नेटफ्लिक्स वेब सीरीज "द फेम गेम" : स्क्विड फाइंडिंग ऑफ़ ए ग्लैमरस हीरोइन !

किसी का कमाल का शेर हैं -कमाल कुछ भी नहीं और शोहरतों की तलब, संभाल के तीर चलाना निशान ऊँचा है ! शोहरत बनाये रखने के लिए ग्लैमर की दुनिया में रचे गए खेलों का तमाशा है वेब सीरीज द फेम गेम लेकिन करण जौहर कैंप ने शोहरतों की तलब के लिए जो तीर चलाए हैं वे निशाना चूक गए हैं।  

उत्सुकता थी कि धक् धक् गर्ल टर्न्ड वुमन माधुरी दीक्षित का इस वेब सीरीज से एंटरटेनमेंट के ओटीटी प्लेटफार्म पर आगाज हो रहा है लेकिन उन्हें केंद्र में रखते हुए रचे गए सस्पेंस ड्रामा 'द फेम गेम" के कुछेक अन्य प्लेयर्स ज्यादा प्रभावित करते हैं। माधुरी दीक्षित अतिरिक्त सतर्कता बरतती नजर आती है नतीजन वे अपने अभिनय में  विविधता नहीं ला पाती और टाइप्ड ही रह जाती हैं। फिर कहानी भी ज्यादा नाटकीय हैं जिसके अनेकों उच्च पल और टर्न्स दीगर किरदारों के कलाकारों के हिस्से आये हैं और वे बखूबी निभा ले गए हैं।  

माधुरी ने शो में अनामिका आनंद नाम की बॉलीवुड एक्ट्रेस का रोल प्ले किया है। बड़ी सुपरस्टार है, फैन्स से लेकर पैपराज़ी तक, सब उसकी एक झलक पाना चाहते हैं। ऑफ कैमरा वाली ज़िंदगी में अनामिका अपनी मां, पति और दो बच्चों के साथ रहती है। सामने से देखने पर जिंदगी आदर्श है। हाँ , बढ़ती उम्र के कारण उसका करियर ढलान पर है। 

बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया का काला सच गाहे बगाहे सुनने को मिलता रहा है जहां फ़िल्मी सितारे अपनी अदाकारी के दम पर लाखों के दिलों पर राज तो करते हैं,  लेकिन उनकी असल जिंदगी में चुनौतियां हैं, निरंतर सफलता पाने का दबाव है, उम्मीदें हैं, नितांत ही अकेलापन है ; और सबसे अहम् सच्चे दोस्तों का लगभग अभाव है। उनसे हर कोई यहाँ तक कि क्या मां क्या पति और क्या ही संतानें सिर्फ अपने फायदे के लिए जुड़ना चाहते हैं। बहुधा  लव, सेक्स, धोखा और नशे का दुष्चक्र उन्हें इस कदर परेशान करता है  कि वे डिप्रेशन में घिर जाते हैं और  अंततः जान तक दे देते हैं। पिछले दिनों ही सुशांत राजपूत के मामले ने काफी सुर्खियां बटोरी थी। कितना सच और कितना झूठ था कि क्या मित्र मसलन दिशा और अन्य, क्या प्रेयसी मसलन रिया, क्या ही रिश्ते मसलन पिता, बहनें आदि सभी बदनाम हुए ! तभी बाइपोलर डिसऑर्डर जनित मूड स्विंग्स की खूब चर्चा हुई थी, ड्रग्स एंगल भी ऐसा उछला कि इस जद में आज तक एक के बाद एक फ़िल्मी कलाकार  और उनकी संतानें आ रही हैं।  

कुल मिलाकर "द फेम गेम" का सार बताएं तो सीरीज के किसी एपिसोड का  "इन सब चेहरों के पीछे क्या है हमें यही जानना है. कैमरे का आगे कुछ और होता है, कैमरे का सच कुछ और; और हमें वह सच जानना है..." डायलॉग बयां कर देता है ! परंतु निष्कर्ष के लिए अनावश्यक ही वास्तविकता से हटकर तमाम सबस्टोरीज पिरोयी गई हैं मसलन महिला पुलिस इन्वेस्टिगेटर के किरदार में राजश्री देशपांडे का लेस्बियन होना,  अनामिका के बेटे के रोल में  न्यूकमर लक्षवीर सरन का गे होना और अनाथ माधव रूपी साइको टाइप फैन का होना आदि। लेकिन अनावश्यक क्यों कहें , यदि ये सब नहीं गढे जाते तो सीरीज को चालीस चालीस मिनट के आठ एपिसोडों का विस्तार कैसे मिल पाता ! फिर करण जौहर कैंप है तो लेस्बियन और गे कैरेक्टर्स होने ही थे !

"दूर के ढोल सुहावने होना या लगना" की वास्तविकता से रूबरू कराने के लिए रचा ये शो निश्चित ही रोचक होता यदि ओटीटी कल्चर नुमा फ़्लैश बैंकों का वर्तमान के साथ बार बार दुहराव से मेकर्स थोड़ा परहेज रखते।  शो के उबाऊ होने का यही एकमात्र कारण है वरना तो फिक्शन है रचनात्मक लिबर्टी लेने का अधिकार है ही मेकर्स को चाहे शो की शुरुआत अनामिका के गायब होने के रहस्य से ही हो ! 

अब अनामिका सरीखी सुपरस्टार गायब हुई तो पुलिस इन्वेस्टिगेशन का होना लाजमी था जिस दौरान अनामिका के निजी जीवन के साथ साथ परिवार और अन्य जुड़े संगी साथियों के हैरान करने वाले सच परत दर परत उजागर होते हैं। कुल मिलाकर अनामिका की सच्चाई के जरिए ग्लैमर वर्ल्ड के स्याह पक्ष को वेब सीरीज में दर्शाया गया है।  हाँ , कहानी काल्पनिक है लेकिन टुकड़ों टुकड़ों में हकीकत भी है कई कलाकारों की ! सिर्फ कमी रह गयी प्रॉपर सिंक्रोनाइज़ेसन की !             

राजश्री देशपांडे

हाँ , स्पेशल जो है जिसकी वजह से शो वर्थ वाच केटेगरी की बन पायी है, वह है  राजश्री देशपांडे का महिला पुलिस इंवेस्टिगेटर का किरदार ! उसकी प्रजेंस आठों एपिसोड्स में है और  जब भी वह होती हैं, यूं लगता है कि अब कुछ न कुछ नया मामला खुलने वाला है और ऐसा होता भी है। "किसी किरदार का गायब हो जाना और फिर इन्वेस्टिगेशन की प्रक्रिया में रहस्यमयी परतों का खुलना" जैसे विषय पर कई कंटेंट्स बने हैं मसलन ‘बैप्टिस्ट’, ‘द मिसिंग’ या ‘अनफॉरगॉटन जिसमें डिटेक्टिव की भूमिका और चरित्र को बखूबी उकेरा गया है और "द फेम गेम" की एसीपी शोभा त्रिवेदी उनके समकक्ष नहीं तो उन्नीस बीस का ही फर्क है। अधिकतर व्यूअर्स पूरा शो देखेंगे तो सिर्फ उसकी वजह से ही देखेंगे, तय मानिये ! 

रोचकता की बात करें तो शो के संवादों ने अहम् भूमिका निभायी है वरना तो 'माधुरी दीक्षित के होने का मतलब लाजवाब म्यूजिक होगा' वाला पक्ष नदारद ही है !  ‘जिसको भाई माना, उसी के साथ मेरी शादी कर दी’ ....  सुनते ही स्मरण सा हो आता है कि वाकई ऐसा होता रहा है। ऐसा ही कुछ फील होता है ना जब अनामिका शादी के बीस साल बाद अपने पूर्व प्रेमी और को स्टार रहे मनीष खन्ना (मानव कौल) के साथ रात गुजारने के बाद कहती है, "मुझे इतना एक्साइटेड फील नहीं करना चाहिए। आई एम मैरीड। मेरे बच्चे हैं, मैं क्या करूं?" जिन्होंने ग्लैमर की दुनिया के हकीकत से रूबरू कराता वन लाइनर लाजवाब है - " फिल्में गवाती ज्यादा हैं और कमाती कम हैं।" वे जानते हैं इस कटु सच्चाई को जो इस दुनिया को बिलोंग करते हैं।  इसमें काम करने वाले कईयों का यही हाल होता अक्सर सुनने में आया है ! 

कुछेक टेक और भी हैं संवादों के ! क्या "सुसाइड का प्रयास करने वालों में ९५ फीसदी वो होते हैं जो चाहते हैं कि कोई उसे बचा ले " की कटु सच्चाई को कोई नकार सकता है ? हाँ, सुशांत सिंह राजपूत, दिशा सालियान आदि बचे पांच फीसदी में थे ! सफल और स्टार पत्नी के पति के दर्द की बानगी ही तो है - "यू नो व्हाट इज़ फनी, मैं अपनी वाइफ को रियल लाइफ से ज्यादा स्क्रीन पे देखता हूँ !"  अन्य प्रोफेशनों में भी ऐसी स्थितियां उभर आती है, कइयों ने फील किया होगा ! और एक प्रतिष्ठित और स्थापित अभिनेत्री के लिए "कमबैक" शब्द गाली से कम नहीं है - वो गई कब थी ? 

एक्टिंग के लिहाज से दोनों मेल न्यूकमर्स निराश नहीं करते। अभिनेता जगदीप की बेटी मुस्कान जाफरी ने  अनामिका की दोहरे चरित्र वाली बेटी का मुश्किल भरा रोल बखूबी निभाया है ! संजय कपूर ठीक राजे हैं।  मानव कौल बस ठीक ही हैं, अक्सर ओवर लगते हैं। 

एक कमजोर पटकथा को ठीकठाक रोचक बनाया है सीरीज के निर्देशकों बेजॉय नांबियार और करिश्मा कोहली ने ! दोनों की लगन काबिलेतारीफ है तभी तो स्लो मिस्ट्री टाइप सीरीज का असर एपिसोड दर एपिसोड बढ़ता जाता है।   

सीरीज में कई बार फ़्लैश बैक में जाते हुए अनामिका अपने बचपन को याद करती है जब वह बनना कुछ और चाहती थी और मां ने स्वार्थवश कुछ और बनने को मजबूर कर दिया था। चूंकि वह अपने दोनों बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना चाहती है जिसके लिए उसे शातिराना प्लान एक्जिक्यूट करने से भी परहेज नहीं हैं ! उसके लिए बस जगजीत सिंह की गजल गुनगुना दें -       

ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो , भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी                      

मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन , वो कागज की कश्ती , वो बारिश का पानी !

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Prakash Jain

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