5G युद्ध तो और आगे बढ़ रहा है, सोशल मीडिया पर संघर्ष विराम कब होगा ?

अजीब है ना ! युद्ध की विभीषिका में कुछ युवा अपने अंगों और जीवन का बलिदान देते हैं, अन्य युवा ट्विटर पर बैठकर बकवास करते हैं. पता नहीं क्या है मन में, परंतु लग तो यही रहा है कतिपय मीडिया चैनल, कथित अतिरंजित प्रवक्ता गण (जिनमें राजनीतिक पार्टियों के नेता है, स्वयंभू विश्लेषक हैं) पूरी तरह से युद्ध चाहते थे. निःसंदेह भारत सरकार के पास समझदार लोग हैं जो छाती पीटने वालों से प्रभावित नहीं होते. उन्होंने वही किया जो भारत के दीर्घकालीन हित के लिए सबसे अच्छा है. संदेश कड़ा और स्पष्ट गया है. अब युद्ध विराम का स्वागत है.                      

महत्वपूर्ण बात समझिए एप्पल पाकिस्तान की बजाय भारत में iPhone उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना बना रहा है.  जाहिर है, युद्ध जारी रहता है तो हमें नुकसान ही होगा. संघर्ष विराम, मान भी लें ट्रंप क्रेडिट ले रहा है, पर विचार कर सहमत होने से  कोई कमजोर नहीं बनता. यह समझदारी है. यह “ठोक दो” “मार दो” वाला रवैया किसी को ज्यादा देशभक्त नहीं बनाता. यह सिर्फ़ दिखाता है कि या तो आप भावनाओं से प्रेरित हैं, या फिर आपका कोई हिडन एजेंडा है. 
वैसे ट्रंप तो आदतन अपने मुंह मियां मिट्ठू बनता रहता है, अब दुनिया उसे सीरियसली नहीं लेती. हाँ, हड़कंप जरूर मचा देता है क्योंकि बाई डिफ़ॉल्ट वह विध्वंसक है. माने या ना माने सभी के मन की बात तो युद्ध विराम के लिए ही है. सोशल मीडिया पर, खासकर ट्विटर पर, हो रही बुलशिट( क्षमा करें ) की वजह दीगर है.  काबिलेगौर है कि पार्टियों के प्रमुख नेता संयमित है, किसी भी तरह की कोई आपत्तिजनक बात नहीं कर रहे हैं.  जो भी हो रहा है वह छुटभैये नेताओं द्वारा हो रहा है, चाहे विपक्ष के हों या फिर सत्ता पक्ष के. उकसावा दोनों तरफ से हैं. चूंकि इन बोलबचनों को रोका नहीं जा रहा है, तो क्या पार्टी सुप्रीमो की मूक सहमति है ? 
सपा सुप्रीमो के दो शब्दों  'शांति सर्वोपरि है और संप्रभुता भी' ने दिल जीत लिया है. यही समस्त पार्टियों के मन की बात भी है. परंतु मातहतों ने, खासकर कांग्रेस के नेताओं ने, तो इस कदर गंध मचा दी है कि ड्रोन भी शर्मा रहे हैं. पीएम को  नीचा  दिखाने के लिए अपनी ही महान इंदिरा गांधी को भी इस कीचड़ में घसीट ले रहे हैं. इंदिरा जी कैसे प्रासंगिक हो गयी आज ? कुछ पत्रकारों , जिनकी दाल मौजूदा सरकार में नहीं गल रही है, का भी साथ मिल जा रहा है. IMF ने पाक को ऋण दे दिया तो मोदी को जिम्मेदार ठहरा दे रहे हैं. एक बता रहा है कि बीजेपी बैठ गई तो हम क्या करें ? फॉर दैट मैटर तो कांग्रेस बासठ में , पैंसठ में और फिर इकहत्तर में भी बैठ गई थी ! और 26/11 हुआ तब तो सो ही गई थी.  एक पत्रकार तो इमरजेंसी को भी जस्टिफाई इसलिए कर दे रहा है कि इंदिरा जी ने कहकर लगाई थी ! कौन नहीं जानता कि पोस्ट 1971 वॉर इंदिरा जी ने यूएस और चीन के दबाव में युद्धबंदियों को शिमला समझौते की महज खोखली बातों के बदले छोड़ दिया था ? हम नहीं कहते इंदिरा जी ने गलत किया था, तब राष्ट्राध्यक्ष होने के नाते उन्होंने जो भी निर्णय लिया या उन्हें जो भी निर्णय करना पड़ा, राष्ट्रहित में था. कुल मिलाकर दो चार दिनों की राष्ट्रवाद के नाम पर एकजुटता दिखाने भर की थी, राजनीति ही थी ! ऑन ए लाइटर नोट, इसी बहाने ब्रेक ले लिया ना ! दरअसल इस वॉर को छेड़ने के लिए कशमकश तब से चल रही थी जब से बीजेपी ने ट्वीट किया कि  "The message to the enemies is loud and clear. 𝐃𝐨𝐧'𝐭 𝐦𝐞𝐬𝐬 𝐰𝐢𝐭𝐡 𝐮𝐬! Unlike the UPA' passivity, New India has no patience for futile peace talks." 

और जब देश को सीज फायर की फर्स्ट हैंड इनफार्मेशन डोनाल्ड ट्रंप से मिली, कांग्रेस तंत्र एक्टिव हो गया.  परंतु कहते हैं ना जल्दी का काम शैतान का ! मोदी को कमतर दिखाने के लिए इंदिरा को प्रासंगिक बनाकर भारी भूल कर दी है इन छुटभैये नेताओं ने ! भाजपाई तंत्र पलट दूर तलक कब्र जो खोदने लगा है. पाकिस्तान को लेकर शुरू से 'क्या खोया क्या पाया' बता रहा है. 

एक और बात, सिर्फ और सिर्फ मोदी को नीचा दिखाने के लिए आपका कम्पलीट यू टर्न आपके ही सुरक्षित वोट बैंक में सेंध लगा रहा है. खुलकर बोलना उचित नहीं है, समझदार के लिए इशारा काफी है. कल आप ही के नेताओं ने ऐसे विचार  'युद्ध नहीं होना चाहिए ......... क्या भारत में मुस्लिम 'स्वीकार किये गए, प्रिय और सम्मानित महसूस करते हैं  .......आतंकियों के पास धर्म पूछने का समय नहीं होता .........पाकिस्तान यह दावा करता है कि वह पहलगाम हमले में शामिल नहीं है, तो हमें पाकिस्तान की बात को मानना चाहिए .......आदि' वोट बैंक के लिए ही तो प्रकट किये थे ! 

क्यों नहीं सभी इस बात से सहमत होते कि "हम उस स्थिति में पहुँच गए थे जहाँ तनाव अनावश्यक रूप से नियंत्रण से बाहर हो रहा था. हमारे लिए शांति आवश्यक है. सच तो यह है कि 1971 की परिस्थितियाँ 2025 की परिस्थितियाँ नहीं हैं.  फर्क हैं... यह ऐसा युद्ध नहीं था जिसे हम जारी रखना चाहते थे. हम सिर्फ़ आतंकवादियों को सबक सिखाना चाहते थे, और वह सबक सिखाया गया है. यक़ीनन सरकार पहलगाम की भयावहता को अंजाम देने वाले विशिष्ट व्यक्तियों की पहचान करने और उनका पता लगाने की कोशिश जारी रखेगी..." और यह कांग्रेस के ही अनुभवी, विद्वान और बड़े एक नहीं दो दो नेताओं ने कहा है !  हालांकि सिब्बल साहब ने वाजिब कहा कि कई बातें हैं जिनका उत्तर पीएम ही दे सकते हैं और इसके लिए बेस्ट प्लेटफार्म है संसद। बातों को हवा दी है चौधराहट का दावा करने वाले बड़बोले ट्रंप ने ! यूएस के ही एक प्रतिष्ठित प्रिंट मीडिया ने क्या खूब कहा, "Announcing a U.S. brokered Ceasefire between India and Pakistan" इस नामाकूल ट्रंप को पता है समस्या आतंकवाद है, लेकिन उसने जानबूझकर कश्मीर का राग छेड़ दिया ! पाक तो बाग़ बाग़ हो उठा ना ! 

ऐसी ही मांग कांग्रेस प्रेजिडेंट खड़गे जी ने भी रखी है.  ठीक भी है, जवाब तो देना ही पड़ेगा पीएम को, सीज फायर के लिए सहमत होने पर छायी धुंध तो साफ़ वही करेंगे ना ! हालांकि उन्होंने जो भी निर्णय लिया, राष्ट्रहित में ही लिया होगा और निर्णय लेने के पहले तमाम स्टेकहोल्डर्स मसलन आर्मी चीफ, NSA चीफ, फॉरेन मिनिस्टर, होम मिनिस्टर आदि ने मिल बैठकर मंथन किया होगा. पीएम के निर्णय के लिए इन विपक्षी पार्टियों द्वारा अपने अपने छुटभैयों को  "हिट बिलो द बेल्ट"  टाइप उनपर अनर्गल बातें करने के लिए फ्री हैंड देना राष्ट्र के लिए चिंता का सबब है, हरगिज राष्ट्रहित में नहीं है.
मकसद पाक को सबक सिखाना था, खूब सिखाया गया ; जो खामियाजा उसने भुगता है, दशकों याद रखेगा ! ऐसा सरकार नहीं कह रही है, बल्कि सरकार द्वारा फ्री हैंड दिए जाने के पश्चात ऑपरेशन सिंदूर करने वाली राष्ट्र की गोरवशाली सेना के तीनों अंग कह रहे हैं, बाकायदा सबूतों के साथ ! थोड़ा सोचने की ज़रूरत है, जब भी कोई ऐसी लड़ाई होती है, उसमें मासूम और आम लोगों को, जिनका युद्ध से कोई लेना-देना नहीं है, नुकसान उठाना पड़ता है.  उनकी जान जाती है. जवानों को शहीद होना पड़ता है. पाक को सबक के लिए “100 से ज्यादा आतंकवादियों का खात्मा, बेवजह आर्टिलरी सेलिंग के लिए उसके 30-35 अफसरों जवानों का मारा जाना, उसके फाइटरजेटस का गिराया जाना, तक़रीबन सभी कुख्यात आतंकी ठिकानों का खात्मा, अनेकों सैन्य संसाधनों, एयरबेसों, डिफेन्स एयर सिस्टम्स आदि” का नाश कम है क्या ? फिर ऐसा तो नहीं है कि हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ ! कुछेक जवान शहीद हुए, जानमाल का भी नुकसान हुआ !
एक और बात जो समझ के परे है इन नेताओं की ! दम भरते हैं कि हमें सेना पर गर्व है, पूरा विश्वास है, उनसे कोई सवाल नहीं ! तो फिर केंद्र सरकार, जिसके अधीन सेना है, की इस कदर टांग खींचने की वजह एक ही हो सकती है कि मोदी सरकार है ! देखिए ना पिछले दिनों कतिपय प्रिंट मीडिया सीएनएन के हवाले से तूल देते अन्य एंटी गवर्नमेंट प्रिंट, मसलन टेलीग्राफ, वायर, बीबीसी, ने इंडिया के सबसे अधिक मारक और अत्याधुनिक राफ़ेल जेट विमान के गिराए जाने की ख़बर खूब चलाई थी. आर्मी ब्रीफ़िंग के दौरान इस पर सवाल पूछे जाने पर एयर मार्शल चीफ ने इग्नोर करते हुए (स्वीकारा नहीं तो इंकार भी नहीं किया) कहा कि वॉर में नुकसान अवश्यंभावी है ; हमारे सभी पायलट सुरक्षित लौट आए, बड़ी बात है. अब जो रिएक्शन होगा आजकल में ही, यही होगा कि राफ़ेल सौदे की बखिया उधेड़ते हुए मोदी सरकार को सूली पे चढ़ाने में विपक्ष कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा !
दरअसल भारत और पाकिस्तान के सीज फायर के दो कटु पहलू हैं - पहला तो यूएस की कलाबाजी, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना जो बनने चला था और वह भी बदनाम सोशल मीडिया के मार्फ़त ! हालांकि भारत ने इस पर आधे घंटे बाद ही यह कहते हुए पिक्चर साफ कर दी कि पाकिस्तानी DGMO के फोन के बाद दोनों देश सहमति तक पहुंचे हैं. ट्रंप ने भले ही सीज फायर की खबर ब्रेक की, लेकिन फैसला भारत-पाक के स्तर पर हो चुका था. अमेरिका सीन में कहीं नहीं था. सुबह 9 बजे से ही दोनों देशों के बीच बातचीत की लाइन खुल चुकी थी. पाकिस्तान के DGMO का फोन भारत आ चुका था. दूसरा पहलू है पाकिस्तान की आदतन दग़ाबाज़ी, उसी दिन तीन घंटे बाद ही सीज फायर तोड़कर अपना DNA दिखा दिया !  

खैर ! सिद्धांततः सीज फायर हो चुका है , एकबारगी मान भी लें अमेरिका ने करवाया है तो उससे क्या फर्क पड़ेगा यदि इंडिया अपनी शर्तों, मसलन कश्मीर के मामले में किसी की भी मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं, पीओके से कम पर कोई एग्रीमेंट नहीं, भविष्य में किसी भी आतंकवादी घटना को एक्ट ऑफ़ वॉर माने जाने का निर्णय, सिंधु समझौते में आमूल चूल परिवर्तन आदि पर अडिग है ! सो वॉर टग ऑफ़ वॉर तक हुआ सो हुआ, ज्यादा खिंचा और रस्सी टूट गई तो नुकसान भारी ही होना है, जिसे पीढ़ियां भुगतती है !                  

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Prakash Jain

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