वोटर जो भाजपा वाला ही बटन दबाए तो बटन कहाँ से दोषी होय !

ईवीएम का कोई भी बटन दबाओ, वोट बीजेपी को ही जाता है, जबसे आम चुनाव की घोषणा हुई है, तय हार के लिए बहाना तैयार है कांग्रेस का और अन्य विपक्षी राजनीतिक पार्टियों का, नेताओं का ! दरअसल कोई नई बात नहीं है जब भी चुनाव करीब आते हैं, ईवीएम से छेड़छाड़ और चुनाव धोखाधड़ी के आरोप उभर ही आते हैं. 2009 में, जब कांग्रेस जीत रही थी, तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था. परंतु 2014 से केंद्र की सत्ता पर काबिज क्या हुई बीजेपी अब ईवीएम की विश्वसनीयता का बचाव करते हुए जी जान से लगी हुई है. कॉमन फैक्टर है सुनिश्चित हार जिसका अंदेशा नेताओं को हो ही जाता है जब वे चुनावी समर में लोगों की नब्ज टटोलते हैं. चूँकि वोटरों को कोसा नहीं जा सकता, उनकी नाराजगी मोल नहीं ली जा सकती कल फिर जो उनके ही वोट पाने हैं, ईवीएम के बहाने सरकारी तंत्र की लानत मलामत करते हुए हार का गम गलत किया ही जा सकता है. हाँ, बेचारी ईवीएम जरूर हैरान परेशान है कि ठीकरा वोटरों की बजाय उस पर फोड़ा जा रहा है ! जिसका बटन दबा उसको वोट गया, तो शक शुबहा उस पर करो ना जिसने बटन दबाया ! अब देखिये ना एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ईवीएम वीवीपैट को लेकर उठाये गए तमाम सवालों से सहमत नजर नहीं आ रही हैं, फिर भी दूसरी तरफ कांग्रेस के दिग्गज नेता खुल्लम खुल्ला ईवीएम अटैक कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ईवीएम में मैनीपुलेशन ना हो तो बीजेपी 150 सीटें भी न पा सके !        

शक का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं था ! शीर्ष अदालत इन झक्की एक्टिविस्टों का, साथ ही एक्टिविस्ट वकीलों का, चूंकि वे न्यायविद तो है ही नहीं,  क्या इलाज करे जिन्हें खाद पानी मिलता है इन्हीं राजनितिक विरोधियों से.  हालांकि तमाम कुतर्कों पर जमकर क्लास लगाई न्यायमूर्ति ने, किसी को नहीं बख्शा भले ही वह नामचीन प्रशांत भूषण, गोपाल शंकरनारायण, संजय हेगड़े हों या फिर थेथर पाशा ही हों ! लेकिन इन चिकने घड़ों पर क्यों फर्क पड़े ? 

अंततः चुनाव की पूर्व संध्या पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से वोटिंग और वीवीपैट पर्चियों से मिलान की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गईं है और पीठ ने फ़ैसला भी सुरक्षित रख लिया है. लेकिन व्यापक वीवीपैट सत्यापन पर जोर जारी है. हालांकि याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के वकील प्रशांत भूषण के ईवीएम के बजाय सीक्रेट बैलट पेपर से चुनाव कराये जाने के लिए दिए गए तर्क, कि कैसे अधिकांश यूरोपीय देश, जिन्होंने ईवीएम के माध्यम से मतदान का विकल्प चुना था, वापस कागज के मतपत्रों पर लौट आए, की धज्जियाँ उड़ाते हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने तंज कसा कि हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं, हम सभी जानते हैं कि जब बैलट पेपर्स से मतदान होता था, तब क्या समस्याएं हुआ करती थी. हो सकता है आपको पता नहीं हो, लेकिन हम भूले नहीं हैं. प्रशांत भूषण ने जर्मनी की बात की तो जस्टिस चूके नहीं और पलट पूछ बैठे जर्मनी की जनसँख्या कितनी है ! छह करोड़ वाले देश के लिए, जहाँ तक़रीबन 90 फीसदी लोग शिक्षित हैं, बैलट आदर्श हो सकता है लेकिन भारत में तो रजिस्टर्ड वोटर्स 97 करोड़ हैं यानी सोलह गुना ज्यादा !  

कुल मिलाकर अब कितना भी बैलट पेपर के लिए मामला बनाया जाए, "पुनः मूषक भवः" बेमानी है, शीर्ष अदालत सुनेगी भी नहीं ! सो बचा 100 फीसदी ईवीएम VVPAT मिलानी का राग जबकि  उच्चतम न्यायालय ने 2019 आम चुनाव के पूर्व ऐसी ही मांग पर प्रैक्टिकल एप्रोच ली थी और रैंडम सैंपलिंग की तर्ज पर हर संसदीय क्षेत्र में प्रति विधानसभा क्षेत्र में पांच पोलिंग स्टेशन के ईवीएम VVPAT की गिनती का फैसला दिया था. कहने को 100 फीसदी के लिए लॉजिक है कि इस मुद्दे को प्रोग्रेसिव ट्रीट करते हुए सिस्टम में मतदाताओं का विश्वास बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम समझा जाना चाहिए ; परंतु हकीकत में तो राजनीतिक पार्टियों का निहित स्वार्थ है, विक्टिम कार्ड है जब हार सामने दिख रही हो. तुषार मेहता ने कटु सच्चाई की ओर इंगित करते हुए कहा भी अक्सर चुनावों से पहले ये होता रहता है, इसका वोटर टर्न आउट पर भी असर पड़ता है और लोकतंत्र को नुकसान होता है. हालांकि इस पर जस्टिस संजीव खन्ना थोड़े असहज हुए और उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण ने काफी पहले आवेदन कर दिया था. एसजी कह सकते थे तो फिर ठीक चुनाव के पहले ही सुनवाई क्यों ? परंतु उन्होंने माननीय न्यायमूर्ति का सम्मान रखते हुए इतना भर कहा कि वे(अपील कर्ता) वोटर की पसंद का मजाक बना रहे हैं और कोई आश्चर्य नहीं होगा  कल कोई प्लांटेड आर्टिकल/न्यूज आर्टिकल उभर आये ! 

देखा जाए तो न्यायमूर्ति द्वय ने अपील कर्ताओं के तक़रीबन हर तर्क से असहमति जताते हुए सार्थक टिप्पणियां भी की. चूँकि चुनावी प्रक्रिया है, इसकी पवित्रता कायम रहे, किसी को भी शक नहीं होना चाहिए कि ये होना चाहिए था और हुआ नहीं ; इसलिए अदालत ने इलेक्शन कमीशन से विस्तृत पूछताछ की. कमीशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह ने समुचित जवाब दिए और न्यायमूर्ति उनके जवाबों से संतुष्ट भी दिखे.  हाँ, जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ईवीएम VVPAT के साथ संभावित हेरफेर या छेड़छाड़ को लेकर सजा के मौजूदा प्रावधानों से असंतुष्ट नजर आई और  कहा कि जब तक कड़ी सजा का डर नहीं होगा, तब तक ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के साथ हेरफेर या छेड़छाड़ की संभावना हमेशा बनी रहेगी. 

सुनवाई के दौरान अनेको बार दिलचस्प बातें हुई मसलन सीनियर अधिवक्ता संतोष पाल ने जब विश्वसनीय सिस्टम की महत्ता पर जोर देते हुए विकसित देशों द्वारा ईवीएम वाले सिस्टम को छोड़े जाने का हवाला दिया, तब जस्टिस दत्त उन्हें टोक बैठे कि ऐसा मत सोचिए कि दूसरे देश भारत से ज्यादा विकसित हैं ;  वकील निज़ाम पाशा के मतदाताओं को VVPAT पर्ची भौतिक रूप से लेने और मतपेटी में जमा करने की अनुमति दिए जाने के बेतुके से सुझाव और माननीय अदालत द्वारा ऐसी स्थिति में वोटर्स की निजता के उल्लंघन की आशंका व्यक्त किये जाने पर पाशा की हठधर्मिता पर नाराजगी जताते हुए कहा कि आप जो चाह रहे हैं, उसके व्यावहारिक परिणाम आप समझेंगे.  कोर्ट ने चुनाव आयोग से भी पूछा कि क्या वोटिंग के बाद वोटर्स को VVPAT से निकली पर्ची नहीं दी जा सकती है ?  इस पर चुनाव आयोग ने वोटर्स को VVPAT स्लिप देने में बहुत बड़े रिस्क की आशंका जताते हुए बताया कि इससे वोट की गोपनीयता से समझौता होगा और बूथ के बाहर इसका दुरुपयोग किया जा सकता है ; इसका इस्तेमाल दूसरे लोग कैसे कर सकते हैं, हम नहीं कह सकते. कोर्ट रूम में आयोग के तकनीकी अधिकारी भी मौजूद थे और जस्टिस खन्ना, जिन्हें कंप्यूटर संबंधित नॉलेज भी है, ने उन अधिकारी से तकनीकी पहलूओं को भी जाना और समझा. और भी तर्क कुतर्क हुए, कई सुझाव भी दिए गए मसलन वीवीपैट की डिज़ाइन में बदलाव, बारकोड दिया जाना आदि, दो प्रिंट न्यूज़ (क्विंट और मनोरमा)  के हवाले से ईवीएम वीवीपैट से संबंधित विसंगतियों को भी उठाया गया. सभी बातों का इलेक्शन कमीशन ने जवाब दिया और न्यायालय संतुष्ट भी दिखी. 

फैसला क्या होगा ? समझ तो आ रहा है जब जस्टिस मान रहे है कि अपील कर्ता बेवजह ही बहुत दूर की सोच रहे हैं जो बेमानी है, हर चीज पर शक नहीं किया जा सकता है. अगर बेहतर हुआ है, कुछ बेहतर किया है तो उनकी तारीफ़ इसलिए नहीं करेंगे कि सरकार फलाने की है, ईवीएम, VVPAT सरकारी कंपनियों ने बनाये हैं, सर्वथा गलत है, अनुचित है, निहित स्वार्थ वश है. उन्हें सुना गया क्योंकि न्यायालय को भी चिंता थी. क्या हर चीज समझाने की जरूरत है ? टेक्निकल एलिमेंट को समझने की जरूरत नहीं है. सौ बातों की एक बात, वोटर को चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण से संतुष्ट होना होगा. एविडेंस एक्ट यह भी कहता है कि आधिकारिक कामों को आम तौर पर वैध माना जाता है. 

हाँ , वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने एक बात सही कही कि चूंकि काउंटिंग तत्काल होती है, एक अलग ऑडिट होनी चाहिए भले ही समय लगे. तभी गिनती प्रक्रिया में अधिक विश्वसनीयता आएगी.  तदनुसार सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं. दूसरे, जैसा स्वयं न्यायमूर्ति ने कड़ी सजा की बात की संभावित गड़बड़ी या हेराफेरी के लिए चूँकि जब भी होगी, मानवीय ही होगी.    

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Prakash Jain

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