
चौतरफा डबल स्टैंडर्ड है, वजह पॉलिटिक्स है. ऑपरेशन सिंदूर पर एक प्रोफ़ेसर अली खान महमूदाबादी के बयान को पूरी तरह देशभक्ति पूर्ण बताया जा रहा है, जबकि मध्य प्रदेश के मंत्री के निकृष्ट बयान को देशद्रोह निरूपित किया गया है. फिलहाल स्थिति यह है कि प्रोफ़ेसर अली गिरफ्तार होकर पुलिस रिमांड में हैं और मंत्री जी की गिरफ्तारी नहीं की गई और अब तो गिरफ्तारी पर शीर्ष न्यायालय ने रोक लगा दी है. परंतु उन्हें जाँच में सहयोग करना पड़ेगा जिसके लिए शीर्ष पुलिस अधिकारियों की एक एसआईटी बनाने का निर्देश दिया गया है. हालांकि मंत्री जी की माफ़ी भी नामंजूर कर दी गई है.
डबल स्टैंडर्ड इस मायने में है कि कमोबेश आरोप दोनों पर एक से हैं, लेकिन बावजूद संभ्रांत भाषा में ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठाने पर भी प्रोफ़ेसर साहब को पुलिस ने उठा लिया चूंकि सत्ता कठघरे में खड़ी नजर आ रही थी. दूसरी तरफ मंत्री जी के अति निकृष्ट बयान पर पुलिस निष्क्रिय रही चूंकि वह सत्ता के कसीदे पढ़ते जो नजर आ रहा था.
एक तो देश में प्रजातंत्र है, दूसरे कल ही महामहिम चीफ जस्टिस ने पुनः स्थापित किया कि न तो न्यायपालिका, न ही कार्यपालिका और संसद सर्वोच्च है, बल्कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और तीनों अंगों को संविधान के अनुसार काम करना है. जरूरत जो आन पड़ी थी, हालिया प्रभाव जो पड़ा था कि सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है. दरअसल लक्ष्मण रेखा अपनी अपनी सबको पता है, जाने अनजाने लांघने की कोशिश हो ही जाती है.
प्रोफेसर अली का पोस्ट और मंत्री का "कहा" दोनों ही पब्लिक डोमेन में है, शीर्ष न्यायालय ने प्रोफेसर साहब की अर्जी पर भी संज्ञान ले लिया है, उनके लिए कपिल सिब्बल जी सरीखे वरिष्ठ अधिवक्ता हैं ही. निःसंदेह उन्हें भी शीर्ष राहत इस हद तक तो मिलनी तय है कि गिरफ्तारी को गैर जरूरी बताते हुए उन्हें रिहाई दे दी जाएगी. परंतु कपिल सिब्बल जी इसके लिए थोड़े ना बहस करेंगे ? रिहाई तो कोई भी अदना सा वकील खड़ा हो जाता, मिलनी ही थी !
महमूद अली का पोस्ट अंग्रेजी में है, भाषा शालीन है, लेकिन अर्थ निकालें तो अनर्थ ही है ना ! ऑपरेशन सिंदूर के बारे में अपडेट देने के लिए भारत सरकार की बनाई गई टीम को तमाम राजनीतिक पार्टियों ने सराहा था, परंतु कहीं न कहीं उनके मन में भी यही बात थी जो प्रोफेसर अली ने लिखी, तभी तो आज सब के सब प्रोफेसर के साथ खड़े हैं. यदि प्रोफेसर ठीक उसी दिन लास्ट पारा में मॉबलिंचिंग, आर्टिफिशल बुलडोज़िंग, तथा कथित बीजेपी हेट मोंगरिंग पीड़ितों का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर सिंह जैसे लोग सरकार के प्रचार के मोहरे हैं, जिस दिन वे दोनों ऑपरेशन सिंदूर के पहले दिन का विवरण देश को बता रही हैं ; उनकी मंशा नेक कैसे कही जा सकती है ? महमूद अली की दो बातों को छोड़कर बाकी सभी विपक्ष की लाइन ही है. सिर्फ दो बातें - एक तो ब्रीफिंग टीम पर उनका कमेंट और दूसरा वॉर के खिलाफ उनका मत - लाइन से इतर हैं. परंतु हकीकत यही है कि दोनों बातें रियल टाइम में विपक्ष के मन की ही बातें हैं. वॉर की वकालत करना और ब्रीफिंग टीम की सराहना करना उनकी राजनीतिक मजबूरी थी. वैसे देखा जाए तो एक ओर सीजफायर कर केंद्र की बीजेपी सरकार (जिसे वे दक्षिणपंथी कह रहे हैं) ने प्रोफ़ेसर साहब को गलत साबित कर दिया, दूसरी ओर विपक्ष (वामपंथ ही कहिये उसे) ने भी वॉर को जारी रखे जाने की मांग कर उन्हें गलत साबित किया ! यही तो पॉलिटिक्स का खेला है, जिसमें आज जीत का दांव सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार को नीचा दिखाने का है.
दुर्योग ही कह सकते हैं सत्ता का कि अतिरंजना में आकर प्रोफ़ेसर साहब को गिरफ्तार कर लिया गया है, और साथ ही मिनिस्टर विजय शाह के कुबोल भी दर्द दे दी रहे है. और प्रोफेसर के साथ खड़े रहना राजनीतिक सहूलियत है विपक्ष के लिए !
वापस लौट आएं उस पर जो शुरू में कहा कि संविधान सुप्रीम है. गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में हैं. देखना दिलचस्प होगा, क्या सुप्रीम फैसला आता है ? चूँकि संविधान बोलने की आज़ादी देता है, गलत बोला या आपत्तिजनक भी बोला तो जांच का विषय है. जब तक जांच पूरी हो और निष्कर्ष आएं आगे की कार्यवाही के लिए, गिरफ्तारी सर्वथा अनुचित है. क्या न्यायालय प्रोफ़ेसर साहब को भी जांच में शामिल होने के लिए कहेगा ? या फिर महान वरिष्ठ नेता अधिवक्ता अपनी वाकपटुता से सिद्ध कर ले जाएंगे कि प्रोफेसर साहब ने सारी बातें देशभक्ति पूर्ण ही की है और उनके खिलाफ की गई एफआईआर को ही रद्द कर देगा !
और अंत में, एक पढ़ा लिखा आम आदमी, जो स्वयं को अपडेट रखता है, क्या सोच रहा है ? हर ऐसे आदमी का निष्कर्ष यही है कि ख़ालिस राजनीति हो रही है. प्रोफेसर, जो राजनीति शास्त्र ही पढ़ाते हैं, ने राजनीति ही की, वे हैं भी समाजवादी पार्टी में और उधर विजय शाह ने भी राजनीति की. ब्रीफिंग टीम की संरचना भी एक आदर्श राजनीतिक संदेश देने की कोशिश थी राष्ट्रीय स्तर के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ! परंतु भेंट चढ़ गई स्वार्थ परक तुच्छ राजनीति के !

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