"Popping bubbles as we see them.We express strong opinions. Not investment advice." - ऐसा हिंडेनबर्ग का बायो कहता है जबकि कंपनी का प्रमुख काम शार्ट सेल्लिंग है. और इसी आशय का कंपनी अपनी रिसर्च रिपोर्ट में एक डिस्क्लेमर भी देती है ताकि ज़रूरत पड़ने पर कानूनन एस्केप रूट ले सके. डिस्क्लेमर का लब्बोलुआब कुछ इस प्रकार का है, " कंपनी जिन प्रतिभूतियों (शेयर, बांड आदि) की चर्चा कर रही है, उनमें शॉर्ट पोजिशन रख सकती है.”
और इस बार तो अदानी के बहाने इंडियन रेग्युलेटर सेबी को निशाना बनाया है हिंदेनबर्ग ने ! वह भी एक्स्ट्रा सेफ खेलते हुए किसी अनाम व्हिश्लब्लॉवर की रिपोर्ट के आधार पर ! मतलब ख़ुद का कोई रिसर्च नहीं, किसी माधो की रिपोर्ट को कट पेस्ट कर दिया !
सो स्पष्ट हुआ हिंडेनबर्ग जो भी ओपिनियन फॉर्म करता है , स्ट्रांग होती हैं चूंकि सनसनीखेज होती हैं. परंतु सच्ची होगी, संदेह है ! दरअसल शेयर मार्केट की हाइपर सेंसिटिविटी को एक्सप्लॉइट कर शार्ट सेल्लिंग के माध्यम से (स्वयं या अपने खैरख्वाहों द्वारा) प्रॉफिट पॉकेट करना ही उसका परम धर्म है. पब्लिक एट लार्ज को तो भुगतना ही है, उनकी जमा पूंजी स्वाहा भी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं !
हिंडेनबर्ग का तो काम है, उसने बखूबी अंजाम भी दिया था पिछली बार ! अडानी के शेयरों में 25-30 फीसदी की तुरंत गिरावट आई थी. और जब देश की शीर्ष अदालत ने क्लीन चिट दी, तब अडानी के भाव जस के तस हो गए ! जाने अनजाने यही तो हिंडनबर्ग की भी चाहत थी ! यही होता है वाइट कलर ब्लैकमेल ! हिंडनबर्ग की मंशा कभी थी ही नहीं कि अडानी अर्श से फर्श पर आकर फर्श पर ही बना रहे ! अडानी पुनः आबाद हुआ तभी तो हिंडनबर्ग का "नेक" मकसद सिद्ध हुआ ना, भले ही आम इन्वेस्टर्स उसे जमकर कोसे !
हिंडनबर्ग ने तो अपने धंधे के लिए फिर तक दांव फेंका, परंतु विपक्षी नेताओं का उसे यूँ लपक कर प्रलयंकारी होना पब्लिक इंटरेस्ट में तो कदापि नहीं है. होगा तो पब्लिक का लॉस ही होगा ! तो फिर वे क्यों हिंडनबर्ग के खैरख्वाह बन रहे हैं ? नेता भूल गए कि शेयर बाजार में इंटरेस्ट रखने वाले लोग अपेक्षाकृत परिपक्व होते हैं, वे अब दलगत राजनीति को भांप पा रहे हैं, निशाना क्या है और कहाँ है समझ रहे हैं वे ! फिर कहावत भी है काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती. बमुश्किल साल ही तो बीता है जब देश की शीर्ष अदालत ने इसी हिंडनबर्ग द्वारा अडानी के खिलाफ आरोपों की पहली किस्त को नकार दिया था. फिर आरोपों की झड़ी लगाई है तो आरोपों को झूठा भी बताया जा रहा है. कल जो झूठा सिद्ध हुआ उसी हिंडनबर्ग को विपक्ष देवदूत क्यों मान बैठा है ? सनद रहे शार्ट रन में हिंडनबर्ग की अंधाधुंध कमाई करने की कुत्सित मंशा परवान चढ़ेगी, पब्लिक अपनी जमा पूंजी की वाट लगा देगी और लॉन्ग रन में अडानी फिर बूम बूम करेगा और पब्लिक बेचारी हाथ मलती रह जायेगी ! जहाँ तक पॉलिटिक्स है, एक नैरेटिव खड़ा करने की पुरजोर कोशिश है कथित अंबानी अडानी सरकार के खिलाफ ! हाँ, कितना सफल होगा विपक्ष, इस बात पर निर्भर करेगा कि मार्किट कैसे रिएक्ट करता है ?
बात आरोपों की करेंगे ही नहीं क्योंकि सुनने में जितने आरोप सही लगते हैं, उतने ही उन आरोपों को गलत और झूठा बताने वाले तर्क भी सही लगते हैं ! और फिर दोनों को सुनकर क्या सही है क्या गलत है, निष्कर्ष तो सक्षम प्राधिकरण ही निकाल सकता है, भले ही एक बार फिर वह सुप्रीम कोर्ट ही क्यों न हो ! वैसे तो हर नेता शीर्ष न्यायालय के लिए भरपूर सम्मान प्रदर्शित करता है, परंतु महज दिखावा ही करता है. सम्मान तब है जब मनमाफिक है, वरना तो सवाल है ! और मीडिया का तो बुरा हाल है, निष्पक्ष मीडिया लुप्त है, हर बात पर, हर घटना पर, हर मसले पर, या तो प्रो पक्ष(सत्ता) है या फिर प्रो प्रतिपक्ष(विपक्ष) ! अब देखिये नेता प्रतिपक्ष ने सुप्रीम न्यायालय से सवाल पूछ ही लिया ना कि क्या हिंडनबर्ग के आरोपों पर स्वतः संज्ञान लेगी ? तो भाई, पब्लिक डोमेन में आरोप हैं तो पब्लिक डोमेन में ही आरोप को गलत भी बताया जा रहा है, स्वतः संज्ञान का मामला बनता ही नहीं ! एक और बात, नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि स्टॉक मार्केट में निवेश करना बहुत बड़ा रिस्क हो गया है क्योंकि संस्थान, जो नियामक है, कंप्रोमाइज़ कर लिए गये हैं ! जबकि उन्होंने स्वयं पिछले पाँच महीने में ही इसी स्टॉक मार्केट में पचास लाख रुपये बनाये हैं ! है ना अजीब बात ! वही बात हो गई कि हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग !
हाँ , जैसा कहने को सभी नेता कहते हैं, पब्लिक सर्वोपरि है, जनता की अदालत सर्वोपरि है, तो पब्लिक ने ज़रूर स्वतः संज्ञान ले लिया है. प्रतिपक्षी पॉलिटिक्स की चाहत के विपरीत बाजार ने हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट को खारिज ही कर दिया है, चूंकि अपनी ही चाल चल रहा है. मार्केट एज़ ए व्होल फ्लैट सा ही है, जबकि सीधा इम्पैक्ट अडानी के पोर्टफोलियो शेयर्स पर ज़रूर है. लेकिन यह इम्पैक्ट औसतन तक़रीबन एक से दो फीसदी भर ही है. सो पब्लिक पैनिक नहीं हुई है !
थोड़ा विषयांतर लगे, लेकिन लगे हाथों विपक्ष की हिपोक्रेसी का पर्दाफ़ाश ज़रूरी है ! पता नहीं क्यों अंबानी पर मेहरबान है ? तभी तो अंबानी द्वारा 42000 नौकरियों की कटौती पर चुप्पी साधे हैं, मुखर नहीं है !
#Hindenburg #Sebi #Adani
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