
अमेरिकन पॉलिटिकल थ्रिलर हाउस ऑफ़ कार्ड्स बनाने के चक्कर में सल्लू भाई जान की तीन तीन हिट फिल्मों - टाइगर जिंदा है , सुलतान , भारत - वाले अली अब्बास जफ़र एक बेहतरीन चूं चूं का मुरब्बा जरूर बना बैठे हैं ! एक बात और, भगवान शिव से प्रेम है या कोई ओबसेशन ( अंग्रेजी में कहते हैं ) कि देश में रहकर आजादी की बात के लिए किये गए स्टैंड अप शो में भगवान शिव को अवतरित करवा दिया और उनके मुंह से what the f*** निकल गया ! अब बवाल तो होगा ही आखिर हिंदू देवी देवता का सहारा जो लिया है और संयोग से किरदार में स्थापित लिबरल लॉबी के जीशान अयूब हैं ! फिर लॉर्ड शिवा के उग्र नृत्य को तांडव ही कहा जाता है, तो आपत्ति नाम से भी दर्ज हो सकती है !
आईआईटियन टेक्नोक्रैट फिक्शन राइटर गौरव सोलंकी ने जहाँ एक तरफ बहुत सारी ऐसी घटनाओं को दिखाने की कोशिश की है जो हमारे देश की हाल की और पूर्ववर्ती राजनीति में देखने को मिली हैं वहीं भारतीय राजनीति के तमाम षडयंत्रों को इस प्रकार सिंक्रोनाइज़ किया है कि व्यूअर्स विभिन्न किरदारों को पिछले कई दशकों और आज के राजनेताओं के साथ एसोसिएट कर लेता है ! अब डिटेलिंग करेंगे तो पता नहीं कितने मानहानि के दावे झेलने पड़ जाएंगे ; हालाँकि प्राइवेट डोमेन में तमाम बातों की फुसफुसाहट होती रही है ! लेकिन क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर अतिरंजिता (excessive ) और नाटकीयता ही सीरीज पर भारी पड़ गयी है !
सीरीज में वीएनयू है, छात्र राजनीति है और उसमें मुस्लिम एंगल भी है . आजादी आजादी हैं, किसान प्रदर्शन हैं, पॉलिटिकल मर्डर है, ऊंच नीच है , विकृत पुलिसिया है , इलेक्शन नतीजों को गहमागहमी है , पॉलिटिकल आईटी सेल भी है , लेफ्ट से लेकर राइट की राजनीति है ; कुल मिलाकर सबकुछ हैं लेकिन चित्रण विद्रूप है मानों राजनीति गटर ही है या फिर गटर की राजनीति है !
शायद अली अब्बास स्लिप कर गए कि एक जगह इंदिरा और संजय का जिक्र करवा बैठे, काँग्रेसी चुप ना बैठेंगे ! एक और ब्लंडर कर बैठे हैं कि जातिवाद दिखाने के लिए ऊँची जाति की फीमेल के शोषण को नीच जाति के मेल की आक्रामकता से लिंक किया है सेक्सुअल रिश्तों के माध्यम से ! हो गया ना एक पंथ दो काज - मानसिकता भी जाहिर कर दी और ओटीटी का कम्पल्सन भी निभा दिया ! विश ये ब्लंडर नज़रअंदाज़ हो जाए वरना ........! इसी संदर्भ में रुहिना गेरा की एक और सार्थक पहल वाली फिल्म सर स्मरण हो आयी जिसमें एक पैसे वाले गृह स्वामी और डोमेस्टिक हेल्प (मेड ) के रिश्ते को क्या खूब निखारा गया है ? लेकिन सार्थकता कैसे परोस दें, व्यूअर्स जो ना मिलेंगे ?
आपत्ति सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के पुलिस विभाग को होनी चाहिए। छात्रों को भी होनी चाहिए जब सत्ता के हाथों में खेलता एक पुलिस अधिकारी कहता हैः अब टेररिस्ट बॉर्डर पार से न आ रहे; ये इन युनिवर्सिटियों में तैयार हो रहे हैं ! लेकिन आपत्ति किस किस बात पर होगी ? आखिर फ्रीडम ऑफ़ स्पीच जो है ! अब कल ही एक राजनेता ने बोल दिया सुप्रीम कोर्ट को पीएम और उनके पांच उद्योगपति मित्र चला रहे हैं ! एक और प्रसंग है जिसपर सर्वाधिक आपत्ति होनी चाहिए - यूनिवर्सिटी के छात्रों के दो गुट थाने में हैं, दारोगा के कहने पर सभी छात्र वंदेमातरम बोलते हैं लेकिन जीशान अयूब, जबकि उसका किरदार शिवा शेखर का है , ने नहीं बोला !
वास्तव में तांडव जो राजनीति दिखाती है, देश का आम आदमी उससे ज्यादा जानता है ; इससे गंदी राजनीति उसने देखी और भुगती है। नौ एपिसोड्स हैं और फिर सीजन २ भी आना है तो कहानी स्लोमोशन ही है, कह सकते हैं पांच छह अध्याय तो सिर्फ स्केचनुमा है तो पेशेंस रखना लाज़िमी है। कह सकते हैं कि लेखक-निर्देशक ने घटनाओं, किरदारों और संवादों के स्तर पर यहां देश की राजनीति के नए-पुराने किरदारों और किस्सों को कहानी में पिरोकर बखूबी परोसा है ! कमियां ढेरों हैं लेकिन जबर्दस्त स्टार कास्ट बांधे रखती है।
एक्टरों की बात करें तो डिंपल कपाड़िया बेहतरीन है और दूसरे नंबर पर सरप्राइज पैकेज है सुनील ग्रोवर ! जीशान अयूब अच्छे एक्टर जरूर हैं लेकिन रह रह कर अनमने से लगते हैं मानों बेमन से प्ले कर रहे हैं ! सैफ अली खान की दिक्कत है कि वे सेक्रेड गेम्स के किरदार से बाहर नहीं निकल पाते हैं ! रोल निभाया है किंगमेकर युवा राजनेता समर प्रताप सिंह का और लगता है समर सैफ का रोल प्ले कर रहा है ! अन्य सभी कलाकार ठीक ही हैं !
सबसे बड़ा अफ़सोस पूरी वेब सीरीज देखने के बाद होता है और फिर अंग्रेजी नुमा बिहार में जन्मी और पूरे देश में कॉमन गाली ही मुंह से निकलती है क्योंकि कहानी दूसरे सीजन के भरोसे जो छोड़ दी गयी है !

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