बेरहम तो है ही, बेशर्म भी है कानून !

क्या सटीक लफ्जों में बयां हुआ था अंधा कानून -  जाने कहाँ दग़ा दे-दे जाने किसे सज़ा दे-दे ; साथ न दे कमजोरों का ये साथी है चोरों का ; बातों और दलीलों का ये खेल वकीलों का ; ये इंसाफ नहीं करता, किसी को माफ़ नहीं करता ; माफ़ इसे हर खून है, ये अँधा कानून है !   

सवाल है कानून का डर कितना है और किसे है ?  जवाब है उनको तो बिलकुल नहीं है जो धन्ना हैं, वे शीर्ष अदालत में बेहद पेशेवर वकीलों को हायर कर सकते हैं, जिनकी बेहद पेशेवर दलीलें हावी हो जाती है न्याय पर ! अभी तक तो दबी ज़ुबान में कहा जाता था, निचली अदालतों भर के लिए कहा जाता था ; अब तो उच्च न्यायालय भी संदेह के घेरे में हैं कि ठन ठना ठन पैसा बोलता है वहां ! माना शीर्ष न्यायालय पाक है, लेकिन वहां गुहार लगाने के लिए पैसा ही बोलता है, वकीलों की भारी भरकम फीस है ! 
हाँ, पोस्चरिंग के लिए कभी कभार गुड जेस्चर ज़रूर झलका दिया जाता है, जैसा पिछले दिनों यूपी के बुलडोजर मामले में अपील कर्ताओं को दस दस लाख का मुआवजा देकर शीर्ष न्यायालय ने दिखाया था. परंतु बंगाल के 25000 शिक्षकों के लिए शीर्ष अदालत का दिल नहीं पसीजा और उन्हें बर्खास्त इसलिए कर दिया चूंकि उनकी नियुक्ति बहुचर्चित कॅश फॉर जॉब स्कैम का नतीजा थी ; जिनके किंग पिन पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पार्टी के विधायक माणिक भट्टाचार्य और जीवन कृष्ण साहा सहित कई लोग शांतनु कुंडू और कुंतल घोष जैसे निलंबित टीएमसी नेताओं के साथ घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए फ़िलहाल सलाखों के पीछे हैं. 

कुल मिलाकर राज्य सरकार की तमाम दलीलों को नकारते हुए शीर्ष न्यायमूर्तियों ने उच्च न्यायालय के फैसले को ही बरकरार रखा, हालांकि राहत वेतन वापसी पर उन अभ्यार्थियों को ज़रूर दी जिन्होंने उत्तर पुस्तिका खाली नहीं छोड़ी थी ; साथ ही भर्ती परीक्षा के दौरान नौकरी पाने वाली कैंसर पीड़ित सोमा दास की नौकरी बहाल रखी है. 

खैर, जो हुआ सो हुआ ! परंतु क्या न्यायालय को इस लिहाज से मानवीय दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए था कि सारे नियुक्त टीचर्स कॅश फॉर जॉब के तहत नहीं थे और फिर जो थे भी वे शैक्षणिक योग्यता तो रखते ही थे ना ? सही है, जब अभ्यर्थी लाखों में थे तो प्रतिस्पर्धात्मक रूप से ज्यादा योग्य लोगों का हक़ मारा गया ; लेकिन, नियुक्ति के 4-5 साल बाद बर्ख़ास्तगी से शिक्षकों के परिवार भी तो चपेट में आ गए ! कहाँ गया न्याय का सिद्धांत कि सारे दोषी छूट जाए लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए ?  
क्या सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए कि जिन जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, उन्हें केवल ट्रांसफर कर दिया जाता है ; जबकि शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया गया ? फिर एक साथ इन शिक्षकों की बर्ख़ास्तगी से,स्कूली सिस्टम में जब तक नई नियुक्तियां नहीं हो जाती, जो शून्यता होगी, इसका खामियाजा तो स्टूडेंट्स ही भुगतेंगे ना !  माने या ना माने तमाम शिक्षक अब भारी हताशा में डूब गए हैं और कइयों के लिए अदालत का यह फैसला मौत की सजा के समान है. अनेकों अभ्यर्थी, उच्च न्यायालय के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने पर आशान्वित थे, परंतु लंबी कानूनी लड़ाई के बाद यह फैसला बेहद हताश जनक है. अदालत ने दोबारा परीक्षा की बात कही है. लेकिन एक व्यक्ति आखिर जीवन में कितनी बार परीक्षा देगा? और फिर इस बात की क्या गारंटी है कि वे कामयाब रहेंगे? सभी का का जीवन और भविष्य पूरी तरह अंधेरे में डूब गया है.

दूसरी तरफ पॉलिटिक्स तो होनी ही थी. कहने भर को न्यायालय का सम्मान होता है, बाकी तो मर्दन करने में कोई कोर कसर नहीं रखी जाती यदि फैसला मनमाफिक नहीं है तो ! फिर नेता तो स्वभाव से छिद्रान्वेषी होते हैं. और वह ममता दीदी हों तो कहना ही क्या ? ऑक्सफ़ोर्ड में भले ही उनको आइना दिखा दिया गया, यहाँ किसकी मजाल है ?  तो उन्होंने विपक्षी दलों भाजपा और माकपा पर मिलकर इस फैसले को प्रभावित करने की साजिश का आरोप यह कहते हुए लगा दिया कि पहले जज, जिन्होंने भर्ती प्रक्रिया के खिलाफ फैसला दिया, अब भाजपा के सांसद बन गए हैं. लगे हाथों दीदी ने व्हाटअबाउटरी करते हुए मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले का भी उल्लेख कर दिया ! परंतु विडंबना ही है ना शिकारियों (घोटाले बाजों) का अभी ट्रायल पूरा नहीं हुआ है और शिकार (स्कैम में फंसने वालों) को सजा सुना दी न्यायालय ने !   

आदर्श स्थिति तो यही होती कि शीर्ष न्यायालय सभी शिक्षकों की योग्यता का मूल्यांकन करवाती, जिसमें खरा न उतरने वालों को निकाल बाहर करती ! चूंकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए न्याय हुआ भी तो वह होते हुए नहीं दिखा !  
देखा जाए तो न्याय में देरी भी इस विकट स्थिति के लिए जिम्मेदार है. वर्ष 2016 में एसएससी की ओर से उस साल शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की बहाली के लिए एक भर्ती परीक्षा आयोजित की गई थी. लेकिन परीक्षा के तुरंत बाद उस पर भ्रष्टाचार, घोटाले और भाई-भतीजावाद होने के आरोप लगने लगे थे. उसके बाद हाईकोर्ट में इसके खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई थी. 


Write a comment ...

Prakash Jain

Show your support

As a passionate exclusive scrollstack writer, if you read and find my work with difference, please support me.

Recent Supporters

Write a comment ...