
भारत में पोकर को पिछले महीने अप्रत्याशित और अचानक लागू किए गए ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन और रेगुलेशन एक्ट से करारा झटका लगा। पोकर, जिसे कौशल के खेल के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसे एमआईटी में पढ़ाया जाता है, आईआईएम कोजीखोड़े में पढ़ाया जाता है, पोकर बूटकैंप है, अन्यान्य कोचिंग है, मेंटरशिप है ; जो एक ऐसा खेल है जिसका बौद्धिक मूल्य बहुत अधिक है, उसके खिलाड़ियों से कहा गया है कि 'अरे, नहीं, आप जुआ खेल रहे हैं, इसलिए हम आपको पूरी तरह से प्रतिबंधित कर रहे हैं'।"
लगा था ऑनलाइन रियल मनी गेमिंग को बंद करने के लिए डिज़ाइन किये गए इस क़ानून के खिलाफ ड्रीम्स 11, पोकरबाजी वगैरह जैसे 'बड़े खिलाड़ी' ही अपील को आगे बढ़ाएँगे, लेकिन बहुत जल्द ही ड्रीम 11 के प्रमोटर और संस्थापक सामने आए और कहा, 'नहीं, हम इस फैसले को स्वीकार करते हैं, और हमारे पास ई-स्पोर्ट्स के लिए एक वर्टिकल है। हम इसे विकसित करने जा रहे हैं। हम इसके खिलाफ अपील नहीं कर रहे हैं।" क्यों भाई ? कोई डील हो गई क्या मोदी सरकार से ?
हालाँकि कुछ छोटे ब्रांड्स — जिनमें रम्मी और पोकर प्लेटफ़ॉर्म A23 भी शामिल है — ने कर्नाटक, दिल्ली और मध्य प्रदेश राज्यों में उच्च न्यायालयों में अलग अलग अपील दायर की है। ग्राउंड्स मोटा मोटी तीन है - स्किल के खेलों को लक के खेलों से अलग किया जाना चाहिए, ये केंद्र सरकार का नहीं बल्कि अलग-अलग राज्यों का मामला है, और संवैधानिक रूप से संरक्षित 'पेशे के अधिकार' का भी।
उधर सरकार ने सभी मामलों को एक साथ करने की अपील के साथ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, ताकि उसे कई राज्यों में कई मामले न लड़ने पड़ें। यह सुनवाई अगले हफ़्ते होगी।
लेकिन फील तो यही है कि पोकर हार चुका है. फिर भी यदि कुछ लोगों को उम्मीद की किरण नजर आती है कि सुप्रीम फैसला हक़ में आ सकता है, तो बता दूँ इसी बीच भारत में ऑनलाइन पोकर की सफलता की संभावनाओं को और भी कमज़ोर करने के लिए एक और बड़ी बाधा खड़ी कर दी गई है। जब ऑनलाइन पोकर पहली बार भारत आया था, तब इस पर 18% जीएसटी लगता था, जिसे बाद में बढ़ाकर 28% कर दिया गया। दो दिन पहले, जीएसटी परिषद की बैठक हुई और आरएमजी को 40% के नए 'पाप कर' वर्ग में शामिल कर दिया गया।
अगर कोई रियल मनी गेमिंग की पेशकश करता है, तो यह अवैध होगा, लेकिन जमा राशि पर 40% कर भी लगेगा, पोकर रूम खोलने वाला कोई भी व्यक्ति न केवल अवैध रूम चलाने के लिए अपराधी होगा, बल्कि जमा राशि के 40% के बराबर जीएसटी की मांग के साथ-साथ देर से भुगतान करने पर जुर्माना भी देना होगा। कुल मिलाकर यदि सुप्रीम फेवर मिला भी तो हाल वो हो कि आसमान से गिरा खजूर में लटका हो !
निःसंदेह कुछेक राज्यों के अपने क़ानून वैध फिजिकल कैसीनो और/या कार्ड रूम की अनुमति देते हैं, लेकिन फिर वही सत्तारूढ़ दल द्वारा अपनाए जा रहे कड़े जुआ-विरोधी रुख का कहर टूटता ही है. वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के बीच, अधिनियम की घोषणा के अगले दिन ही ईडी द्वारा गोवा के पाँच कैसीनो सहित 30 ऐसे प्रतिष्ठानों पर कई तलाशी और छापे मारे गए। ऐसा लगता है कि यह सब जुए पर कड़ी कार्रवाई करने वाली सरकार की कहानी गढ़ने के लिए रचा गया है, एक ऐसी गतिविधि जिसे कई लोग नैतिक रूप से संदिग्ध मानते हैं, लेकिन जिसका देश में एक लंबा इतिहास रहा है — पूरी तरह से कानूनी भी और कम कानूनी भी।
कभी मटका था, सिंगल नंबर लॉटरी है, कॉटन का, जूट का फाटका होता था, बारिश का फाटका होता था ; जुआ तो आदिकाल से भारतीय संस्कृति का एक पहलू रहा है, और जैसे-जैसे आधिकारिक रास्ते बंद होते हैं, स्वाभाविक प्रभाव यह होता है कि अधिक संख्या में लोग जुआ खेलने के लिए कम आधिकारिक जगहों (ग्रे मार्केट्स) को चुनते हैं. पोकर के मामले में, जबकि स्किल भी इंवॉल्वड है फिर भी, अनियमित और संभावित रूप से असुरक्षित ‘ग्रे मार्केट साइट्स’ वाली स्थिति आदर्श तो नहीं होगी ना !
वे ग्रे साइट्स अभी भी मौजूद हैं, उन पर इनमें से कोई भी दंड लागू नहीं होता। रेग्युलेट करने के बजाए सेवा प्रदान करने के कार्य को क्राइम घोषित करके, वे लोगों को ग्रे साइट्स पर जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। अगले 6 से 8 महीनों में हम ऐसे लोगों की डरावनी कहानियां सुनने लगेंगे जो ग्रे साइट पर खेलने के कारण पैसे गँवा रहे हैं और हद से ज़्यादा जोखिम उठा रहे हैं।
शीर्ष अदालत क्या करेगी ? सुप्रीम फरमान यही होगा, 'चुप रहो, बाहर निकलो, बात खत्म। हमें कुछ नहीं करना है क्योंकि यह एक कानून है, यह संविधान के खिलाफ नहीं है, आदि आदि आदि, अलविदा'। और बिल्ली के भाग से छींका टूटा भी यदि कि स्टे मिल गया तो क्या साइटें 40% जीएसटी के साथ वापस आ जाएँगी? वे ऐसी परिस्थितियों में काम नहीं कर सकतीं, उन्हें नुकसान होगा।
इफ़ेक्ट जो हुआ है वह है इकोनॉमी से पैसा ही नहीं, बल्कि नौकरियां भी हटा रहा है. और जो खिलाड़ी सिर्फ़ पोकर जानते हैं, वे ग्रे साइट्स पर चले जाएँगे, उनके लिए सुरक्षा कम होगी, और वे सभी समस्याएं, जिनके समाधान के लिए सरकार कोशिश कर रही है, और भी बदतर हो जाएँगी। तब लोग कहेंगे, 'देखो, सरकार सही थी, यह तो बुरा है।'"
कुल मिलाकर ऐसे समाधान की उम्मीद कम ही हैं जो भारत के पोकर खिलाड़ियों को खुश कर सके ! परंतु इन खिलाड़ियों के पास जुगाड़ है क्योंकि इंडियन जो हैं. सो तय मानिए जुगाड़ लगेगा ही लगेगा जिससे बिल्कुल रियल मनी वाले गेमिंग को ईस्पोर्ट्स गेमिंग में फिट करने का तरीका निकलेगा, और कुछ ऐसा सामने आएगा जहाँ खिलाड़ी पोकर का कोई न कोई रूप खेलेंगे, उनके लिए लाभदायक भी होगा और वह लीगल भी होगा । हिंदी में एक शाश्वत कहावत है - तू डाल डाल मैं पात पात !

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