
तारीख पर तारीख , तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख मिलती रही है ........लेकिन इंसाफ नहीं मिला माई लार्ड, इंसाफ नहीं मिला ..... मिला तो सिर्फ ये तारीख ! सनी देओल के फिल्म दामिनी के डायलॉग ने न्याय प्रणाली पर तगड़ा प्रहार किया था ! सोचा न था कभी ऐसा रेप्लिका वो भी राइडर के साथ हकीकत बनेगा !
घटना पिछले दिनों १७ जुलाई को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर में कोर्ट रूम नंबर ६६ में हुई। राकेश नाम के एक शख्स ने आरोप लगाया कि अदालत केवल सुनवाई के लिए तारीखें दे रही है, जिससे न्याय की प्रक्रिया में देरी हो रही है।
शख्स २०१६ से लंबित अपने मामले में न्याय न मिलने से नाराज था। उसे इतना गुस्सा आया कि उसने कड़कड़डूमा कोर्ट में हंगामा मचा दिया। इतना ही नहीं लोग इस बात से और ज्यादा हैरान रह गए, जब इस शख्स ने सनी देओल के अंदाज में उनका मशहूर डायलॉग 'तारीख पर तारीख' बोलना शुरू किया और इसके बाद कोर्ट रूम के फर्नीचर और कम्प्यूटर तक तोड़ डाले।
नतीजा देखिये त्वरित कार्यवाही हो गयी। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जिसने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया । दिल्ली पुलिस ने राकेश पर धारा १८६ (किसी भी लोक सेवक को उसके सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में स्वेच्छा से बाधा डालना), धारा ३५३ (लोक सेवक के खिलाफ किसी भी व्यक्ति द्वारा हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), धारा ४२७ (शरारत) और धारा ५०६ (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया है।
काश ! बेचारे फरियादी के मामले का त्वरित फैसला हो गया होता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। तो ककड्नुमा की अदालत में जो हुआ और राजकुमार संतोषी की फिल्म "दामिनी" फिल्म, जिसमें मीनाक्षी शेषाद्री सनी देओल, ऋषि कपूर, अमरीश पुरी, परेश रावल के साथ लीड रोल में थी , की अदालत में हुए घटनाक्रम में जो दिखाया गया था, दो फर्क रहे। सनी देओल, जो फिल्म में एक वकील की भूमिका निभा रहे थे, तारीख पर तारीख चिल्लाते हुए विरोधी वकील (दिवंगत अमरीश पुरी द्वारा अभिनीत) द्वारा मांगे गए नियमित स्थगन पर अपना गुस्सा निकाल रहे थे जबकि यहाँ फरियादी का सब्र ऐसा टूटा कि उसने तोड़ फोड़ भी मचा दी। फिल्म का डायलाग अक्षरशः यूँ था -
"आज आप फिर से एक और तारीख दे रहे हो। इस तारीख से पहले कोई ट्रक आकर मुझे टक्कर मार देगी और मामला सड़क दुर्घटना घोषित हो जाएगा और फिर क्या? आप फिर से तारीख दोगे। लेकिन उस तारीख से पहले, दामिनी को पागल घोषित कर दिया जाएगा और पागलखाने में डाल दिया जाएगा और इस तरह, सच्चाई के लिए लड़ने वाला कोई नहीं होगा, न ही कोई न्याय मांगने वाला होगा। माय लॉर्ड जो कुछ बचा है वह एक तारीख है और यह हमेशा से चला आ रहा है। तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख। न्याय के नाम पर अब तक हमें बस इतना ही मिला है। हमें बस एक तारीख मिलती है। माय लॉर्ड, वकीलों ने इन तिथियों का इस्तेमाल न्याय के खिलाफ एक हथियार के रूप में किया है।"
यकीन मानिये ककड्नुमा की अदालत की घटना सुनकर ही एक बार फिर फिल्म देख डाली , उपरोक्त डायलॉग जो दोहराना था ! साथ ही अपेक्षा है कुछ तो फर्क पड़ेगा और फैसले तारीखों के मोहताज नहीं होंगे !

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