तृणमूल कांग्रेस के लिए भाजपा के आंदोलन से निपटना काफी आसान है क्योंकि वह भाजपा नेताओं के दांव पेंचों से खूब परिचित है ; काट निकाल ही लेगी ! कोलकाता के आर जी कर हॉस्पिटल में एक ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या की जघन्य घटना के विरोध में चूँकि आम लोग सड़कों पर उतर आये थे, ममता सरकार चिंतित हो उठी थी ! एक स्कूल के एलुमनी और मौजूदा छात्रों ने बारिश में भीगते हुए भी घटना के विरोध में रैली निकाली थी, सब का ध्यान आकर्षित किया था. आज घटना को हुए बीस दिन गुजर चुके हैं, लेकिन उसके विरोध में कोलकाता या बंगाल के उपनगरों में रोजाना एक से ज्यादा छोटी-बड़ी रैलियों और सभाओं का आयोजन किया जा रहा है. इसकी वजह से ट्रैफिक जाम में फंसे लोग उस तरह परेशान नहीं नज़र आते जैसे किसी राजनीतिक पार्टी की रैली या सभा के कारण फंसने की स्थिति में नज़र आते हैं. अनेकों विरोध प्रदर्शनों में कला, रंगमंच, संगीत की मशहूर हस्तियों के साथ साथ बंगाली फिल्म उद्योग की मशहूर हस्तियों का भी समर्थन देखने को मिला है, जो अक्सर सीएम ममता बनर्जी के साथ दिखाई देते रहे हैं. तृणमूल की ही पूर्व सांसद मिमी चक्रवर्ती भी खूब सक्रिय रही इन आंदोलनों में, सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर, जिसके लिए पार्टी की प्रति उनकी निष्ठा पर सवाल उठाया गया और उन्हें खूब गंदा ट्रोल भी किया गया ! कोलकाता के रहवासी फुटबॉल प्रेमी हैं, स्टार फुटबॉलर शुभाशीष बोस सपत्नीक सड़क पर उतरे और साथ ही मोहन बागान, ईस्ट बंगाल और मोहम्मडन स्पोर्टिंग के हजारों प्रशंसकों ने भी भाग लिया ! क्रिकेटर सौरभ गांगुली शुरुआत में हिचके जरूर, परंतु फिर पत्नी डोना और बेटी सारा के साथ इन आंदोलनों में शामिल हुए ! यही स्थिति ममता सरकार के गले का फ़ांस बनी हुई है. परंतु अब जब बीजेपी सड़कों पर उतर आई है, आंदोलनों में यहाँ वहां उपस्थिति दिखा कर एक प्रकार से हाईजैक कर ले रही है, ममता सरकार के लिए मानो राहत ही है क्योंकि अपने पारंपरिक राजनीतिक विरोधियों से निपटना खूब आता है उसे !
दरअसल बीजेपी को लगा सुनहरा मौका है ममता सरकार को घेरने का, परंतु यही दांव उल्टा भी पड़ सकता है और संभावना वैसी ही दिख भी रही है. ऐसा नहीं है कि अभी तक हो रहे आंदोलनों, धरना प्रदर्शनों में पोलिटिकल लोग नहीं थे, परंतु किसी ने भी पार्टी विशेष का न तो झंडा लगाया न ही नारे लगाए.
कई स्कूलों कॉलेजों ने रैलियां आयोजित की जिनमें आयोजकों की स्पष्ट अपील थी कि लोग बिना किसी पार्टी के रंग या झंडे के साथ रैली में शामिल हों. इन रैलियों में बहुतेरे लोग ऐसे थे जो पहली बार किसी प्रदर्शन में शामिल हुए थे. परंतु "नबन्ना चलो" से चीजें डाइल्यूट होने लगी है. फिर अगले दिन बीजेपी के बंद क़े कॉल ने एक प्रकार से ममता सरकार के गले की फ़ांस निकाली नहीं तो ढीली अवश्य ही कर दी है. तृणमूल कांग्रेस भाजपा-शासित राज्यों में घटी ऐसी घटनाओं का ज़िक्र जो करने लगी है और इसमें उसे अन्य विपक्षी पार्टियों, यहाँ तक कि कांग्रेस और सीपीआई(एम) तक का, सीधे तौर पर नहीं तो परोक्ष रूप से समर्थन भी मिलने लगा है ; आखिरकार मोदी सरकार के विरोध की राजनीति में ही सबों को अपना अपना अस्तित्व बचा जो नजर आ रहा है !
निःसंदेह हाथरस या कठुआ या फिर अन्यान्य घटी घटनाएं आरजी कर की घटना से कम नृशंस नहीं थीं ; परंतु राजनीति के इस whataboutery के शगल से पीड़िता के लिए न्याय की मांग धुंधली ही पड़ जाएगी. अभी तक तो पीपल पार्टिसिपेशन भर था जिसकी मांग सिर्फ पीड़िता के लिए न्याय की थी, उद्देश्य दवाब इस कदर बनाये रखने का था कि न्याय में किसी भी प्रकार की किसी भी वजह से कोताही न हो ! दिनकर ने क्या सटीक कहा था - "..... लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं, जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है; दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।"
आम लोगों के लिए ममता के इस्तीफे का, जो बीजेपी दलगत और स्वार्थ परक राजनीति के वश मांग रही है, क्या औचित्य ? चूंकि मोटो यही है बीजेपी का, बंगाल की जनता, यूँ भी बुद्धिजीवी कहलाती है, पूछ ही बैठती है कि यूपी की योगी सरकार या हालिया महाराष्ट्र सरकार की बर्खास्तगी क्यों नहीं की ? कहने का मतलब ममता सरकार की whataboutery काम कर जाएगी ! न्याय के नाम पर तो फिर वही बात निर्भया के बाद क्या कुछ बदल पाया ? इस घटना के खिलाफ सड़कों पर उतरी महिलाओं ने पीड़िता के लिए न्याय के साथ ही महिलाओं की सुरक्षा की मांग भी उठाई थी और अब राजनीतिक दलों की इस नूराकुश्ती में इस आंदोलन में उतरने के कारण वह मांग क्या पीछे नहीं छूट जाएगी ?
वरना तो आंदोलन इस कदर हाइप क्रिएट कर चुका था कि ममता सरकार की चूलें हिल गई थीं !घटना की आंच पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा तक भी पहुंचने लगी है. कोलकाता में यौन कर्मियों के सबसे प्रमुख संगठन दुर्बार महिला समन्वय समिति ने जहां दुर्गा प्रतिमा के लिए सोनागाची इलाके की मिट्टी देने से मना कर दिया है वहीं कई पूजा आयोजन समितियों ने इस घटना के विरोध में सरकार की ओर से मिलने वाली अनुदान की रकम ठुकरा दी है. पब्लिक का दारोमदार इस बात पर है कि जहां एक तरफ पीड़िता को न्याय मिले, वहीं दूसरी तरफ महिला सुरक्षा इस कदर चाक चौकस हो कि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृति नहीं हो ! परंतु अफ़सोस ! राजनीति की आंच पर एक बार फिर हमेशा की तरह नेता लोग रोटियां सेंकने लगे हैं, फेमस सिंगर अरिजीत सिंह (बंगाल के मुर्शिदाबाद के हैं ) का "आर कवे" गीत सिर्फ सुनने तक ही रह जाएगा ; कुछ बदलेगा, संदेह ही है !
Write a comment ...