कब से कह रहे थे, अब तो अमेरिकन पैरेंट्स ने भी ठान लिया है तय करने का कि बच्चे इंटरनेट पर क्या देखें ?

वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में कौन कहाँ होता है, कई पैरामीटर्स पर परख होती है देश की ! अभी इसपर बात नहीं की जा रही है कि भारत क्यों हैप्पीनेस इंडेक्स में इस कदर पिछड़ा है ? जो है सो है, किंतु एक मापदंड टीनएजर्स के हैप्पीनेस का भी है जिसका स्कोर ओवरऑल टैली को कंट्रीब्यूट करता है, प्रभावित भी करता है. 

इंडिया की बात करें तो कल तक इंटरनेट महंगा था, सब अफोर्ड नहीं कर सकते थे तो बच्चों और किशोरों के लिए सामान्यतः दूर की कौड़ी थी. फिर एक तो इंटरनेट तथा गैजेट्स की सस्ती और सहज उपलब्धता और दूजे कोरोना काल से शुरू हुए ऑनलाइन क्लासेस के दौर ने टीनएजर्स के हाथों में गैजेट थमा दिए. जब वयस्क ही निज पर शासन नहीं रख पाए और सोशल मीडिया के दुश्चक्र में फंसते चले गए तो इन बच्चों और किशोरों की क्या ही बिसात जो बच पाते ! एक मूल मंत्र है निज पर शासन फिर अनुशासन, इसलिए टीनएजर्स पर डिजिटल अनुशासन लागू करना या उन्हें अनुशासित रखना कठिन सा होता चला गया. एक छोटी सी व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति ऑनलाइन ही पढ़ी थी, क्वोट किये देते हैं चूँकि सटीक बैठती है - 

आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी सोशल मीडिया की

घर बैठे हम दर्शन करते सब लोगों के दुनिया की

क्या खाया और पहना हमने सबको तो ही बतलाते

छोड़ ह्रदय की बातें हम तो चेहरे को ही दिखलाते

संस्कार हमारे हमें छोड़कर लोगों तक हैं पहुँच रहे

इंस्टाग्राम फेसबुक के बदले खुद को हैं हम बेच रहे

बात करें भारत भविष्य की और लोगों के दुनिया की

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी सोशल मीडिया की  

इससे ही दिन होता है और इससे ही होती है रात

बन्दर जैसे फोटो खिंचवाया तब शायद बनती है बात

लाइक कमेंट शेयर देखने को हम कितने रहते बेचैन

टिकटॉक पर फॉलोवर्स नहीं तो क्यूँ आये एक पल भी चैन

पबजी से बर्बाद हो रही चर्चा बच्चों के दुनिया की

आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी सोशल मीडिया की             

जयपुर के एक प्रसिद्ध हायर सेकेंडरी स्कूल के अध्यापक गणों ने पोस्ट कोरोना फिर से स्कूल आने वाले स्टूडेंट्स की अन्यमनस्कता के भिन्न भिन्न स्वरूपों के बारे में चिंता जाहिर करते हुए बताया कि किस प्रकार वर्चुअल वर्ल्ड की स्वच्छंद एंट्री ने किशोरों को स्पॉइल किया ! अत्यधिक स्क्रॉलिंग को बढ़ावा देने के लिए लाइक बटन और एआई के उपयोग ने डेवलपिंग दिमागों पर हार्मफुल इम्पैक्ट डाला, ऑनलाइन क्लासेस करते करते पता नहीं कब वे लक्ष्मण रेखा लांघते चले गए, वर्जित कंटेंट्स सर्फिंग करने लगे ! एहसास पेरेंट्स को भी हुआ लेकिन वो कहते हैं ना हम हिन्दुस्तानियों को पिछली रोटी खाने की आदत है. अब जब अमेरिकन पेरेंट्स जागे हैं, उम्मीद है हम भी बच्चों और टीनएजर्स के लिए नई सोशल मीडिया पालिसी बनाये जाने पर जोर डालेंगे. 

हुआ ऐसा कि इस साल पहली बार अमेरिका विश्व के 20 सबसे खुशहाल देशों की सूची से बाहर हो गया जिनकी प्रमुख वजहों में अमेरिका के टीनएजर्स में सोशल मीडिया एडिक्शन से होने वाला तनाव भी था. अब न्यूयॉर्क राज्य में बच्चों में सोशल मीडिया एडिक्शन को कम करने के लिए एक क़ानून लाने की बात हो रही है. ड्राफ्ट भी तैयार है जिसके मुताबिक़ सोशल मीडिया कंपनियों को पेरेंट्स से पहले अप्रूवल लेनी होगी कि १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों की फीड पर क्या क्या दिख सकेगा. बच्चों की अल्गोरिथम क्या हो सकेगी और रात के 12 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर नियंत्रण किया जाएगा. 

कानून इस उद्देश्य से प्रस्तावित है कि बच्चों के सोशल मीडिया पर ऐसे अल्गोरिथम न आएं , जिनसे उनमें किसी तरह की लत लगे या तनाव बढे. इसके अलावा सोशल मीडिया कंपनियां बच्चों का निजी डाटा एकत्रित कर उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल न कर सकें. न्यूयॉर्क राज्य के इस प्रस्तावित कानून पर सोशल मीडिया कंपनियों ने अपना बचाव शुरू कर दिया है. वे सोशल मीडिया प्लेटफार्म के एल्गोरिथ्म से युवाओं को होने वाले फायदों को गिना रहे हैं. उनका तर्क है कि इस प्रस्तावित क़ानून में महत्वपूर्ण कानूनी और व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं. ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सही उम्र पता लगाने के कम तरीके हैं ; इस क़ानून से उन तरीकों पर प्रतिबन्ध लग सकता है. इसे नाबालिगों और कंपनियों दोनों की फ्री स्पीच को खतरा है. सोशल मीडिया जायंट्स मसलन अमेजन, मेटा , स्नेप की बेचैनी इस कदर है कि उन्होंने बाकायदा लॉबीइंग शुरू कर दी है, दबाव बनाने के लिए पैरवी करने वाले, मीडिया संस्थानों से लेकर राज्य के अधिकारियों को 7 लाख डॉलर तक की घूस दी है, ताकि क़ानून के प्रति लोगों में संशय बढे, विरोधाभास बढे. ऐसा माना जा रहा है इन कानूनों से ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म को भारी नुकसान होगा क्योंकि बच्चों और टीनएजर्स के डाटा पर अधिकार जो नहीं मिलेगा. 

वैसे अमेरिका के कई राज्यों ने सोशल मीडिया पालिसी बना ली है. २०२२ में कैलिफ़ोर्निया पहला ऐसा राज्य बना था, जिसने "ऐज एप्रोप्रियेट डिज़ाइन कोड" बिल पास किया था जिसमें १८ साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ऑनलाइन ऍप्स में सुरक्षा फीचर लाने की बात कही थी. नियम के अनुसार कोई अजनबी किसी १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चे को मैसेज नहीं भेज सकता था. हालांकि सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने इस नियम को अदालत में चुनौती दी है. 2023 में अमेरिका के 33 राज्यों ने मिलकर मेटा पर मुकदमा दायर किया था कि वे बच्चों को अपने प्लेटफार्म से जोड़ने के लिए जानबूझकर असुरक्षित फीचर्स का उपयोग करता है. अब चूंकि अमेरिका जग गया है तो इंडिया जगेगा ही !  

ठीक है कानून जब बनेंगे तो बनेंगे और जब बन जाएंगे तो तोड़े भी जाएंगे क्योंकि सरफिरों की कमी थोड़े ना है जो कहते हैं Rules are made to be broken ! भला तो मां बाप ही करेंगे चूँकि वे स्पेशलिस्ट हैं बच्चों के लिए इस मायने में कि उन्हें पता है कैसे अपने बच्चों को आत्म अनुशासन के लिए प्रेरित करना है. 

किशोरों के मस्तिष्क का विकास आम तौर पर यौवन से पहले, लगभग 10 साल की उम्र में शुरू होता है और प्रारंभिक वयस्कता तक रहता है. यह विकास का एक महत्वपूर्ण चरण है जिसके दौरान मस्तिष्क में नाटकीय विकासोन्मुख परिवर्तन होते हैं. प्रारंभिक किशोरावस्था में, साथियों का ध्यान आकर्षित करने की इच्छा से जुड़े मस्तिष्क क्षेत्र तेजी से संवेदनशील हो जाते हैं. सोशल मीडिया उस इच्छा का शोषण कर सकता है. यही वह समय भी है जब आत्म-नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण मस्तिष्क क्षेत्र पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. बच्चों की इन्ही कमजोरियों के मद्देनजर पेरेंट्स को आवश्यक दिशा निर्देश विकसित करने होंगे, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि एकतरफा फरमान उल्टे पड़ जाते हैं. उन प्लेटफार्मों पर सोशल मीडिया का उपयोग सीमित करें जिनमें लाइक की संख्या शामिल हो या जो अत्यधिक उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं. किशोरों को सीमा निर्धारित करने और आत्म-नियंत्रण सीखने में मदद करने के लिए अधिकांश उपकरणों या प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध स्क्रीन टाइम सेटिंग का उपयोग करना होगा. किशोरों में स्वस्थ मस्तिष्क के विकास को सुनिश्चित करने के लिए रात में कम से कम 8 घंटे की नींद में बाधा डालने वाले स्क्रीन टाइम पर रोक लगानी होगी. 
आज इस वर्चुअल वर्ल्ड के बॉयकॉट की बात करना या बॉयकॉट इम्प्लीमेंट करना बेमानी है. परंतु सोशल मीडिया पोस्टिंग और देखी गई सामग्री की वयस्क निगरानी निश्चित ही अपेक्षित है, खासकर शुरुआती किशोरावस्था में. अनिरीक्षित (unsupervised) सोशल मीडिया के उपयोग से बच्चों को संभावित रूप से हानिकारक सामग्री और फीचर्स के संपर्क में आने की अधिक संभावना है. अध्ययन बताते हैं  कि माता-पिता के लिए किशोरों के साथ चल रही चर्चाओं में शामिल होना भी महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया का सुरक्षित और उपयोगी तरीकों से उपयोग कैसे किया जाए. एक महत्वपूर्ण बात, किशोर अपने माता-पिता से कुछ सोशल मीडिया व्यवहार और दृष्टिकोण सीखते हैं. वयस्कों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने जीवन में स्वस्थ सोशल मीडिया का उपयोग करें.  एक रूटीन बनाई जा सकती है कि डाइनिंग टेबल पर और अन्य फॅमिली टाइम पर सोशल मीडिया का उपयोग न करें, साथ ही सोशल मीडिया के उपयोग के बारे में वही बातचीत हो जिसके अनुरूप बच्चों से अपेक्षा होती है. अपने लिए सोशल मीडिया के उपयोग की सीमा निर्धारित करें और अपने बच्चों को आपके उदाहरण का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करें. कभी कभी फॅमिली एज़ ए व्होल सोशल मीडिया से ब्रेक लें और इस ब्रेक के दौरान लंबे समय तक सोशल मीडिया से दूर रहने की स्थिति में होने वाली चुनौतियों और प्रलोभनों पर विचारों के आदान प्रदान का एक स्वस्थ सेशन रखें.  

हाँ , सवाल है तब क्या करें जब बच्चा सोशल मीडिया के दुष्चक्र में फंस गया है ?  संकेत वह देता है मसलन उसकी दैनिक दिनचर्या और प्रतिबद्धताएं, जैसे स्कूल, काम, दोस्ती और एक्स्ट्रा करीकुलर गतिविधियां प्रभावित हुई हो ; या वह व्यक्तिगत और सामाजिक मेलजोल से जी चुराता हो ; या उसकी नींद डिस्टर्ब हो गई हो और वह आठ घंटे की क्वालिटी स्लीप स्लिप करता हो ; या वह नियमित शारीरिक गतिविधियों से बचता हो ; वह चाहकर भी सोशल मीडिया से परहेज नहीं रख पा रहा हो और बार बार चेक करने की तीव्र लालसा नहीं छोड़ पा रहा हो ; या वह ऑनलाइन समय बिताने के लिए झूठ बोलने लगा हो या भ्रामक व्यवहार करने लगा हो !  इस हालात में सोशल मीडिया तक उसकी पहुँच पर रोक लगाने के लिए नए सिरे से कठोर सीमाएं लागू करनी ही पड़ेगी. फिर भी यदि लगे  कि आपके बच्चे को मनोवैज्ञानिक नुकसान हो रहा है या आपको अपने बच्चे के सोशल मीडिया उपयोग को प्रबंधित करने में कठिनाई हो रही है, तो एक मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल ही आपको डिजिटल दुनिया से जुड़ने के स्वस्थ तरीके खोजने में मदद कर सकता है.  

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Prakash Jain

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