कौन जात हो भई ?

क़हत कबीर सुनो भाई साधों, “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान !”

कहने का मतलब किसी भी सज्जन या गणमान्य की पहचान उसकी जाति न होकर उसका ज्ञान और उसकी बुद्धिमत्ता होनी चाहिए ! अब सवाल है सज्जन या गणमान्य कौन ? सही अर्थों में देखा जाए तो जो कोई महत्वपूर्ण अधिकारियों को इसलिए कमतर बतावे चूंकि वे दलित या आदिवासी नहीं है और एकाध हैं भी तो फोटोशूट में नहीं है, वह सज्जन पुरुष या गणमान्य तो नहीं है !  और यदि ज्ञानी और बुद्धिमान होते तो यूँ कटाक्ष नहीं करते क्योंकि उन्हें मालूम है आज की वरीय अधिकारियों की टीम में दलित या आदिवासी अधिकारियों के न होने की वजह उनकी तब की नीतियां है जिनके तहत मौजूदा टीम के वरीय अधिकारी गण रिक्रूट किए गये थे ! 

और जब आप सत्ता पक्ष पर कटाक्ष करेंगे, प्रत्युत्तर भी कटाक्ष ही होगा ना !  फिर स्टफ भी भरपूर है उनके पास आपको निशाना बनाने के लिए ! जैसे को तैसा मिला कैसा मज़ा आया ? 

कटाक्ष पूर्ण लहजे में भाग भंगिमा के साथ कभी एक शालीन शब्द या पूरा वाक्य ही अपशब्द मानिंद होता है. अंतर ही भावना का है !  शब्द में दुर्भावना निहित हो तो वह शालीन होते हुए भी अपशब्द है ! और कभी कभी अपशब्द भी अपशब्द नहीं रह जाता ! एक बेटा मां से प्यार से कह सकता है, “माँ, तू पागल है क्या ? “ कहने का मतलब वक्ता कितनी गरिमा बनाये रखता है ?  आप चुनिंदा व्यंग्यात्मक हो सकते हैं, परंतु तथ्यहीन ऑल टाइम पंचर नहीं ! कहने का मतलब कटाक्ष शालीन होने चाहिए, अप्रिय नहीं ! और फिर बगैर पछतावे के माफ़ी का क्या औचित्य ?  "I apologise" कहने के पीछे भी दुर्भावना हो तो माफ़ी कैसी ? दिल से कहाँ निकली ? कहने भर को कह दिया ताकि जब तब कहते रहें कि माफ़ी मांग तो ली थी !     
जातिगत जनगणना होगी तो घर घर जाकर “ कौन जात हो भई ?” नहीं पूछा जाएगा क्या ? निःसंदेह अपशब्द तब नहीं कहलाएगा क्योंकि पूछने के पीछे दुर्भावना नहीं होगी ! परंतु अनुराग ठाकुर का “कहा” दुर्भावनापूर्ण है, इसलिए अपशब्द है ! परंतु 'टिट फॉर टैट' के तहत ही है ! अब आप महाभारत सरीखे धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ महाभारत में वर्णित महारथियों और चक्रव्यूह रचना को अपभ्रंशित करते हुए कतिपय लोगों को निरूपित करोगे, शकुनि बताओगे ; सद्भावना तो नहीं है ना ! इसलिए अपशब्द ही कहलायेंगे ! ऊपर से आपका सिपहसलार (अधिकृत प्रवक्ता) जस्टिफाई करेगा शकुनि को इस बिना पर कि शकुनि चौधरी बिहार के एक नेता के पिताजी का नाम है ! उस लॉजिक से तो आपको शकुनि को लाना ही नहीं चाहिए था अपने विमर्श में !  लेकिन आप लाए चूंकि आप मोदी टीम और मोदी के राज में खूब फले फूले अंबानी अदानी और खूब तवज्जो पाए सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल को विलेन प्रदर्शित करना चाहते थे !  कितना अजीब है कि ओछी राजनीति में सुरक्षा सलाहकार को भी खींच लिया जबकि उनकी रणनीति की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मुरीद थीं ! जहां तक अंबानी की बात है तो विपक्षी गठबंधन के उनके तमाम साथी और साथ ही उनकी पार्टी के भी अनेकों अंबानी के क़ायल हैं ! 

जाति जाति की रट जाति के लिए है ही नहीं ! रट पोलिटिकल है, हर काल में रही है, कभी कम तो कभी ज्यादा ! आज पराकाष्ठा है रट की, चूंकि यही वोट बैंक को विभाजित करेगी और वोट आपकी झोली में गिरेंगे और सत्ता मिल जायेगी ! आश्चर्य है आप जाति पूछो पत्रकारों से, अधिकारियों से ; पूछ सकते हैं चूंकि प्रतिपक्ष हैं तो विक्टिम कार्ड है ! पत्रकारों से उनकी जाति पूछकर अपमानित करने का काम अखिलेश भी करते रहे हैं. मंडल कमंडल के प्रवर्तकों में से एक उनकी पार्टी भी थी ! बेचारे सत्ता के एक सांसद ने थोड़ा सरकास्टिक होते हुए जाति पूछ ली तो हंगामा बरप गया ! भई ! पूछते हो तो बता भी दो ना !  या आज पाँच सालों के बाद स्टैंड बदल लिया है आपने ! तब दत्तात्रेय गोत्र और कौल ब्राह्मण जाति में जन्मे के रूप में आपका बायो डेटा आया था ! 

हाँ, एक बात सही है कि जो भी दलितों की, आदिवासियों की आवाज़ उठाता है, उसे गाली सुननी पड़ती है . परंतु राइडर है यदि वह स्वयं दलित या आदिवासी नहीं है तो ! हालांकि विरोध ज़रूर हुआ अंबेडकर का, बाबू जग जीवन राम का, सुश्री मायावती का, राम विलास पासवान का और विरोध किया किन्होंने ? कांग्रेस ने ही किया था !  

जातिवाद कोई आज की समस्या तो है नहीं ! ख़त्म नहीं हुई और ख़त्म होगी भी नहीं जब तक सिर्फ़ और सिर्फ राजनीतिक माईलेज लेने के लिए इसे टूल बनाया जाता रहेगा ! तभी तो वित्तमंत्री दादा परदादा तक चली गईं और कटु सच्चाई से राब्ता करा दिया ! 

सबसे बड़ी बात, अंग्रेज़ी में एक कहावत है charity begets at home, जिसे भी याद दिलाया निर्मला जी ने ! एक और कहावत है practice what you preach ! कहने का मतलब अपने घर से तो शुरुआत कीजिए ! कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, तेलंगाना में भी है, हिमाचल है ! विडंबना ही है तेलंगाना  की कांग्रेस सरकार ने इस बार के बजट में राज्य के एससी और एसटी विभागों में बजट की भारी कटौती करते हुए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का बजट बढ़ा दिया !  कर्नाटक सीएम ने माना कि दलितों की भलाई के पैसों में धांधली हुई ! कभी मोची, कभी ड्राइवर, कभी किसान तो कभी लोको पायलट - फोटो ऑप के लिए बढ़िया हैं ! ड्राइवर , किसान , पायलट सामान्य वर्ग से हैं तो क्या उनके लिए अलग से नीतियां बनाओगे ? आपकी ही कर्नाटक सरकार ने दलित छात्रों को प्रोत्साहन देने के नियमों में उचित बदलाव और आय मानदंड(पारिवारिक आय सीमा छह लाख तक) लागू क्या किया, दलित कार्यकर्ता और छात्र नाखुश हो गए हैं ! सरकारों के अलावा भी आपके अपने अनेकों संस्थान हैं , क्या प्रतिनिधित्व है वहां जरा पता तो कर लें ? सांसदों की बात करें तो कितने दलित हैं, आदिवासी हैं ? जो भी हैं, वे तो इस कदर धनाढ्य हैं कि सामान्य वर्ग के मिडल क्लास पानी भरते नज़र आते हैं ! कुमारी शैलजा हैं, चन्नी हैं , खड़गे जी हैं , सभी करोड़ों के मालिक हैं ! 

एक और बात, पॉलिटिक्स हिट एंड रन गेम ही तो है ! ‘संविधान बचाओ’ चला चला और फिर रुक गया ! ‘किसान विरोधी ’ सरकार बताने लगे तभी किसी ने पिछले 15 महीनों में कर्ज, सूखे और फसलों के नुक़सान की वजह से 1200 किसानों द्वारा कर्नाटक में आत्महत्या करने की सच्चाई बता दी ! संवेदनहीनता देखिए ठीकरा किसानों पे ही फोड़ा कि चूंकि कंपनसेशन की राशि बढ़ा दी गई है, उस लालच में किसानों ने आत्महत्या का ली ! और अब सुर में सुर मिलाये जा रहे हैं जाति का बवंडर खड़ा कर !

सवाल एक और, क्या मुस्लिमों में भी जाति आधारित जन गणना होगी ? यदि नहीं, तो फिर हिंदुओं की ही क्यों ? यदि इस्लाम धर्म के सभी मानने वाले बराबर हैं और उनमें किसी प्रकार की कोई ऊंच-नीच नहीं है, तो फिर हिंदू धर्म के सभी मानने वाले बराबर क्यों नहीं ? जबकि जाति तो मुस्लिमों में भी है, भेदभाव भी है ! सारे "क्यों " के जवाब सुबोध हैं , समझ में आते हैं , साफ़ हैं ! मुस्लिम वोट तो अखंड "उनके" हैं ही , शेयर चाहिए हिंदू वोटों का ; तभी होगा जब बंटेंगे वे ! और वह अब सिर्फ और सिर्फ जातिवाद को बढ़ावा देकर ही हो सकता है !

अब देखिए शीर्ष न्यायालय क्या कहती है ? A policy must be evolved by the State to identify creamy layer among the SCs/STs. दरअसल आरक्षण मिलते मिलते सात दशक गुजर गए जिस दौरान हर आरक्षित केटेगरी में क्रीमी लेयर निर्मित हुई है , जिनके लिए आगे भी आरक्षण जारी रखना संविधान की अवमानना ही है !

बेचारा ग़रीब तबका, जिसका बड़ा हिस्सा सामान्य वर्ग से है, हतप्रभ है ! हो क्या रहा है ?  दरअसल जातिगत जनगणना क्यों हो, क्या हासिल होगा और किसे हासिल होगा आदि आदि सवालों के आर्ग्युमेंट्स फॉर भी हैं तो आर्ग्युमेंट्स अगेंस्ट भी हैं ! भारतीय संविधान 1950 में लागू हुआ था जिसमें आरक्षण व्यवस्था की गई थी, फिर भी  1951 में नेहरू जी ने जातिगत जनगणना से असहमति जताई थी ! तो फिर आज, जब आरक्षण जारी है और शीर्ष न्यायालय की अधिकतम सीमा पचास फीसदी भी क्रॉस कर चुकी है, तो जाति आधारित जनगणना पर ज़ोर क्यों ? प्रथम दृष्टया इरादे नेक बताये जा रहे हैं, लेकिन जाति डेटा आने पर नेक बने  रहेंगे, संदेह है !  सीधी सी बात है, आरक्षण बढ़ाने की बात होगी. भुगतना प्रतिभा और योग्यता को ही पड़ेगा और नतीजा न चाहते हुए भी सामाजिक विस्फोट ही होगा ! हालिया उदाहरण बांग्लादेश का है ! खूब जला, हर तरफ हिंसा और अफरा तफरी, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सेना सड़कों पर , इंटरनेट , रेल , बस सेवा ठप्प, आगजनी और 105 लोगों ने जान भी गवाई ! और देश भी तो आरक्षण की आग में अनेकों बार झुलसा है ; ओबीसी आरक्षण के विरोध में देश भर में प्रदर्शन हुए थे, दिल्ली में राजिव गोस्वामी ने आत्मदाह कर लिया था. पटेल आंदोलन की चपेट में गुजरात रहा था ; जाट आरक्षण ने चिंगारी भड़कायी थी ; गुर्जर , मराठा , निषाद भी उठ खड़े हए थे ! उत्तर भारत की तरह ही दक्षिण भारत में भी आरक्षण आंदोलन हुए हैं. आंध्र प्रदेश के कापू समुदाय ने 2016 में ओबीसी दर्जे की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किए थे. राज्य में पूर्वी गोदावरी जिले में प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने रत्नाचल एक्सप्रेस के चार डिब्बों सहित दो पुलिस थानों को आग के हवाले कर दिया.था. इस दौरान कई लोग व पुलिसकर्मी घायल हुए. 

सीधी सी बात है जब योग्यता के आधार पर चयन के लिए, शिक्षा हो या नौकरी या कुछ और, सीटें कम होती चली जाएंगी, सामान्य वर्ग की मुश्किलें बढ़ेंगी. ज़रूरत शिक्षा एवं रोजगार के व्यापक प्रबंधों की है और यदि वे नहीं किये जाएंगे तो जाति आधारित जनगणना जनित नीतियां और बढ़ा हुआ आरक्षण देश को अस्थिर ही करेगा !       

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Prakash Jain

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