वजह सभी जानते हैं लेकिन व्यक्त नहीं करते ! हिंदू से हिंदी…..! हाँ, जो हम बोल रहे हैं, लिख रहे हैं, वह “हिंदी” की जगह कुछ और नाम से जानी जाती तो शायद विरोध होता ही नहीं !
पिछले दिनों साउथ के पॉपुलर एक्टर किच्चा सुदीप और बॉलीवुड के चहेते अभिनेता अजय देवगन के मध्य छिड़े ट्विटेरिया वार्तालाप ने भारत की राष्ट्रभाषा पर एक बार फिर बहस छेड़ दी। एक तरफ जहाँ दोनों ही एक्टर शालीनता से अपनी अपनी बात रखकर शांत हो गए, हिंदी भाषा का मुद्दा हॉट टॉपिक बन गया ! ना केवल सोशल मीडिया पर खूब रायता फैला बल्कि दोनों ही अभिनेताओं की कहीं क्लास लगाई जाने लगी तो कहीं उनके कसीदे पढ़े जाने लगे ! कर्नाटक की तो पूरी पॉलिटिकल क्लास ने ही अजय देवगन की खूब क्लास लगाई और कच्चा सुदीप के बयान से सहमति जताई।
परंतु देखा जाए तो दोनों ही अभिनेताओं के कथन का इंटरप्रेटशन ही गलत हुआ और उनके कहे में से टुकड़ा उठा कर सहमति या असहमति जताई जाने लगी और दौर अभी भी बदस्तूर जारी है।
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। जब तब होता रहा है और दक्षिण में तो हिंदी विरोध राजनीति का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। आज भी देश के किसी भी कोने में चले जाएँ हिंदी से काम चल जाता है, आप संवाद कर पाते हैं ! स्थानीय भाषा का न आना या समझना आड़े नहीं आता ! परंतु साउथ में अंग्रेज़ी ही काम आती है यदि तमिल, कन्नड़ , तेलुगु या मलयाली नहीं आती तो ! हाँ , साउथ की ही कुछेक जगहें अपवादस्वरूप है जहाँ हिंदी का भी बोलबाला है !
पहले देखें दोनों के बीच क्या इंटरेक्शन हुए ? दरअसल, सुदीप ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'पैन इंडिया फिल्में कन्नड़ में बन रही हैं, मैं इसपर एक छोटा सा करेक्शन करना चाहूंगा। हिंदी अब नेशनल लैंग्वेज नहीं रह गई है। आज बॉलीवुड में पैन इंडिया फिल्में की जा रही हैं ,वह (बॉलीवुड) तेलुगू और तमिल फिल्मों का रीमेक बना रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी स्ट्रगल कर रहे हैं। आज हम वे फिल्में बना रहे हैं जो दुनिया भर में देखी जा रही हैं।' किच्चा सुदीप का ये बयान काफी वायरल हो गया। इसके बाद मुद्दे को 'फ्लावर से फायर' बनने में देर नहीं लगी। अजय देवगन ने इसी बयान का जवाब देते हुए ट्विटर पर लिखा, "किच्चा सुदीप, मेरे भाई...आपके अनुसार अगर हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है तो आप अपनी मातृभाषा की फिल्मों को हिंदी में डब करके क्यों रिलीज करते हैं? हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्रीय भाषा थी और हमेशा रहेगी। जन गण मन." उनके इस ट्वीट के बाद किच्चा सुदीप ने भी जवाब दिया। किच्चा ने लिखा- "सर मैं देश की हर भाषा से प्यार और सम्मान करता हूं। इस टॉपिक को यहीं खत्म करना चाहता हूं। मैंने कहा कि यह लाइनें संदर्भ से पूरी तरह से अलग है। आपको हमेशा प्यार करता हूं और शुभकामनाएं देता हूं। उम्मीद है जल्द मुलाकात होगी।" लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई! इसके बाद किच्चा सुदीप ने लगातार एक के बाद एक ट्वीट किए! उन्होंने अगले ट्वीट में लिखा-'हेलो अजय देवगन सर, उम्मीद करता हूं ये बात आप तक पहुंच गई होगी। जिस संदर्भ में मैंने कहा था वो लाइन पूरी तरह से अलग है। यह किसी को हर्ट करने, उकसाने या कोई बहस शुरू करने के लिए नहीं था। मैं ऐसा क्यों करुंगा।' आगे फिर ट्वीट किया- 'अजय सर आपके द्वारा हिंदी में भेजे गए मैसेज को मैं समझ गया। केवल इसलिए कि हम सभी ने हिंदी का सम्मान किया, प्यार किया और सीखा। लेकिन सोच रहा था कि अगर मेरी प्रतिक्रिया कन्नड़ में टाइप की गई तो क्या स्थिति होगी। क्या हम भी भारत के नहीं हैं सर?' खैर , कहीं तो अंत होना ही था और ये बड़प्पन दिखाया सौम्य अजय देवगन ने ! उन्होंने रिप्लाई किया, 'आप दोस्त है। गलतफहमी दूर करने के लिए शुक्रिया। मैंने हमेशा फिल्म इंडस्ट्री को एक ही माना है। हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं और हम उम्मीद करते हैं कि हर कोई हमारी भाषा का भी सम्मान करेगा।'
दोनों समझदार कलाकारों ने तो गलतफहमियां दूर कर ली या कहें तो दूर हो गयी; लेकिन एक बार फिर भारत की ताकत “हिंदी” के विरोध ने निराश जरूर कर दिया। फिर भी भला तो इसी बात में हैं कि विवाद से बचा जाए।
यह सच है कि भारतीय संविधान ने किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया है। लेकिन अजय देवगन ने जब हिंदी को राष्ट्रीय भाषा (राष्ट्रभाषा नहीं) कहा तो निश्चित रूप से उनका तात्पर्य यही होगा कि हिंदी ही कदाचित वह भाषा है जो समूचे राष्ट्र में हर वर्ग द्वारा आसानी से बोली और समझी जा सकती है। बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी सारी दुनिया में तीसरे नंबर पर है। हिंदी के पास इतना बड़ा बाजार है कि गैर - हिंदी भाषियों को भी अपने हित साधने और देश के बड़े वर्ग को लुभाने के लिए हिंदी को अपनाना पड़ता है। यदि साउथ इंडियन फिल्मों के निर्माता इसी हिंदी क्षेत्र के लोगों को लुभाने के लिए अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करके रिलीज़ करते हैं तो विविध अंतर्राष्ट्रीय उत्पादों के विज्ञापन भी इसीलिए हिंदी में जारी किये जाते हैं, ताकि हिंदी भाषी लोगों को लुभाया जा सके। दुनिया में इतने बड़े बाजार की ताकत को आसानी से अनदेखा भी नहीं किया जा सकता।
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में उन भाषाओं के नाम दर्ज हैं जिन्हे आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गयी है। हालांकि इस सूची में विसंगतियां भी हैं। नेपाली जैसी विदेशी भाषा और कोंकणी सरीखी कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा का नाम इस अनुसूची में हैं लेकिन करोड़ों लोगों द्वारा बोली और समझी जाने वाली राजस्थानी भाषा और भोजपुरी भाषा को इस सूची में शामिल कराने के लिए आंदोलन पिछले कई सालों से चल रहा है। संविधान के अनुच्छेद ३५१ में राज्यों को यह सलाह दी गई है कि वे हिंदी के विकास और उन्नयन में सहयोग करेंगे। शुरुआत में व्यवस्था यह थी कि आजादी के बाद के १५ साल तक अंग्रेजी राजकाज की भाषा बनी रहेगी। हिंदी को अनिवार्य तौर पर लागू करने और न करने के विरोध में हुए आंदोलनों के बीच १९६३ में राजभाषा कानून पारित किया गया, जिसमें १९६५ के बाद राजभाषा के तौर पर अंग्रेजी का इस्तेमाल करने की पाबंदी को समाप्त कर दिया गया। इस कानून के विरोध में तमिलनाडु में इतना उग्र आंदोलन हुआ कि पांच युवकों ने इसका विरोध करते हुए अपने आप को आग लगा ली। विरोध जब मुखर हुआ तो निर्णय लिया गया कि अंग्रेजी को आगे भी राजकाज की भाषा के तौर पर स्वीकार किया जाता रहेगा।
दक्षिण भारत की राजनीति में हिंदी विरोध एक प्रमुख मुद्दा रहा है। हालत यह है कि हिंदी का विरोध करने वाले कई लोग कालांतर में दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण नेता के तौर पर उभरे। लेकिन ऐसा नहीं है कि दक्षिण में हिंदी की पैरवी नहीं की गयी। दक्षिण भारत से ही दो बड़े नाम है - भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय पी वी नरसिम्हाराव और वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू - जिनकी गिनती हिंदी के विद्वानों में की जाती रही है। दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचारिणी सभा वर्ष १९१८ से हिंदी के प्रचार प्रसार का कार्य कर रही है। वर्ष १९६४ के संसद के एक अधिनयम द्वारा इसे राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था घोषित कर दिया गया। वर्ष १९३७ में तत्कालीन मद्रास प्रान्त के मुख्यमंत्री चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने भी प्रान्त के १२५ स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य कर दी थी। हालाँकि इसका भी विरोध हुआ था।
भाषाएँ अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं होती , वे अपने प्रवाह में समाज के सांस्कृतिक सरोकारों को भी सहेजकर रखती है। "वसुधैव कुटुंबकम " को भारतीय चेतना का सूत्र वाकय माना जाता है और हिंदी का वर्तमान स्वरुप इस चेतना का जीवंत प्रमाण है। हिंदी ही है जिसने लोकभाषाओं के अनगिनत शब्दों को आत्मसात किया है , बल्कि अरबी, फारसी, उर्दू ,पश्तो और पुर्तगाली भाषा तक के कई शब्द इसमें इतनी सहजता से रच बस गए हैं कि अब विदेशी मूल के प्रतीत नहीं होते। जावेद अख्तर ने , हालाँकि संदर्भ शायद कुछ और था, कहा था- Nice to see that the slogan of UP BJP “ soch imaandar kaaam dumdaar “ has out of four three urdu words , imaandar , kaam and Damdar . अंग्रेजी अब भी अभिजात्य वर्ग की भाषा है। ऐसे में हिंदी ही ऐसी भाषा है जो सम्पूर्ण भारत में सभी वर्गों में सहजता से समझी , बोली और पढ़ी जा सकती है। शायद यही कारण है कि अजय ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा कह कर संबोधित किया। हिंदी भारत के सांस्कृतिक सरोकारों और सामाजिक संस्कारों की भाषा होने के कारण भारत की ताकत है।
और अंत में डर इस बात का है कि कहीं बेवजह की तुच्छ राजनीति जनित हिंदू और हिंदुत्व के मुद्दे की चपेट में "हिंदी" भी ना पिस जाए ! विडंबना ही होगी यदि "हिंदी विरोध" के सुर पकड़ते हैं क्योंकि वे सुर भी हिंदी में ही लगेंगे ना !
दक्षिण भारत की फिल्म फ्रटर्निटी को समझना चाहिए कि इससे बड़ा क्या हो कि हिंदी सिनेमा का गढ़ बॉलीवुड मराठी भाषी राज्य महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में पनपा है। कुल मिलाकर, दक्षिण भारतीय जिसे हिंदी पट्टी मानते हैं, दरअसल वो एक बहुभाषीय ऐसा इलाका है जो हिंदी समझता है, बिना किसी झिझक के, अपनी-अपनी अलग-अलग बोली होने के बावजूद !
किसी साउथ इंडियन सेलिब्रिटी ने कहा कि बाहुबली, RRR और पुष्पा जैसी फिल्मों ने भाषा का बैरियर तोड़ दिया है। ये सही नहीं है। बाहुबली, RRR और पुष्पा को हिंदी भाषी दर्शकों ने हिंदी में ही देखा है, तेलुगू, तमिल या कन्नड़ में नहीं। इन फिल्मों के कारण ऐसा नहीं हुआ है कि हिंदी भाषी व्यूअर्स में साउथ इंडियन भाषाओं को सीखने का क्रेज़ हो गया हो ! बल्कि उलटे रामचरण और जूनियर एनटीआर सरीखे स्टारों ने हिंदी सीखी है और RRR के हिंदी वर्जन को उन्ही की आवाज में रिकॉर्ड किया गया है। यश और अल्लू अर्जुन ने हिंदी भाषी दर्शकों का दिल जीतने के लिए मुंबई में प्रमोशनल प्रेस बाईट हिंदी में ही दी ! धनुष तो पहले से ही अपनी फिल्मों में हिंदी बोलते आये हैं, चिरंजीवी भी खूब हिंदी जानते है। तो हकीकत यही है क़ि उत्तर भारत के बाजार में पैर रखने के लिए दक्षिण भारतीय फिल्म सितारे सहर्ष हिंदी को अपना लेते हैं। लेकिन, जब वे अपने 'रीजनल' ऑडिएंस के बीच पहुंचते हैं तो हिंदी के प्रति नकारात्मकता छलकाने लगते हैं। माना कि साउथ की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बंपर कमाई कर रही है, साउथ के कलाकार अब पैन इंडिया हीरो बन चुके हैं ; लेकिन इन कलाकारों को फिर सोचना चाहिए कि क्या ये उनकी भाषा की वजह से हुआ है ! उनको देशभर में पहचान मिली है हिंदी की वजह से, क्योंकि हिंदी राष्ट्र भाषा भले न हो लेकिन पूरे देश को एक सूत्र में बांधने वाली कनेक्टिंग लैंग्वेज जरूर है जिसे इस सेंस में राष्ट्रीय भाषा कहा ही जाना चाहिए !
हिंदी भाषा के प्रति सम्मान ही है कि पिछले दिनों शायद जिंदगी में पहली बार सुप्रसिद्ध उद्योगपति वयोवृद्ध रतन टाटा ने हिंदी में भाषण देते हुए कहा कि जो भी बोलूंगा दिल से बोलूंगा। पहले उन्होंने स्वीकारा , "मैं हिंदी में भाषण नहीं दे सकता, इसलिए अंग्रेजी में बोलूंगा…।" लेकिन कुछ देर अंग्रेजी में बोलने के बाद वे खुद को रोक न सके।टूटी-फूटी ही सही, पर हिंदी में बोलने लगे। उम्र के असर के कारण उनकी आवाज में थरथराहट थी। मौका असम में कैंसर हॉस्पिटलों के उद्घाटन का था। इन अस्पतालों को बनाने में सरकार के साथ टाटा की भी हिस्सेदारी है।
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