प्रादा (PRADA) मेहरबान तो कोल्हापुरी चप्पल पहलवान !

अच्छी से अच्छी कोल्हापुरी चप्पल अमूमन हजार बारह सौ में और यदि डिज़ाइनर का तड़का लग गया हो ब्रांड के रूप में तो चार एक हजार रुपये में मिल ही जाती है. महाराष्ट्र और पड़ोसी राज्यों में कोल्हापुरी चप्पलें सिर्फ़ जूते नहीं हैं - वे एक सांस्कृतिक प्रतीक हैं. इन्हें अक्सर धार्मिक त्यौहारों, शादियों और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर पहना जाता है. चप्पलें शिल्प कौशल, परंपरा और स्थिरता के मूल्यों को दर्शाती हैं. कोल्हापुरी चप्पलों में इस्तेमाल किया जाने वाला चमड़ा गाय, बकरी या भैंस से आता है, कच्चे चमड़े को सावधानीपूर्वक चुना जाता है, साफ किया जाता है और छाल, जड़ी-बूटियों और अन्य पर्यावरण-अनुकूल तरीकों जैसे प्राकृतिक अवयवों का उपयोग करके संसाधित किया जाता है. इससे चमड़े को एक समृद्ध, गर्म रंग मिलता है.   
परंपरागत रूप से कोल्हापुर की चप्पलें यहाँ के स्थानीय कारीगरों का एक कुटीर उद्योग ही है, हालांकि हाल के वर्षों में, कोल्हापुरी चप्पलें लोगों की पसंद में शामिल हुई हैं , जिसका श्रेय टिकाऊ, हस्तनिर्मित उत्पादों की वैश्विक मांग को जाता है.  कई राष्ट्रीय डिजाइनरों ने पारंपरिक शैलियों से प्रेरणा ली है और उन्हें समकालीन फैशन में शामिल किया है. नतीजन , कोल्हापुरी चप्पलें कई रंगों, डिजाइन और आकारों में उपलब्ध हैं, जो पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह की पसंद पर खरी उतरने लगी है. आज कोल्हापुरी चप्पलों की विरासत को जीवित रखने के लिए कई ब्रांड और स्थानीय कारीगर काम कर रहे हैं,  वे पारंपरिक तकनीकों को आधुनिक तकनीक के साथ मिलाते हैं ताकि वैश्विक मानकों को पूरा करते हुए सैंडल की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके. 
कोल्हापुरी चप्पल को भारत में साल 2019 से GI टैग मिला हुआ है. पिछले दिनों ही फैशन के क्षेत्र में विश्व विख्यात PRADA ने मिलान के मेंस फैशन शो में अपने समर कलेक्शन प्रजेंट किए थे, PRADA की मॉडल के शरीर पर थे मॉडर्न डिजाइन वाले कपड़े,हाथ में डिजाइनर बैग और पैरों में...पैरों में थी कोल्हापुरी चप्पल !  सो इसे अपकमिंग माना गया और कहा गया कि PRADA इसे क्या ही लाख रुपये से कम में बेचेगी ! आज सोशल मीडिया का युग है, नागवार सी गुजरने वाली बात थी ही क्योंकि कहीं भी इसका जिक्र नहीं किया कि यह पहनावा भारतीय पहनावे से प्रेरित है. PRADA को कठघरे में खड़ा करते हुए तमाम बातें वायरल होने लगी.  

सच्चाई तो है कि वेस्टर्न लोग इंडियन कल्चर और फैशन से इंस्पायर तो होंगे लेकिन कभी मानेंगे नहीं कि उन्होंने भारतीयों से इंस्पिरेशन ली है. फिर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. नेहरू जैकेट से लेकर कमरबंद, पगड़ी.. स्कार्फ. सबके साथ ऐसा ही हुआ है. हमारे यहां की चीजें लेते हैं और अपना ट्विस्ट देकर बेच देते हैं. मेड इन फ्रांस और मेड इन इटली फैशन की दुनिया में बेंचमार्क की तरह देखे गए हैं. लेकिन अब वेस्टर्न मार्केट ‘मेड इन इंडिया’ चीजों से भरे पड़े हैं. वैसे दोष हम इंडियंस का भी कम नहीं है. घर की मुर्गी दाल बराबर जो समझते आए हैं.   

माने या ना माने सोशल मीडिया की बदौलत इंडियंस की सुनी जाने लगी है. इटली के लग्जरी फैशन हाउस प्राडा ने आखिरकार मान ही लिया कि उसने कोल्हापुरी चप्पलों की नकल की. महाराष्ट्र चेम्बर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर को दिए जवाब में प्राडा के प्रवक्ता ने कहा है,

"हम स्वीकार करते हैं कि हाल ही में प्राडा मेंस फैशन शो में दिखाए गए सैंडल, पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प जूतों से प्रेरित हैं, जिनकी विरासत सदियों पुरानी है. हम इस तरह के भारतीय शिल्प कौशल के सांस्कृतिक महत्व को पूरी तरह समझते हैं और उनका सम्मान करते हैं. "

हालांकि प्राडा ने  किसी भी प्रोडक्शन या व्यवसायीकरण की बात से इंकार करते हुए स्पष्ट किया कि  फिलहाल ये पूरा डिजाइन कलेक्शन अभी तैयारी के शुरुआती चरण में है. PRADA ने यह भी कहा है कि वह भारतीय कारीगर समूहों के साथ सार्थक आदान-प्रदान के लिए बातचीत को तैयार है. उन्होंने बताया कि प्राडा ने अतीत में दूसरे कलेक्शन के मामलों में भी ऐसा किया है, ताकि कारीगरों के शिल्प को सही पहचान मिल सके.
सही मायने में कोल्हापुरी चप्पल जैसी चीजें भारतीय डिजाइन को ग्लोबल मार्केट में देखकर बिल्कुल अच्छा लगता है, बशर्ते क्रेडिट तो मिले क्योंकि यह सिर्फ एक ट्रेंड नहीं है, विरासत है. जिन लोगों ने उस विरासत को जिंदा रखा है उन्हें श्रेय ज़रूर मिलना चाहिए. अगर दुनिया इस क्राफ्ट को देख रही है तो इसे इंस्पायर करने वाले कारीगरों की पूरी कहानी भी सुनाई जानी चाहिए और उन्हें फाइनेंसियल सपोर्ट भी इस रूप में दिया जाना चाहिए कि PRADA उन्हें प्रोडक्शन प्रोसेस में शामिल करें या फिर QPC (Quality, Processes, Control) के तहत घर घर उनकी बनी हुई चप्पलों, सैंडलों को ग्लोबल मार्किट मिले !  

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Prakash Jain

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