
ऐसे संवेदनशील समय में जव्वाद शेख की गजल की दो लाइनें सियासतदानों पर खरी उतरती है. आज संकट में राष्ट्र है, राष्ट्रीय सरकार है, पीएम, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री राष्ट्र के हैं ; राष्ट्र है तो पोलिटिकल पार्टियां हैं . विपक्ष यदि एकजुट है तो फ़िलहाल भूल जाएँ ना फलां भाजपाई है, कोंग्रेसी है, समाजवादी है या किसी अन्य गुट का है ! पॉलिटिक्स करना, खेला खेलना/करना बिल्कुल पसंदीदा शगल है नेताओं का, परंतु जब अभी एक ही पाला है, तब "खेला होबे" क्यों और कैसे ? चूंकि हो रहा है, तो यही कहा जा सकता है कहने भर को एकजुट हैं, बाकी तो "कुत्ते की पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी" !
जो हो रहा था, बदज़ुबानी हो रही थी, दोनों तरफ से ही ; लेकिन इस प्रतिस्पर्धा में इस बार विपक्ष ने खासकर कांग्रेस ने बाज़ी मार ली, कांग्रेस के बड़े बड़े नेताओं ने सीरीज़ ऑफ़ नॉनसेंस बातें की. हालांकि विपक्ष के दो दिग्गज नेता उमर अब्दुल्ला (चीफ मिनिस्टर जम्मू कश्मीर) और असुबुद्दीन ओवैसी ने ख़ूबसूरत बातें की, उनके संयत और संतुलित बयानों की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है. उसी लाइन पर कांग्रेस के अनुभवी नेता शशि थरूर ने बयान दिया तो पार्टी के ही दीगर नेताओं ने उनको भाजपाई बताने से भी गुरेज नहीं किया.
पार्टियां अपने ही नेताओं के बयानों से किनारा क्यों करने लगती है ? जवाब स्पष्ट है, बयान भारी जो पड़ने लगे ! सो भागते भूत की लंगोटी ही भली ! अभी हफ्ता भर पहले ही पहलगाम के पास बैसरन घाटी के मनोरम मैदान में सैलानियों और हनीमून मनाने गए जोड़ों की भीड़ पर आतंकवादी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. उस हमले ने देश में फिर से देशभक्ति और अंधी राष्ट्रीयता की लहर पैदा कर दी. टीवी न्यूज़ चैनलों पर तमाम रंग के विशेषज्ञ, राजनेता, प्रवक्ता तार्किकता का अक्सर कोई लिहाज़ किए बिना अपनी टिप्पणी और सलाह देने लगे. भिन्न भिन्न पार्टियों के बोलबचनों का तो कहना ही क्या ? कहने को सबने सुर में सुर मिलाये कि पाकिस्तान के होश तभी ठिकाने लगेंगे जब उसे घेर कर दुनिया में अलग-थलग कर दिया जाएगा.
सख्त जवाब देना बहुत ज़रूरी है, लेकिन वह जवाब ऐसा हो जिसके साथ सफलता का आश्वासन जुड़ा हो. वह जवाब कब, कहां और किन साधनों के ज़रिए दिया जाएगा यह सब तय करना राष्ट्र की सरकार का, सुरक्षा से जुड़े हर महकमे का काम है, हर किसी ऐरे गैर नत्थू खैरे का नहीं ! देश के बाहर और साथ ही अंदर भी आतंकी लोगों की पहचान करना और उनके खिलाफ कार्रवाई करना असली चुनौती है. हमें सिर कलम करना है, चाहे यह कानूनी जंग से हो या सैन्य उपायों से. इसी के साथ हम सबको एक अवाम के रूप में अपना संतुलन नहीं खोना है, ताकि अनजाने में हम आतंकवाद के इस खेल के मोहरे न बन जाएं. हमें सरकार को भी समय देना होगा ताकि वह उपयुक्त जवाब सोच और दे सके.
अब बात कर लें इस वाकये की, जिसने असंवेदनहीनता की चरम सीमा भी लांघ ली ! पता नहीं किस महान क्रिएटर ने ऐसी क्रिएटिविटी की कि लोग कहने लगे क्या खूब "प्रिडिक्टिबिलिटी" दर्शा दी ! भई ! ऐसा कुछ था भी तो मन में ही रख लेना था ना ! जाहिर कर एक्सपोज़ क्यों हो गए ? कांग्रेस के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से जिम्मेदारी के समय "गायब" शीर्षक के तहत एक "सर तन से जुदा" भगवा कुरता पहने शख्स का कैरीकेचर टाइप पोस्ट हुआ, जिसे बाद में डिलीट भी कर लिया गया. निःसंदेह बेहद ही संवेदनशील समय में बेहद अफसोसजनक, आपत्तिजनक, शर्मनाक, घटिया पोस्ट किया कांग्रेस ने ! अपने वोट बैंक के लिए दूसरे सबसे बड़े बहुमत को खुश करने की कोशिश में खुद को खो दिया पार्टी ने, खुलेआम सर तन से जुदा का चित्रण किया जो इस समुदाय के कट्टरपंथियों का एक विवादास्पद वाक्यांश है, जिसने भारत में प्रमुखता प्राप्त की थी. उर्दू कहें या हिंदी में, इसका शाब्दिक अर्थ है "शरीर से अलग सिर" या "सिर काटना".! और यही पार्टी के लिए शर्मिंदगी का सबब बना क्योंकि एक तो इस नाजुक समय में ऐसा संवेदनहीन पोस्ट डाला और फिर डिलीट किये जाने के पहले तक तमाम प्रवक्ता गण इसे जस्टिफाई करने के लिए कुतर्क करते रहे, अनर्गल प्रलाप करते रहे.
दरअसल पता नहीं हो क्या गया है इस ग्रैंड ओल्ड पार्टी को, जो कभी बगैर तोले मोले नहीं बोलती थी. आज तो जो बोलती है, उल्टा ही पड़ता है. इस कदर उल्टा पड़ता है कि वे अनजाने ही पाक/चीन के पक्षधर दिखने लगते हैं. सिद्धारमैया से लेकर सैफुद्दीन सोज तक. महाराष्ट्र से विजय वडेट्टीवार भी ऐसी बात बोलते हैं कि कांग्रेस की फजीहत होने लगती है. खबर आती है कि कांग्रेस आलाकमान नेताओं के लिए गाइडलाइन जारी करने जा रहा है - और फिर ये भी बताया जाता है कि आलाकमान को पोस्टर भी नागवार गुजरा है. पोस्टर डिलीट तो कर दिया गया, लेकिन उसके बाद. जिस किसी जिम्मेदार पदाधिकारी ने पोस्टर को अप्रूव किया गया होगा, क्या उसके खिलाफ भी कोई कार्रवाई हो रही है...? अगर कोई एक्शन नहीं लिया जाता, तो ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा. अगर वो पोस्टर गलत था, तो सोशल मीडिया पर पोस्ट ही क्यों किया गया? गलत नहीं था तो डिलीट क्यों किया ? एक बार कमिट करने के बाद तो कांग्रेस को खुद की भी नहीं सुननी चाहिये, लेकिन ये तो बीजेपी के प्रभाव में आ जाने जैसा लगता है. कहने को तो बीजेपी ने भी धर्म पूछा जाति नहीं पूछी वाला ट्वीट डिलीट कर दिया था, जबकि एंटी हाइप कहां था ? परंतु गायब वाले इस पोस्ट को पार्टी जस्टिफाई नहीं कर पाई और अंदरखाने ही असंतोष जोर पकड़ने लगा था ! किसी अपने ने तो यहां तक कह दिया कि जिम्मेदारी के समय गैर जिम्मेदारी का परिचय दिया है पार्टी ने, इससे बेहतर तो यही होता कि पार्टी गायब ही रहती !

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