बंगलुरु में एक बेकरी है जो पेस्ट्री , केक आदि बेचती है और शायद साथ में गिफ्ट आइटम्स सरीखी कुछ और वस्तुएँ भी बेचती हैं ! बेकरी की वेबसाइट भी हैं www.facebake.in !
देखा जाय तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती हैं और फेसबुक जैसे जायंट को तो होनी भी नहीं चाहिए ! सिर्फ फेसबुक की तर्ज पर नाम फेसबेक उसी स्टाइल भर में रख लिया है ! किसी ने कहा यदि वेबसाइट ना बनायीं होती पेस्ट्री मालिक ने तो नजर भी नहीं जाती फेसबुक की ! लेकिन भई ; जनाब का फेसबुक पेज भी हैं जिसमें बाक़ायदा फेसबुक स्टाइल में ही फेसबेक के फोटो भी हैं !
फिर बेकरी अप्रैल २०१७ से चल रही है और इसी फेसबुक आभासी स्टाइल नाम से ! लेकिन अब पता नहीं क्यों लगा फेसबुक को कि ऐसा कर बेकरी वाला अपने प्रोडक्ट्स के सोर्स को लेकर लोगों को कंफ्यूज कर दे रहा है मानों लोग फेसबुक के नाम पर पेस्ट्री, केक आदि खरीद ले रहे हैं ? और उन्होंने दिल्ली के उच्च न्यायालय में ट्रेडमार्क के उल्लंघन बावत वाद दाखिल कर बेकरी को 'फेसबेक' मार्क के उपयोग करने से रोक भी लगवा दी है।
फेसबुक के लिए श्री प्रवीण आनंद ने दलील दी कि प्रतिवादी बेकरी, वादी प्रसिद्ध ट्रेडमार्क का अपमान कर रही है और अपने उत्पादों के स्रोत के रूप में बड़े पैमाने पर जनता के मन में भ्रम पैदा कर रही है ।
माननीय न्यायालय को प्रथम द्ष्टया मामला फेसबुक के फेवर में लगा और अंग्रेजी में कहते हैं बैलेंस ऑफ़ कन्वेनिएन्स , वह भी फेसबुक के पक्ष में ही हैं तो सिंगल बेंच ने अंतरिम आदेश जारी कर दिया - प्रतिवादी बेकरी, एजेंटों और कर्मचारियों को "FACEBAKE" या किसी अन्य निशान, जो भ्रामक वादी ट्रेडमार्क समान है, का उपयोग करने से रोका जाता है । प्रतिवादी को नोटिस जारी कर दिया गया है ताकि अगली तारीख में वे अपना पक्ष रख सकें।
हम दूसरी बात कहना चाहते हैं।क्या फर्क पड़ रहा था फेसबुक की सेहत पर ? क्या बेकरी फेसबुक का प्रचार नहीं कर रहा था ? सीधी सी बात गुड स्पिरिट की है, आदर्श भावना की है ! हमारे देश में तो कई सैलून मिल जाएंगे कस्बों में जिन्होंने नाम फेसलुक रखा है और उनका साइनबोर्ड देखें तो फेसबुक का ही आभास होता है ! यदि नाम रखकर हमारा नाई खुद को मार्क जुकरबर्ग समझता है तो हर्ज ही क्या है ?
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