भारत पर 155 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है, तथ्य है और इस बात का अनुमान पिछले साल से लगता रहा है जो पब्लिक डोमेन में भी है. बहुत पहले संसद में फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीता रमण भी स्पष्ट कर चुकी है कि 31 मार्च 2023 तक केंद्र सरकार का कुल कर्ज करीब 155.8 लाख करोड़ रुपए माना जा सकता है जो कि जीडीपी का 57.3 फीसदी है. तो फिर "कांग्रेस का दावा" सरीखी हेडलाइन झूठी ही हुई ना ! "महा नेत्री और महान आर्थिक विशेषज्ञ" मानो नींद से जगी और एक संवाददाता सम्मेलन में कर्ज पर वाइट पेपर लाने की मांग कर दी सरकार से ! और कुछेक मीडिया ने प्रमुखता से छाप भी दिया कि केंद्र सरकार पर 155 लाख करोड़ रुपये के कर्ज का खुलासा किया सुप्रिया श्रीनेत ने !
ना तो केंद्र सरकार ने सीक्रेट रख रखा था और साथ ही यथासंभव केस फॉर कर्ज भी प्रस्तुत कर दिया था. दिग्गजों, मसलन भूतपूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम, महान अर्थशास्त्री भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के ख़ास आर्थिक सलाहकार रघु राम राजन, ने भी यूँ सफाई नहीं मांगी जबकि महान नेत्री ने "आर्थिक कुप्रबंधन जनित दयनीय अर्थव्यवस्था" निरूपित करते हुए वाइट पेपर तक की मांग कर दी.
और फिर तथ्यों को ही तोड़ मरोड़ दिया उन्होंने. हवाला 2019-20 की कैग की रिपोर्ट का दिया जिसके अनुसार सरकारी कर्ज जीडीपी का 52.5 फीसदी था और उसे आज की तारीख में मनगढंत 84 फीसदी बता दिया जो कि वस्तुतः 50 फीसदी ही है. आज ही अपडेट है कि साल 2014 के बाद देश की जीडीपी लगभग दो ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2023 में 3.75 ट्रिलियन डॉलर पर जा पहुंची है. और जब सुप्रिया श्रीनेत स्वयं मानती है कि अन्य विकासशील और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं का औसत ऋण-जीडीपी अनुपात 64.5 फीसदी है, तो भारत बहुत बेहतर स्थिति में ही हुआ ना ! और फिर भारत द्वारा अन्य देशों को दिए गए कर्जों को समायोजित करें तो नेट कर्ज कहीं 130 लाख करोड़ रुपयों पर ठहरेगा ; सिर्फ अमेरिका को ही भारत ने 15 लाख करोड़ का कर्ज दे रखा है.
सवाल है राजनीति के लिए वास्तविक हालातों को बदतर बताया ही क्यों उन्होंने ? तभी तो किसी ने पूछ लिया कि क्या वे भारत के हालातों को पाकिस्तान और श्रीलंका के समकक्ष समझती हैं ? और श्रीनेत को कहना पड़ा कि देश की बुनियाद मजबूत है. मजबूत बुनियाद को क्वांटीफाई हम कर दें कि देश का फॉरेन रिज़र्व आल टाइम हाई 595 बिलियन डॉलर्स है (2014 में 304 बिलियन डॉलर था) आज ; सोने का भंडार आज 795 टन है जो 2014 में 557 टन था ; सेंसेक्स 25000 के अंकों पर था 2014 में जो आज 62694 हैं ; नौ सालों में दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में पांच पायदानों की छलांग लगाई है देश ने और और भी ........... !
और फिर वे उतर आईं निम्न स्तर की फिजूल बातों पर जिन्हें वह हर विषय में ले ही आती है, मसलन हेडलाइन मैनेजमेंट, टेलीप्रॉम्प्टर, व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी आदि आदि. एक और अनर्थ वाचन किया उन्होंने जब उपभोक्ता की दृष्टि से जी एस टी भुगतान की पैरिटी को डिस्पैरिटी का जामा पहना कर भ्रमित करना चाहा.
सौ बातों की एक बात है सरकार चाहे किसी की हो, ऋण बढ़ता ही है क्योंकि जब भी विकास कार्य पर अधिक खर्च किया जाएगा तो घाटे का बजट रहेगा. 2020 से 2022 के दो साल करोना के कारण सरकार ने फ़ूड सब्सिडी पर और इंफ्रास्ट्रक्चर पर अत्यधिक खर्च किया है इससे भी घाटा बढ़ा है. अतः इस को किसी राजनीतिक चश्मे से देखने की जरूरत नही है. लेकिन श्रीनेत ने देखा है तो उन्हें समझना चाहिए आज देश का आम आदमी भी उस हद तक अर्थ शास्त्री ज़रूर है कि चीजों को समझ सके.
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