क्या पोकर खत्म हो गया भारत में ?
कभी मटका था, सिंगल नंबर लॉटरी है, कॉटन का, जूट का फाटका होता था, बारिश का फाटका होता था ; जुआ तो आदिकाल से भारतीय संस्कृति का एक पहलू रहा है, और जैसे-जैसे आधिकारिक रास्ते बंद होते हैं, स्वाभाविक प्रभाव यह होता है कि अधिक संख्या में लोग जुआ खेलने के लिए कम आधिकारिक जगहों (ग्रे मार्केट्स) को चुनते हैं. पोकर के मामले में, जबकि स्किल भी इंवॉल्वड है फिर भी, अनियमित और संभावित रूप से असुरक्षित ‘ग्रे मार्केट साइट्स’ वाली स्थिति आदर्श तो नहीं होगी ना !