
कांग्रेस नेता जयराम रमेश से साभार लेते हुए शीर्षक रचा है. बिना किसी दुर्भावना के (without any prejudice) उचित श्रेय उन्हें देना बनता है. दिया सो उनका स्वीकार अपेक्षित है.
दुनिया में अमेरिका है, परंतु चूंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं, आज अमेरिका दुनिया का नहीं है. बिल्ली के भाग से छींका ही टूटा कि वाशिंगटन पोस्ट की फैक्ट चेक टीम द्वारा सर्टिफाइड झूठा ट्रंप यूस का प्रेजिडेंट दोबारा बन गया ! दुनिया चौंक गई खुलासे से कि जैसे-जैसे वे राष्ट्रपति पद पर कार्यरत रहे, असत्य की सुनामी बढ़ती गई और वे सत्य से दूर होते गए. और अब उनके दूसरे कार्यकाल की शुरुआत ने बता दिया है कि इस बार वे अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए महानतम बड़बोले (braggart) के रूप में इतिहास में दर्ज कर लिए जाएंगे.
अमूमन जो शख्स दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बना है, उसे नोबेल शांति पुरस्कार मिला है. सो ट्रंप ने मुगालता पाल रखा है कि वह शांतिदूत है. बस, बोल वचन (trumpery) कर रहा है ! आखिर यथा नाम तथा गुण तो होगा ही ना - trump से trumpery ! पुतिन संग ब्रोमांस (bromance) है सो चौबीस घंटे में रूस यूक्रेन युद्ध रुकवा देने का दावा कर दिया उसने ! नेतन्याहू तो उसकी जेब में ही थे मानो सो ये कहा रुको और इजरायल ने गाजा पर हमले रोके ! दूर दूर तक कोई देश नजर नहीं आता जो यूएस के कहे में हो, क्योंकि ट्रंप की न तो कोई सुनता है न ही कोई मानता. अंततः ना तो रूस और यूक्रेन ने युद्ध रोका और ना ही इजरायल ने गाजा पर हमले रोके !
दरअसल ट्रंप एक शुद्ध व्यापारी है, निज हित सर्वोपरि है. वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क यूएस की प्रेसिडेंट शिप को अपने निजी फायदे के लिए एक्सप्लॉइट कर रहे हैं. जब ऑपरेशन सिंदूर चल रहा था, यूएस ने साफ़ पल्ला झाड़ लिया था कि वह इंडिया को नियंत्रित नहीं कर सकता. थमने के बाद ट्रंप ने पाकिस्तान को भारत के समकक्ष बताते हुए उसकी प्रशंसा के पुल बांध कर भारत समेत विश्व को हैरान कर दिया था. वजह शुद्ध व्यावसायिक थी, ट्रंप परिवार के हिस्सेदारी वाली क्रिप्टोकरेंसी कंपनी वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल (डब्ल्यूएलएफ) का पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल (पीसीसी) से समझौता जो हो गया था ठीक पहलगाम घटना के चंद दिनों बाद ही ! साथ ही कंपनी के को प्रमोटर जैक विट्कॉफ स्टीव विटकाफ के बेटे हैं, जो ट्रंप के खास सलाहकार एवं पश्चिम एशिया में अमेरिका के विशेष दूत हैं.
हाँ, कथित भावी शांतिदूत ने खुद के अहम् को ऊपर रखने के लिए सीरीज ऑफ़ फेकिंग की, कभी कहा he brokered peace between India and Pakistan through trade and diplomacy, कभी व्यापार बंद करने की धमकी चमकी का असर बताया, कभी न्युक्लीअर भभकी भी दी, कभी कश्मीर मुद्दे पर मेडिएशन की बात की और कभी और कुछ कहा ! परंतु सारे के सारे ट्रंप कार्ड फेल हुए और फजीहत ऐसी हुई कि इंडिया के पीएम ने बात तक करना गवारा नहीं किया. उल्टे ट्रंप की पोल खोलने के लिए अपने मातहतों मसलन फॉरेन सेक्रेटरी, डिफेन्स सेक्रेटरी आदि को लगा दिया.
हाँ , डोमेस्टिक फ्रंट पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को इसमें अवसर नजर आया और वह हमलावर हुई ट्रम्प पर नहीं, अपने ही पीएम मोदी पर ! कहने का मतलब झूठे का विश्वास किया, अपने प्रधानमंत्री पर नहीं, जबकि वे बार बार दहाड़ रहे हैं पाक पर ! निपटना पाक से है, मान न मान मैं तेरा मेहमान ट्रम्प को भाव ही क्यों देना ! इसी सन्दर्भ में, बतौर हास्य, टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की विराट कोहली की घोषणा के बाद एक्स पर की गई इस टिप्पणी की याद आ गई कि भला ट्रंप ने इसकी घोषणा पहले ही क्यों नहीं कर दी? उन्हें तो अपने साथियों को सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने में खास मजा आता है और वे उनके साझा प्रतिद्वंद्वियों को खुश करने का दिखावा भी करते हैं.
मूर्खतापूर्ण बात ही है ना अमेरिका ने पाकिस्तान को भारत के समकक्ष रख दिया, लेकिन क्या किसी ने यह कहा है कि कश्मीर मसले पर बातचीत शुरू कीजिए और हमें उसमें मध्यस्थ बनने की पेशकश कीजिए? ट्रंप ने बोल बचन किया वह सिर्फ संघर्ष विराम करवाने में अपनी भूमिका के बारे में है. भारत ने जम्मू-कश्मीर का संवैधानिक दर्जा छह साल पहले खत्म कर दिया, किसे आपत्ति हुई दुनिया में ? हुई तो देश के भीतर ही हुई ! जहां तक बात तुर्की के, अजरबैजान के, पाक के साथ होने की बात है तो तुर्किए हमारे लिए मामूली हैसियत रखता है, और अज़रबैजान तो उतनी भी हैसियत नहीं रखता. जहां तक ‘ओआईसी’ की बात है, किस भी मुस्लिम मुल्क के पास इस लगभग निष्क्रिय संगठन के लिए वक़्त नहीं है. अभी हाल में इंडोनेशिया, बहरीन, और मिस्र जैसे अहम इस्लामी मुल्कों ने भारत की आलोचना करते हुए यह ध्यान रखा कि वह हल्की ही हो.
ट्रंप तो बेशर्म है, घर में कांग्रेस ज़रूर शर्मसार हो गई है जब थरूर ने बुश, क्लिंटन, ओबामा जैसे अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तारीफ करते हुए एक “सज्जन” को गरिमाहीन बताया. मिस्टर थरूर का निशाना इस कदर सटीक था कि एक ही तीर में दो शिकार कर लिए उन्होंने ! अमेरिका में घुसकर ट्रम्प (एक सज्जन) की ऐसी तैसी की और वहीं से यहां घर में भी अपनी ही पार्टी के सभी सज्जन नेताओं की लानत मलामत भी की ! तभी तो छुटभैया नेता उदित राज (छुटभैया ही कहेंगे ना चूंकि 2019 में बीजेपी छोड़कर पार्टी ज्वाइन की, जबकि थरूर साहब 2009 से लगातार चार बार के कांग्रेस के सांसद हैं) ने शशि थरूर जी को बीजेपी का सुपर स्पोकसपर्सन बता दिया ! ठीक ही कहावत है, विनाश काले विपरीत बुद्धि !
थरूर साहब ने जो कहा, अक्षरशः हिंदी अनुवाद निम्नलिखित है -
“यह मेरी जगह नहीं है, क्योंकि मुझे एक भारतीय राजनेता के रूप में बोलना होता है. इसलिए मुझे विदेशी राज नेताओं पर, खासकर उनकी जमीन पर, टिप्पणी करने से बचना चाहिए. फिर भी, यह एक तथ्य है कि हर व्यक्ति की अपनी राजनीतिक रुचि होती है. मेरी निजी तौर पर कोई राजनीतिक रुचि नहीं है. मैं यहां (अमेरिका में) कर नहीं देता, न ही मैं यहां का नागरिक बनना चाहता हूं, जबकि मेरे पास ऐसा करने का अधिकार था. इसलिए, मैं अमेरिका की प्रवासी या कर नीति पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. ये दोनों विषय नीति-निर्धारण से जुड़े हैं, और हर किसी की इन पर अपनी राय हो सकती है."
"लेकिन, किसी व्यक्ति का आचरण मुझे प्रभावित करता है. एक अमेरिकी नेता का व्यवहार ऐसा होना चाहिए जिससे आप सहमत हो सके, या कम से कम प्रभावित हो सके. मुझे चार-पांच अमेरिकी राष्ट्रपतियों से मिलने का अवसर मिला, जब मैं संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था. मेरी मुलाकात जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश, जॉर्ज डब्ल्यू. बुश, बिल क्लिंटन और बराक ओबामा से हुई. इन नेताओं में एक विशेष व्यक्तित्व और नेतृत्व की क्षमता दिखती थी. यह बात राजनीति से परे है इनमें से दो डेमोक्रेट थे और दो रिपब्लिकन. उनके भीतर एक स्टेट्समैन जैसी गरिमा, बौद्धिक क्षमता और नेतृत्व का भाव था. लेकिन एक “सज्जन” में मुझे ये सारे गुण पूरी तरह से नदारद लगते हैं. और यह मेरा निजी मत है.”
एक और वाहियात बात की गई, विदेश मंत्री एस जयशंकर को मुखबिर, जयचंद, मीर जाफ़र, JJ (जोकर जयशंकर) और ना जाने क्या क्या कहा गया ? वजह सिर्फ और सिर्फ इस बात की होड़ थी कि कौन कितनी स्वार्थ परक व ओछी राजनीति कर सकता है ? परंतु इस प्रतिस्पर्धा में कब राष्ट्र कमतर बताया जाने लगा, होश ना रहा नेताओं को ? जबकि पाकी लेफ्टिनेंट जनरल ने कह दिया कि this is again part of that amusement that is going on in the Indian meda.
दरअसल कांग्रेस के नेताओं में , प्रवक्ताओं में एक होड़ सी लगी है मोदी सरकार के खिलाफ कंटेंट क्रिएट कर पोस्ट करने की, जबकि हड़बड़ी में वे गड़बड़ी इस कदर कर बैठते हैं कि कंटेंट उल्टा पड़ जाता है, कुतर्क करने की उनकी कुत्सित मंशा खुद ब खुद एक्सपोज़ हो जाती है. अब देखिए न एक हैं जो स्वयं को शशि थरूर जी से ज्यादा अंग्रेजी के ज्ञाता समझते हैं !
कुल मिलाकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद राहुल गाँधी भले ही सरकार पर हमलावर दिखे पर कांग्रेस के सभी नेताओं का भी सुर उनके जैसा हो, ऐसा नहीं दिखा ! गठबंधन के सहयोगियों ने भी उदासीनता ही बरती ! सीज फायर के बाद संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की बार बार की जा रही उनकी मांग को समर्थन न तो शरद पवार का मिला, न ही अखिलेश और ममता मुखर्जी का ! जब कभी मोदी जी ने स्वयं या उनके मंत्रिमंडल से किसी ने ऑपरेशन सिंदूर के बारे में किसी भी मंच से कुछ भी कहा, वक्त की नज़ाकत को नजरअंदाज किया गया और "कहे" पर कुतर्क हुए और हो भी रहे हैं. पुरजोर तरीके ये भी पूछ डाला कि "कितने राफेल गिरे ?" जबकि पाक के स्वयं के सुर दबे दबे से ही थे जब पूछा था ! और हो क्या रहा था ? पाकी मीडिया रियल टाइम में भारतीय विपक्ष के सवालों को आधार बनाकर अपना नैरेटिव बखूबी रखने लगा ! परंतु इन सवालों पर कांग्रेस के ही कई नेताओं ने चुप्पी साध ली. सलमान खुर्शीद और पी चिदंबरम जैसे दिग्गजों ने राहुल के बयानों से एक तरह से किनारा कर लिया. युद्ध काल में बतौर नेता प्रतिपक्ष ऐसे सवालों को सियासी अपरिपक्वता माना गया. और राहुल की रही सही कसर शशि थरूर जी ने निकाल ही दी.

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