; जिसकी आवाज गूंजती है , आसपास तक तो कानों में जाती ही है , ठीक वैसे ही अजान की पुकार मस्जिदों से होती है तो आस पास कानों में जायेगी ही ! सो आवाज स्पेसिफिक सेंटर्ड होती है ; फिर एतराज किसी को भी किसी के लिए क्यों ?  

कुल मिलाकर बहुत हुआ सम्मान इन नेताओं का ! इन्हें धता बताने की महती जरूरत है ! समझने की आवश्यकता है कि "अजान बनाम हनुमान चालीसा" वाली मुहिम बेमानी है, निहित स्वार्थवश है और इस कुत्सित मुहिम में मुसलमान हो या हिंदू महज एक पॉलिटिकल टूल है !  महाराष्ट्र में जो लोग हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ रहे हैं उनके निशाने पे उद्धव ठाकरे हैं और जब यही मुहिम यूपी में जोर पकड़ती है तो आंच अखिलेश यादव तक पहुँचती है क्योंकि अल्टीमेट प्रतिद्विंद्वी तो वही हैं बाकी सब तो कब के ख़ाक हो चुके हैं। 

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Prakash Jain

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