कल जो भी रहा होगा, आज तो आतंक ख़त्म करने की क़वायद है !

खूब कहा जा रहा है अमेरिका भारत के साथ है, तो कह देते हैं साथ खड़े होकर भी हमारे लिए अमेरिका और चाइना उन्नीस बीस ही हैं. चाइना पाक के साथ ठीक वैसे ही है जैसे अमेरिका भारत के साथ है. वह पाक को कहता है 'हम साथ साथ है' जबकि वह तटस्थ रह रहा है और अमेरिका इंडिया को कहता है 'हम साथ साथ है' जबकि वह भी तटस्थ रह जा रहा है. 

ट्रंप तो समझ के परे है, बोल बचन ऐसा है कि कुछ भी बोल देता है, कुछ भी कर देता है ; बोले तो बावली बूच है. किसी को लगा होगा यूँ ही हंसी मजाक में बोल दिया उसने कि इंडिया और पाकिस्तान तो कई दशकों और सदियों से लड़ रहे हैं ! कोई बताए एक सदी पहले पाकिस्तान था भी क्या ? दरअसल कमोबेश सभी पश्चिमी देश इंडिया और पाक के बीच के हाल के तनाव को शायद इसी प्रकार देख रहे हैं.          
दुनिया का कौन सा कोना अछूता है आतंकवादी गतिविधियों से, खासकर इस्लामिक आतंकवाद से ? फिर भी क्या मजबूरी है कि मिलकर और खुल कर पाक की लानत मलामत करने से कतराते नजर आते हैं ? उनके लिए तो तनाव की एकमात्र वजह यही है कि शुरू से पाकिस्तान कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानने से इनकार करता है और इंडिया के अंदर भी इस बात के सिम्पथाइजर हैं. इतनी बड़ी पहलगाम घटना हुई, जिसमें निर्दोष और युवा नागरिकों को पॉइंटब्लेंक रेंज से मार दिया गया ! लगता है  दुनिया इसे लंबे संघर्ष की एक और कड़ी ही मान बैठी है.

यही नजरिया पाक को माइलेज दे ही देता है, कल ही आईएमएफ ने, बावजूद इंडिया के सख्त एतराज के कि पाक को मिलने वाला अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहयोग उसकी ख़ुफ़िया एजेंसियों और लश्कर-ए- तैयबा , जैसे -ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को पहुँचता है, उसे एक बिलियन डॉलर का कर्ज देने को मंजूरी दे दी है. जबकि आईएमएफ अपनी ही रिपोर्ट में पाक को too big to fail कर्जदार बन चुका है. 

अगर मान भी लें कभी रहा होगा कश्मीर विवाद की जड़ में , आज तो पाकिस्तान से समस्या निर्विवाद रूप से सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद है. आज कौन कश्मीरी सोचेगा कि उसका राज्य आज के अस्थिर और बिखरते पाक का हिस्सा बने ? हमारी चिंता सिर्फ और सिर्फ यही है कि पाक आतंकवादी देश बन गया है और उन आतंकवादियों को संरक्षण देता है जो हिंदुस्तानियों की हत्या करते हैं. पूर्व के दो ढाई दशक में झांके तो हमारे लिए पाकिस्तान चिंता का सबब सिर्फ आतंकवादी हरकतों के लिए ही बना है मसलन यात्री प्लेन का किडनैप कर खूंखार आतंकवादियों को रिहा करवाया ( जो आज भी उनकी पनाह में ही हैं) , 26/11 मुंबई हमलों को अंजाम देकर निर्दोष नागरिकों की नृशंस हत्या की, और हालिया पिछले दिनों पहलगाम हुआ, जिनके गुनाहगारों को प्रशिक्षित किसने किया और हथियार किसने दिया, जगजाहिर है.  और भी हुए हैं, ये सब सिर्फ और सिर्फ भारतीयों की हत्या के लिए किया गया आतंकवाद है.                
ट्रंप कहता है भारत और पाक संघर्ष रोकें तो वह कुछ मदद कर सकते हैं.  मदद क्या करेंगे ? पाक के हथियार घट गए हैं, उन्हें नए दे देगा ! इंडिया को भी ऑफर करेगा ! यूरोपीय हथियार निर्माता देश भी पोस्ट वॉर अवसर देख ही रहे हैं.  और पोस्ट वॉर स्थिति कब आएगी ? कोई ना कोई विदेशी मध्यस्थता एक बार फिर होगी ; चूंकि यही तो हमेशा हुआ है. या फिर परस्पर दावों प्रतिवादों के मध्य ऐसी स्थिति निर्मित हो कि खुद ब खुद ही बंद कर दें, हालांकि चांसेज़ इस बात के होते नहीं है.  कह सकते हैं ऐसा एक बार हुआ था पुलवामा के वक्त जब पाक ने एक भारतीय पायलट को युद्धबंदी बना लिया था और भारत के दवाब के बाद उस पायलट की वापसी ने दोनों देशों को और आगे बढ़ने से रोक दिया था.
यह भी सत्य है कि जब जब मध्यस्थता हुई है, इंडिया घाटे में रहा है. चूंकि आतंकवाद के खात्मे का आदर्श उद्देश्य है, एकला चलो रे की नीति पर चलते हुए भारत को इस बार हर हाल में आतंकी अड्डों को नेस्तनाबूद कर पाक को ऐसा सबक सीखा देना है कि वह न केवल तौबा कर ले बल्कि शरणागत आतंकियों मसलन हाफिज, मसूद अज़हर, दाऊद को भारत के हवाले कर खुद के सुधर जाने का सबूत भी दे.  आवश्यकता हो तो पी ओ के को अपनी टेरिटरी में मिला ले ! 

निहित स्वार्थी देश मसलन सऊदी, अमेरिका मध्यस्थ की भूमिका के लिए लालायित हो रहे है. एक और बात, अब एक  वर्ड जो खूब उछाला जा रहा है DE-ESCALATION, विदेश से ज्यादा देश में उछाला जाने लगा है और चिंता वाकई इस माहौल से है.  चिंता इस बात से भी है कि अब कुल जमा तीन चार दिनों के अंतराल के बाद ही स्वार्थपरक पॉलिटिक्स पुनः हावी होती नजर आ रही है, जिसके तहत सरकार को नीचा दिखाने के लिए INDIA DOWN विमर्श खड़ा करने से भी परहेज नहीं है.  बैड टूल्स मीडिया में भी है, एक अनुभवी और बुजुर्ग पत्रकार ,कभी जिसकी तूती बोलती थी और आज जो एंटी गवर्नमेंट हैं, ट्वीट करने से गुरेज नहीं करते कि "अमृतसर में रात भर धमाके हुए जो अभी तक चल रहे हैं. क्या सरकार ने सरहद पर रहने वालों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया है ?" इसीलिए ऐसे वक्त में इकबाल का शेर  "खुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है ' इस मायने में याद आता है इंडिया के लिए, इंडियंस के लिए कि दुनिया पूछे हम क्या हश्र करना चाहते हैं पाक का और हमें ग्लोबली भी दबाव रहित फ्री हैंड मिले ! 

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Prakash Jain

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