बीजेपी और नरेंद्र मोदी और मजबूत बन कर उभरे हैं। ५ में से ४ राज्यों में बीजेपी की बंपर जीत का श्रेय मोदी को ही मिलना चाहिए। तमाम नाकामियों के बावजूद मोदी की लोकप्रियता का तोड़ फिलहाल विपक्ष में किसी के पास नहीं है। २०२४ के लिए ये साफ़ संकेत हैं। और इस संकेत को मोदी जी ने भुनाना चालू भी कर दिया जब कल उन्होंने कार्यकर्ताओं को जस्टिफिकेशन दिया कि विपक्षियों के मुताबिक़ यदि २०१९ की बंपर जीत के लिए २०१७ यूपी फतह वजह थी तो उसी तर्ज पर वे कहें कि बीजेपी के लिए २०२४ डन डील है !
यूपी में मोदी/योगी की जोड़ी ने यकीनन इतिहास रचा है। सैंतीस साल बाद एक बार फिर हुआ है कि एक ही राजनीतिक दल दोबारा यूपी में सत्ता में लौटा है। वाकई बहुत बड़ी उपलब्धि है। खासतौर पर तब जब योगी सरकार पाँच साल की कई नाकामियों और अपनों की नाराजगी के दंश को झेल रही थी।
अन्य राज्यों के लिए कुछ भी कहें लेकिन यूपी की जीत सिर्फ़ योगी की जीत है चूंकि ये चुनाव उनके ५ साल के काम का चुनाव था। मोदी के होने के बावजूद ये चुनाव उनकी ही सफलता/असफलता का चुनाव था। ये चुनाव उनके ही चेहरे पर लड़ा गया। ज़ाहिर है कि तमाम दिग्गजों को दरकिनार कर अब वे बीजेपी में मोदी के बाद नंबर दो के नेता बन गए हैं। कहावत है इतिहास अपने को दोहराता है और वही तो चरितार्थ हो रहा है ! कल जोशी, आडवाणी, सिन्हा दरकिनार किये गए थे मोदी के लिए ! फिर तब तक उम्र का तकाजा वाला लॉजिक भी तो दिया जा सकता है ! जब योगी ५१ के होंगे, युवा ही कहलाएंगे ; तब मोदी ७३ के होंगे, उम्रदराज होंगे !
निःसंदेह आम आदमी पाटी एक बड़ी राजनीतिक शक्ति के तौर पर उभरी है।पंजाब में बम्पर जीत मिली, गोवा में खाता खुला, बहुत बड़ी उपलब्धि है। कहने को कोई भक्त भले ही कह दे कि यूपी और उत्तराखंड में तो आप पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिले या फिर कोई एंटी कह दे कि यूपी में भाजपा की सीटें कम कर दी जिसमें आप पार्टी का कंट्रीब्यूशन निल है ; इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य में नेशनल लेवल पर बीजेपी को थोड़ी बहुत चुनौती मिलेगी तो आम आदमी पार्टी से ही मिलेगी ; हालांकि कहावत ही है लेकिन लागू होती है कि दिल्ली बहुत दूर है ! सो मोदी का विकल्प केजरीवाल साकार होता कम से कम मोदी के जीवन काल में तो होता नहीं दिखता ! हाँ, वे प्रोजेक्ट जोर शोर से जरूर किये जाएंगे ! समूचे विपक्ष में अब ये शिफ्ट( कैंडिडेट अगेंस्ट मोदी)अवश्यम्भावी है, हालांकि हीलाहवाली होगी, हिचक भी होगी ! ईगो छोड़ना इतना आसान जो नहीं होता खासकर तथाकथित क्षत्रपों के लिए !
कांग्रेस के लिए फाइनल बेल है ! यूपी-पंजाब तो लग ही रहा था नहीं आना है, गोवा का खेल ख़राब कर दिया आप और तृणमूल ने लेकिन अगर कॉंग्रेस उत्तराखंड भी नहीं जीत पाई है तो अब दो राय हो ही नहीं सकती कि इस महान पार्टी में सब कुछ बहुत गड़बड़ चल रहा है। बेहद शर्मनाक हार है और अब कांग्रेसी "लोकतंत्र में जनमत सर्वोपरि है ; हर लड़ाई कुछ सिखाती है, हम सीखेंगे" कहकर बच नहीं सकते। सीखने सिखाने का वक्त कब का निकल गया और अब उन्हें गांधी परिवार से मुक्ति पानी ही होगी !
उत्तराखंड कांग्रेस के लिए केकवॉक ही था क्योंकि राज्य में बीजेपी को ३-३ बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे, खुद वर्तमान सीएम धामी हार गए, एंटी इंकम्बैंसी वहां चरम पर थी ! डायरेक्ट फाइट थी, कहीं कोई वोट कटुआ भी नहीं था ; फिर भी बुरी तरह हार गए ! ऑन ए लाइटर नोट 'शोले" का गब्बर याद आ गया - "हूँ। ..कितने आदमी थे ? ...... सरदार दो आदमी थे .......फिर भी वापस आ गए..... !" स्पष्ट है सिर्फ आत्ममंथन से काम नहीं चलेगा, भविष्य के बारे में गंभीरता से सोचना पड़ेगा ! G 23 कांग्रेस को संकोच छोड़कर मुख़र होना पड़ेगा "... बहुत हुआ सम्मान ...काहे का गुणगान तुम्हारी ऐसी तैसी .....गरियायेंगे सीना तान तुम्हारी ऐसी तैसी..... !"
तेजस्वी- अखिलेश, राहुल सहित तमाम विपक्षी नेताओं को सीखना होगा कि चुनाव से सिर्फ़ छह महीने पहले एक्टिव हो कर चुनाव नहीं जीते जा सकते ; चाहें सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ नाराज़गी हो। ख़ासतौर पर उस पार्टी के खिलाफ जो साल में ३६५ दिन, २४ x ७ , सिर्फ़ चुनावी मोड में रहती है।
एक और बात का उल्लेख भी जरुरी है ! विपक्षी पार्टियों को अतिरंजना से भी बचना होगा ! स्वस्थ और संतुलित आलोचना संयम के साथ होनी होगी ! डिबेट के हर मौके को भुनाना होगा, संसद सत्रों का बहिष्कार आदि टोकन तक सीमित रहें वरना जनता आपके एक्ट को एस्केप रूट तलाशना ही समझ बैठती है !
फिर आप चुनाव में भाग लेते हो, न्यायालयों की शरण भी लेते हो लेकिन अतिरंजना में एक सिरे से तमाम संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियाँ उड़ाते हो ; जनता जनार्दन के गले नहीं उतरता ! विरोध के लिए स्थापित भ्र्ष्टाचारियों के साथ खड़े हो जाते हो ... भूल जाते हो कि कल आपने क्या स्टैंड लिया था और आज बदल लिया तो अवसरवादिता हुई ना ! आखिर कहते हैं ना ये जो पब्लिक है सब जानती है ... अंदर क्या है, बाहर क्या है ..... ये सब कुछ पहचानती है ! लालू प्रसाद यादव के मामले में कांग्रेस और अन्य पार्टियों का मौजूदा स्टैंड और महाराष्ट्र में शिवसेना का चेंज ऑफ़ स्टैंड .... यकीन मानिये उन्हें खुद अच्छा नहीं लगता होगा लेकिन पॉलिटिकल कंपल्सन जो है ! और आजकल तो कुतर्कों से पॉलिटिकल कम्पल्सन को ही जायज करार दे दिया जाता है !
विपक्ष में हर पार्टी के कुछेक नेताओं के बोलबचन भी बीजेपी को कंट्रीब्यूट ही करते हैं ! अब देखिये शिवसेना के ख़ास नेता के हालिया बयान को ! जब वे तंज़ कसते हैं कि मायावती और असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी की जीत में योगदान दिया है...इसलिए उन्हें पद्म विभूषण, भारत रत्न दिया जाना चाहिये, वे राष्ट्र के प्रतीकों का अपमान कर बैठते हैं !
बातें अनेकों हैं और ऐसा भी नहीं है कि राजनीतिज्ञ समझते नहीं है ! सिंपल फ़ार्मूला मैथेमैटिक्स का सभी जानते हैं - प्लस माइनस या माइनस प्लस का परिणाम माइनस होता है और माइनस माइनस का परिणाम प्लस यानि पॉज़िटिव होता है ! वही पॉलिटिक्स पर भी लागू करें तो जनता विपक्षियों का सरकार को अत्यधिक माइनस माइनस बताने को प्लस यानि पॉज़िटिव ले लेती है !
और अब अंत में कम्यूनल को कम्यूनल बताते बताते तमाम सेक्युलर पार्टियाँ स्वयं ज़्यादा कम्यूनल जो हो जाती हैं ! उन्हें समझना होगा कि ना तो परंपरागत तुष्टिकरण और ना ही मौसमी तुष्टिकरण (टेंपल रन) अब फलदायी है ! अस्सी-बीस की बात तभी तो हुई ना ! और कारगर भी हो गई !
चलते चलते दो बातें और बता दें जो एक क़ैब ड्राइवर ने कहा ! प्रासंगिक इसलिए भी है कि समाज का हर तबका जागरूक है क्योंकि सोशल मीडिया पर ऐक्टिव है ! उसके किसी मित्र ने शेयर किया था आनंद रंगनाथन के ट्वीट को हिंदी में अनुवाद के साथ कि बंगाल में क्या हुआ था तब जब चुनाव के परिणाम आये थे और कल यूपी में कोई उपद्रव नहीं हुआ ! दूसरा उसने यूपी के युवा नेता का ट्वीट पढ़कर सुनाया और अपना कमेंट भी बता दिया कि आज जिस तरह की परिपक्वता हार के बाद दर्शायी है, वही प्रचार के दौरान रखी होती तो परिणाम कुछ और ही होते !
दरअसल एक घुटन सी है जो बाहर निकलना चाहती है लेकिन फिर एक बद है तो अन्य सभी बदतर हैं नतीजन बद फिर से आबाद होता है ! खैर ! अच्छी बात है कि अभी भी जज्बा कायम है उस ख़ास लॉबी का जिसमें पत्रकार हैं, बुद्धिजीवी हैं, कलाकार भी हैं ताकि विपक्ष को सद्बुद्धि तो आए - "रुक जाना नहीं तू कहीं हार के , काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के ....." #ResultsWithIndiaToday
कार्टूनिस्ट की नजर में टेक अवे होम हैं - "4 states to BJP, 1 state to AAP, 1 state of denial to Congress ; BJP creates history in UP , AAP creates history in Punjab, Congress repeats history (referring to its 2019 losses in West Bengal, Kerala & Assam) !"
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