जब देखो तब राम रहीम को पैरोल दे दी जाती है ! 

जबकि अस्सी साल का बूढ़ा आसाराम बापू पैरोल नहीं पाता. सजायाफ्ता की कसौटी पर दोनों में ख़ास फ़र्क़ नहीं है. तो क्या राम रहीम को बार बार इसलिए पैरोल मिल जाती है कि वह हार्ड कोर क्रिमिनल नहीं है ? पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का नज़रिया तो यही है. और ऐसा तब है जब वह बलात्कारी के साथ साथ हत्यारा भी है. जबकि आसाराम की पैरोल की अर्ज़ी उच्चतम न्यायालय ने 2021 में यह कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि आपने जो किया वो साधारण अपराध नहीं है, आप जेल में रहकर ही इलाज कराइए. 

दरअसल राम रहीम वोट बैंक है और इसीलिए राजनीतिक वैल्यू है उसकी. उसे पैरोल मिल जाती है सिर्फ़ माँगने भर की देरी है. उसे अदालत का रुख़ नहीं करना पड़ता और जब राज्य सरकार से प्रभावित प्रशासन उसे ग्रांट कर देता है तो संबंधित राज्य पंजाब हरियाणा में विरोध भी नहीं होता ; वोटरों  की नाराज़गी का डर तो हर पार्टी को है ना. उधर आसाराम इस मापदंड पर खरा नहीं उतरता. और तो और, इक्का दुक्का नेता को छोड़कर अमूमन कोई भी राजनीतिक पार्टी, सत्ताधारी हो या विपक्ष, आसाराम के साथ खड़ा नहीं दिखना चाहता. इसकी सॉलिड वजह भी है, उसका घृणित जुर्म.  

अमूमन उम्रदराज़ सजायाफ़्ता के आवेदन पर सहानुभूति मिलती है परंतु आसाराम के मामले में उसका उम्रदराज़ होना ही बार बार आड़े आ जाता है क्योंकि उसका जुर्म पास्को ऐक्ट के तहत आता है जिससे बढ़कर घृणित कुकृत्य दूजा हो ही नहीं सकता. और यदि वह आदतन है या कहें एडिक्शन है उसे तो पता नहीं कितने कुकृत्य किये होंगे उसने ! फिर वह राम रहीम जैसा कूटनीतिज्ञ भी नहीं है. बोल बचन भी है मसलन सारे नेता, अधिकारी मेरी जेब में है, मेरे पास आते रहे हैं. साथ ही माने या ना माने आसाराम का हिंदू पापी होना भी वजह है, पैरोल दे दी तो पक्षपाती करार दे दिया जाएगा फिर भले ही पैरोल अदालत ही क्यों ना दे दे ! 

राम रहीम को कभी २० दिन तो कभी ३० दिन और इस बार तो चालीस दिनों की पैरोल मिलना न्याय व्यवस्था का मखौल सरीखा ही है. और फिर उसे पैरोल की अवधि के दौरान ज़ेड प्लस सुरक्षा भी दी जाती है. वीवीआईपी अपराधी जो है ! सुना इस बार तो उसे जेल से एयरलिफ़्ट कराया जाएगा ! 

माना कोई उसकी पैरोल के ख़िलाफ़ अदालत का दरवाज़ा नहीं खटखटाएगा, अदालत स्वतः भी तो संज्ञान ले सकती है !  बलात्कारी और हत्यारे को स्पष्ट राजनीतिक स्वार्थ के लिए यूँ साल में तीन तीन बार पैरोल दिया जाना क्या न्याय व्यवस्था का भी राजनीतिकरण नहीं है ? 

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Prakash Jain

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