अमर सिंह चमकीला अमर रहे !

सत्तर अस्सी के दशक में पंजाब के एक बेहद लोकप्रिय लेकिन बदनाम सिंगर की त्रासदीपूर्ण ज़िंदगी के सफरनामे को इस कदर ख़ूबसूरती से ढाला है इम्तियाज़ अली ने कि फिल्म अब अमर सिंह चमकीला को वाक़ई अमर करने जा रही है. मोरल पुलिसिंग, जातिगत भेदभाव, सोशल बुली और पूर्वाग्रह जनित त्रासदी की गहराइयों को मापने का दुस्साहस किया काबिल इम्तियाज ने और नतीजन धनीराम(बचपन) उर्फ़ अमर सिंह(जवान) उर्फ़ चमकीला(सिंगर) की कहानी सतही नहीं रह गई. 

दरअसल बायोपिक फिल्म "अमर सिंह चमकीला" अलग नजर आती है, अलग समझ आती है, इम्तियाज अली की वजह से. फिल्म के एक गाने 'बाजा' की एक लाइन ही  "जिस वजह से चमका वो, उस वजह से टपका. चमकीला, सेक्सिला, ठरकीला, वो गंदा बंदा." चमकीला की कहानी बता देती है. परंतु इन सतही वजहों के पीछे की असल कहानी व्यूअर्स को अवाक सा कर देती है, जिसकी वजह है चमकीला की लाइफ के फिनोमिना को दिखाने का इम्तियाज का अद्भुत प्रोसेस जिसके लिए उन्होंने कमाल के सिनेमेटिक टूल्स यूज़ किये हैं. 

चमकीला की हत्या को ३० साल बीत गए, लेकिन पंजाब में यह पहेली आज भी अनसुलझी है. क्या दोष था तब के नामचीन गायक का ? क्या उसके गाने की वजह से ? उसने तो वही लिखा और गाया जो आम मर्द सोचते हैं. यदि सोचने वाला दिमाग अश्लील नहीं है तो उस सोच को गीत में उतार देने वाला कैसे अश्लील हो गया, कैसे गंदा बंदा हो गया ? जब वो बच्चा ही था, धनीराम था, घर में महिलाओं को शारीरिक अंगों की स्थितियों का चित्रण करने की पूरी आजादी थी. कुछ ‘आजादी’ उसने भी हासिल की या कहें उसे मिल गई महिलाओं को पुरुषों के साथ अलग अलग स्थितियों में देखने की. बच्चा किशोर हो रहा था. शरीर उसका भी मचल रहा था, बस जो कुछ था, वह उसने गानों में उड़ेल दिया. शादी ब्याह में दुल्हन लाने के लिए बारात के निकलने के बाद नकटौरों में जो कुछ महिलाएं चोरी-छिपे गाती-करती थीं, उस पर अमर सिंह ने अपने संगीत का चमकीला मुलम्मा चढ़ाया और बाजार में हिट हो गया. फिल्म का ही एक सीन है. चमकीला की उम्र कोई पांच-सात साल है. कुछ महिलाएं जमा होकर एक गाना गा रही हैं. उसमें 'खड़ा' शब्द बार-बार आ रहा है. और उनके गाने में इस शब्द का वही अर्थ है, जो आपके दिमाग में आ रहा है. इस पर चमकीला अपनी मां से पूछता है कि 'खड़ा' का क्या मतलब होता है. ये किस बारे में बात हो रही है. तो मां उसे थप्पड़ मारकर चुप करा देती है. फिर वो बड़ा होता है, तो उसी तरह के गाने बनाने शुरू कर देता है. क्योंकि उसे लगता है कि लोग इस तरह के गाने सुनना पसंद करते हैं. और उसका ये सोचना सही साबित होता है. क्योंकि कुछ ही सालों में वो 'ऐसे' गाने गाकर पंजाब का सबसे मशहूर सिंगर बन जाता है. इस कदर फेमस हो जाता है कि ओट में, दालानों में, छतों पर, आँगनों में , छिपकर औरतें भी , लड़कियां भी "बैंगन बैंगन" गाना गाते हए मस्त मगन हो जाया करती थी मानों यही उनकी परंपरा हो !  

तो गलत क्या हो गया या क्या गलत उसने किया ? पंजाब में तो हमेशा सब कुछ अतिशय रहा है, जुनून की हद तक रहता है. प्यार हुआ तो कोई हद नहीं थी, नशा भी उड़ा तो खूब उड़ा ; तो फिर गाने अश्लील या गंदे ही गाये तो कोरी कल्पना थोड़े ना थी. उसने बचपन से अपने आसपास जो देखा, जो सुना, जिन परिस्थितियों से गुजरा, उन्हीं चीजों ने उसके व्यक्तित्व को बनाया और वह अपने गानों में पुरुषों की फैंटसी उतारने लगा. वो तो नैसर्गिक गीतकार था, गायक था ; न कोई संगीत की तालीम हासिल की ना ही किसी घराने में पैदा हुआ था. 

गलत था उसका दलित होना और ये कैसे गवारा होता खाड़कुओं को, संगत को, समकालीन गवैयों को जिनके गानों को लोग भाव नहीं देते थे जबकि तथाकथित अश्लीलता तो उनके गानों में भी थी, कहीं ज्यादा थी ! अखाड़े सजें कुलीनों के और महफ़िल लुटे, नाम कमाए एक दलित, नीची जाति का गवैया जिनके फीमेल ओब्जेक्टिफायिंग गानों पर खुल्लम खुल्ला थिरकें कथित बड़े, कुलीन मर्द जो अपनी औरतों को वही उत्तेजक गाने गुनगुनाते हुए रस लेंगे ! यकीन मानिये चमकीला अगर किसी ऊंची जाति का होता तो उस पर न सिर्फ अब तक दर्जनों किताबें लिखी जा चुकी होती बल्कि उस पर फिल्म भी न जाने कब बन गई होती.  लेकिन, एक दलित की हत्या की तफ्तीश भी आज तक पूरी नहीं हो सकी. किसी को पता नहीं कि अमर सिंह चमकीला को किसने मार दिया? और क्यों मार दिया? 

"दलित" गवैया यदि भक्ति गीत, धार्मिक गाने भर गाता तो यही संगत, यही दबंग लोग और समाज के कथित ठेकेदार उसे सर आँखों पर बिठाते क्योंकि दम जो भर पाते कि उनकी रहमत का असर है ! परंतु इस चमकीले ने तो वर्जित जॉनर में धूम जो मचा दी थी ! वह चुभने लगा था, उसकी अथॉरिटी चुभने लगी थी. बेशक चमकीला के हमेशा डबल मीनिंग वाले गाने थे लेकिन पिंड (गांव) में या घरों में आम बोले जाते थे. वह खेत में काम करने वाले किसानों और ट्रक चलाने वाले सरीखे लोगों के बीच खूब लोकप्रिय हो चला था , वे लोग बैठकर उसके गाने सुनते थे और खूब पसंद करते थे और शायद यही बात कथित अच्छे परिवारों को नागवार गुजरने लगी थी.

एकबारगी तो वह संगत की बात मान भी बैठा और ठान लिया था कि वह इन गानों को नहीं जाएगा. उसने कई धार्मिक गीत गाये भी और उसके गाये 'सरहिंद दी दीवार', 'बाबा तेरा ननकाना' और 'तलवार में कलगीधर दी हां' सरीखे गाने सुपरहिट हुए भी, लेकिन लोगों के प्रेशर के बाद उसने फिर से ऐसे गाने गाना शुरू कर दिया क्योंकि लोगों को यही पसंद था. चमकीला की इस हरकत पर उसके साथ काम करने वाला एक साथी फिल्म में कहता भी है, "जब गाने की बात आती है, तो ये लोगों का गुलाम है जी"

अंततः यही एहसास उसके काल का ग्रास बना. तभी तो कनाडा की संगत से मीटिंग की और वही सबके सामने गाड़ी में बैठते ही बीड़ी सुलगा ली, चूंकि समझ गया था वो कि उसकी गायकी के चलते जिन गायकों की दुकान बंद हो चुकी है, या तो वे, या फिर खाड़कू या फिर पुलिस उसे किसी न किसी दिन मार ही देगी. और, जब किसी इंसान के दिल से मरने का खौफ निकल जाए, तो फिर हत्यारों का काम आसान हो गया ना ! 

फिल्‍म में दिलजीत दोसांझ और परिणीति चोपड़ा लीड रोल में हैं और दिलजीत ने वाकई दिल जीत लिया है. 'अमर सिंह चमकीला' मार्मिक है, उत्तेजक है और किसी कविता की तरह है, जो ज्वलंत भावनाओं को जगाती है. फिल्‍म में उद्देश्य भी है, सहानुभूति भी. व्यूअर्स फिल्म देख रहा है और सवाल दर सवाल घुमड़ते हैं उसके  जहन में मसलन, क्या हम अस्तित्व के गुलाम हैं? कला क्या है? यह कौन तय करता है कि कला के रूप में क्या सही है और क्या गलत? क्या सम्मान के बिना प्रसिद्धि मायने रखती है? क्या किसी से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वह जीवन भर नफरत और अपमान सहते रहे, वो भी इसलिए कि उसने एक फैसला लिया? और आखिरकार, क्या आप कला को कलाकार से अलग कर सकते हैं? यकीनन आलोचना हो , लेकिन बैन क्यों ? अमर सिंह चमकिला, अपने आप में कोई हीरो नहीं है. वह समाज का तिरस्कार नहीं करता है, लेकिन झुकना उसे मंजूर नहीं ! सो उसने धमकियों से बचने का विकल्प चुना. 

करीब 2 घंटे और 25 मिनट की यह म्यूजिकल फिल्म डॉक्यूमेंट्री भी है, कुछ कुछ इनवेस्टिगेटिव भी है और जब तब पोलिटिकल भी है.यह फिल्म पूरी तरह से दिलजीत दोसांझ की है. वह एक बेहतरीन सिंगर तो है ही, फिल्म में उन्होंने अपने एक्‍ट‍िंग करियर का अब तक का बेस्ट दिया है. वह पर्दे पर विनम्रता, हताशा और गुस्से जैसे भाव को शानदार ढंग से उकेरते हैं. परिणीति चोपड़ा बस ठीक है, अखरती नहीं. 

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Prakash Jain

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