SIR तो कानूनी है, सर को करने दीजिये !

सुने आपके तमाम अंदेशे, आपके लिए बात भी कर ली सर से ; उनकी भी सुनी ! पूर्ण अस्वीकृति न तो आपकी बातों की है और ना ही सर की बातों की है. हाँ, आप यदि आयोग की मंशा पर किसी भी तरह के , मसलन सत्ता के साथ मिलीभगत, मनमानी आदि, सवाल खड़े करते हैं तो हमें एतराज हैं, हम सहमत नहीं है. सो बड़े भाई का फर्ज निभाते हुए कुछ सुझाव भी दे दिए ! आपकी बातों पर उनका जवाब मांग लिया है, इसी बीच वे SIR जारी रखते हुए पूरी भी करें. आयोग के विस्तृत जवाब आ जाएगा और चूंकि ड्राफ्ट वोटर्स लिस्ट 1 अगस्त को आनी है, उसके तीन चार दिन पहले यानी 28 जुलाई को एक बार फिर मिल लेते हैं, गुफ्तगू कर लेते हैं ! शीर्ष न्यायालय ने मौखिक रूप से स्पष्ट किया कि यह चुनाव आयोग को केवल इन दस्तावेजों (आधार , वोटर कार्ड और राशन कार्ड ) के आधार पर किसी का नाम मतदाता सूची में शामिल करने का निर्देश नहीं है. उसे इन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने का विवेकाधिकार है.  

कुल मिलाकर सारी याचिकाओं पर शीर्ष अदालत के फैसले का यही लब्बोलुआब था. अब इसमें वादी गण और तमाम विपक्षी नेता बोल बचन करें कि चुनाव आयोग को घुटने पर ला दिया, जैसा एक योगेंद्र यादव ने ट्वीट भी किया कि अब आगे का कोई भी कदम सुप्रीम कोर्ट की अनुमति से ही उठेगा, अब चुनाव आयोग की मनमानी नहीं चलेगी, कोर्ट ने नकेल लगा दी है, तो कौन रोक सकता है ? फ़ितरत है उनकी ! दरअसल इन लोगों की समस्या ही कुछ और है !           

चुनाव आयोग कुछ भी करेगा, इन्हें विरोध करना ही करना है. निहित स्वार्थ है, राजनीतिक बाध्यताएँ हैं, और सर्वोपरि विरोध के लिए विरोध की मानसिकता जो है. यही मानसिकता थी कि 2021 में आयोग के आधार को वोटर कार्ड से लिंक करने के प्रस्ताव को निराधार बताते हुए विरोधियों ने विरोध किया था और आज वही विरोधी आधार को आधार बनाने पर जोर दे रहे हैं. शीर्ष न्यायालय ने क्या किया ? याचिकाकर्ताओं के अनर्गल प्रलाप से किनारा करते हुए जिन सवालों में मेरिट था, आयोग से कैफ़ियत मांग ली ! यही वे सकारात्मक रुख के साथ वास्तविक बातों के लिए आयोग से मिल सकते थे, समझ सकते थे. चुनाव आयोग क्यों नहीं सुनता ? अवश्य सुनता यदि आप अपने पूर्वाग्रह परे रखकर मिले होते तो ! सामान्य सी बात है सवाल की शुरुआत ही आप मंशा पर ही सवाल के साथ, मसलन सत्ता के साथ सांठ गांठ,मनमानी पूर्ण,आदि से करोगे तो कोई भी स्वायत्त संस्था कैसे सुनेगी ? सुनेगी तो मुकाबले की ही स्थिति निर्मित होगी ना !

फिर याचिकाएँ दाखिल करने में जल्दबाज़ी ही हुई ना ! अपरिपक्वता ही झलकी ! बेहतर नहीं होता यदि आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेजों पर जाकर दो चार गांवों के प्रामाणिक डेटा देते ! अपने बूथ लेवल एजेंटों की हेल्प लेते हुए पूरा होमवर्क किया होता, तो वाजिब निष्कर्ष निकलते कि पॉइंट्स खरे उतरेंगे या नहीं ! 

चुनाव आयोग का कल का स्टेटमेंट है कि 74.39% गणना फॉर्म जमा किए जा चुके हैं, जबकि अभी सत्रह दिन हुए हैं. 77895 बूथ लेवल ऑफिसर और साथ ही नव नियुक्त 20603 ऑफिसर अन्य चुनाव अधिकारियों, चार लाख वॉलंटियर्स और 1.56 लाख भिन्न भिन्न पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों द्वारा नियुक्त ब्लॉक लेवल एजेंटों, सभी मिलकर अथक मेहनत कर रहे हैं एक महती आदर्श काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए ! क्या सभी की मंशा गलत है ? क्या पार्टियों को अपने ही एजेंटों पर भरोसा नहीं है ? 

Write a comment ...

Prakash Jain

Show your support

As a passionate exclusive scrollstack writer, if you read and find my work with difference, please support me.

Recent Supporters

Write a comment ...