
याद कीजिए साल 2023 में कांग्रेस ने बिहार में हुए जातीय सर्वेक्षण के बाद इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया था, मीडिया के दफ्तरों में बैठे विश्लेषकों ने निष्कर्ष निकाल दिया था कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी को भारी नुकसान होने जा रहा है. हुआ क्या था ? बीजेपी ने एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सभी अटकलों को खारिज करते हुए बहुमत से ज्यादा सीटें हासिल कर ली थी. तब बीजेपी ने अपने चिर-परिचित वोट बैंक के अलावा बड़ी संख्या में ओबीसी वोट भी हासिल किया था.
कहने का मतलब राहुल गांधी अगर पिछड़ी जातियों की राजनीति करेंगे तो नहीं चलेगा ! यही तो वी पी सिंह जी के साथ हुआ था, मंडल कमीशन लागू किया, फिर भी ओबीसी समुदाय को रास नहीं आये थे वे ! फिर राहुल ने भारी भूल कर दी कि जाति जनगणना के लिए बिहार मॉडल को धत्ता बताते हुए तेलंगाना मॉडल की मार्केटिंग कर दी. जनता अपना आइकन खोजती है और राहुल गांधी पिछड़ी जातियों के आइकन नहीं हैं. इसीलिए मध्य प्रदेश में, राजस्थान में, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का दांव नहीं चला था. कुछ यूँ समझे इस बात को कि राहुल गर्व से बताते फिरे कि वे दत्तात्रेय ब्राह्मण है, टेम्पल रन भी करें, उनके सीएम के प्रत्याशी कमलनाथ हेलीकॉप्टर से पहुंचकर धीरेन्द्र शास्त्री के समक्ष शीश झुकाए, ओबीसी समाज कैसे विश्वास करे जबकि इसी महान पार्टी ने तक़रीबन 54 सालों तक देश पर शासन किया और जातिगत जनगणना नहीं कराई, साथ ही जब साथ खड़े होने की बात आई तब राजीव गाँधी ने विरोध में लंबा चौड़ा भाषण दे दिया था ! पंडित नेहरू भी जातीय आधार पर आरक्षण के पक्षधर नहीं थे. उन्होंने तो इसके विरोध में मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा था. अब उसी कांग्रेस और उन्हीं नेहरू के वारिस जातीय आधार पर जनगणना कराकर सरकारी सेवाओं, संस्थानों में आरक्षण का दायरा बढ़ाने की और यहाँ तक कि प्राइवेट संस्थानों में भी आरक्षण लागू करने की वकालत कर रहे हैं. सारा का सारा वितंडावाद स्वार्थ परक वोट बैंक की राजनीति है, वरना तो बताएं कोई क्या वे प्राइवेट में इस प्रकार आरक्षण लागू करेंगे कि फलाना व्यवसाय फलानी जाति के लिए आरक्षित है, क्या कॉर्पोरेट जगत में सीईओ से लेकर अन्यान्य एग्जीक्यूटिव में पचास फीसदी ओबीसी होंगे, बीस फीसदी अनुसूचित जाति और दस फीसदी आदिवासी होंगे ? फिर एक समय तो नारा हुआ करता था, न जात पर न बात पर, मोहर लगेगी हाथ पर ! आज भी तो एक पोलिटिकल टूल के मानिंद कर्नाटक में सर्वे कराया तो बताया नहीं और तेलंगाना में बताया तो भी मंत्रिमंडल में ही पिछड़ों का, अति पिछड़ों का , दलितों का , आदिवासियों का अपेक्षित अनुपात कहाँ बना पाए ? क्या कोई रोडमैप दिया कैसे कॉर्पोरेट जगत में सीईओ, मैनेजर या फाउंडर/ओनर ओबीसी होगा चूँकि आज तो तेलंगाना का कोई कॉर्पोरेट ऐसा नहीं है ? कथनी और करनी का फर्क आज का जनमानस खूब समझता है.
बात मोदी सरकार की करें तो यू टर्न में उनकी राजनीतिक दूरदर्शिता है. 2017 में ही ओबीसी के बीच आरक्षण लाभों के अधिक न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करने के लिए रोहिणी आयोग का गठन कर दिया था. और इसी आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए जाति जनगणना की घोषणा कर दी, जबकि 2021 में, लोकसभा में एक जवाब में, केंद्र ने कहा था कि उसने नीति के तौर पर एससी और एसटी से परे जाति-वार डेटा की गणना नहीं करने का फैसला किया है. और टाइमिंग तो होती ही है बीजेपी की परफेक्ट ! बिहार जो फ़तेह करना है ! और फिर बीजेपी ने भांप जो लिया था कि विपक्ष के अभियान के कारण, सामाजिक न्याय की राजनीति के माध्यम से हिंदू एकता कमजोर पड़ सकती है. सरकार किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने दे सकती. अब, जाति जनगणना हिंदुओं के बीच ओबीसी को मजबूत करने में मदद करेगी. आरएसएस एकता के बाकी काम को आगे बढ़ा सकता है. इसके अलावा बातें और भी कई हैं जिसे सरकार दुरुस्त करेगी मसलन उप वर्गीकरण, ओबीसी क्रीमी लेयर की पहचान आदि आदि. पहले भी बीजेपी ने दलित-आदिवासियों के बीच में भी उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे पर काम किया है. लेकिन वो मंडल की राजनीति नहीं थी, वो कमंडल का ही विस्तार है. जातिगत जनगणना कराकर बीजेपी अपनी कमंडल की राजनीति को उन जगहों तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त कर रही है जहाँ पर मंडल की राजनीति होती है. यक़ीनन जाति जनगणना के आंकड़ों को बीजेपी बखूबी यूज़ कर ले जायेगी मंडल का कमंडलीकरण करने के लिए.
देश के दो सबसे बड़े राज्य हैं जहाँ ओबीसी की राजनीति अहम् है - बिहार और उत्तरप्रदेश ! लेकिन बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी के बीच एक मजबूत आधार बनाकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी के यादव-मुस्लिम कॉम्बिनेशन को पीछे छोड़ दिया है. साल 2019 में बीजेपी की जीत के पीछे यह वर्ग प्रमुख कारण रहा. हाँ, लोकसभा में ज़रूर सेट बैक था बीजेपी के लिए, चूंकि संविधान लहराया क्लिक जो कर गया. हालांकि यूपी के पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक ने जरूर सचेत कर दिया सत्ता को कि संभल जाओ ! और मोदी सरकार ने किँचित भी देरी नहीं की है संभलने में !
दरअसल विपक्ष की राजनीति का एक प्रकार से दम निकाल दिया है जाति जनगणना की घोषणा कर ! मुद्दा तो हाथ से निकल गया ना ! अब बस बातों में श्रेय लेते रहो , क्या होगा ? क्या जनता से छिपा है कि लालू की, अखिलेश की ओबीसी राजनीति से सिर्फ और सिर्फ परिवार का ही भला होना है, जबकि दोनों ही परिवार आज पोलिटिकल सुपर रिच क्लास को बिलोंग करते हैं ? गांधी परिवार भी तो वही क्लास है और ऊपर से ब्राह्मण कहलाना उनका शग़ल है.
और अंत में, राजनीति से इतर समझ लीजिये, जाति जनगणना जातिवाद को संस्थागत करेगा और सामाजिक एकता को कमजोर करेगा. 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों और सामाजिक तनाव इसका उदाहरण है. जाति जनगणना के बाद OBC, SC, और ST की सटीक आबादी और उनकी स्थिति का पता चलेगा. 1990 में केवल अगड़ों ने संघर्ष किया था. पर अब दलित-आदिवासी और ईबीसी जातियां भी आंदोलनकारी होंगी. बहुत सी ऐसी जातियां हैं जो बहुत पिछड़ी हैं पर वो संख्या बल में कमजोर हैं. उनके साथ कैसे न्याय होगा, यह विचारणीय है. जाहिर है कि पिछड़ी जातियों में ही खींचतान बढ़ेगी. लोग मरने मारने पर उतारू होंगे. उच्च जातियों में भी यह डर पैदा हो सकता है कि उनकी हिस्सेदारी कम होगी. इसके चलते एक बार फिर अगड़ा बनाम पिछड़ा वर्ग का तनाव बढ़ेगा. जैसा कि 1990 में देखा गया था. 1990 में तनाव जल्दी ही शांत हो गया था. इसका कारण था कि लोगों को अपना संख्या बल नहीं पता था. इस बार संघर्ष होगा तो रुकने का नाम नहीं लेगा.
एक और बात कहे बिना नहीं रहा जा रहा है. आज तो पचास फीसदी आबादी अर्बन है, यूथ कहाँ जाति वाति के पचड़े में है ? विजातीय शादियां खूब हो रही हैं. आज जो खूब उछल रहे हैं तेजस्वी, शादी उन्होंने भी अपनी ईसाई मित्र रेचल से की है ! कहने का मतलब जाति विहीन समाज की ओर तेजी से बढ़ते देश को फिर से जातिवाद में धकेल दिया जा रहा है ! साल 2011 में जब पहली बार जाति पूछी गई थी तो तक़रीबन 46 लाख परिवारों ने जाति बताने से इंकार कर दिया था. अब वह आदर्श स्थिति तो आने से रही कि सारा देश जाति बताने से इंकार कर दे ! जबकि जात पात से मुक्ति तब तक संभव नहीं है जब तक रोटी और बेटी का रिश्ता जात पात से मुक्त न हो जाए ! खैर ! जो होना है वो होगा ! जिस प्रकार के डाटा आये हैं तेलंगाना के और बिहार के कास्ट सर्वे के, सामान्य वर्ग बचा ही कितना ? ऑन ए लाइटर नोट, उस सुकून का इंतजार है जब सामान्य वर्ग पूर्णतया एलिमिनेट ही हो जाएगा !

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