ख़बरें : तरस खाएं या हँसे ! 

खबर जयपुर के कोर्ट परिसर से हैं। २०१६ में हुई हत्या के मामले में एक निचली अदालत द्वारा सुबूत पेश करने को कहे जाने पर पुलिस ने बताया कि थाना परिसर में पेड़ के नीचे रखा सुबूतों से भरा बैग बंदर लेकर भाग गया था। बकौल पुलिस, मालखाना में जगह न होने के चलते उन्होंने हत्या में इस्तेमाल हुए चाकू समेत अन्य सुबूतों वाला बैग वहां रखा था। 

वो बन्दर जिसने सबूत गायब कर दिए !

कोई जुर्म करना और फिर उस जुर्म के सबूत मिटाने वाले लोग कानून और पुलिस की निगाह में पेशेवर अपराधी माने जाते हैं। लेकिन क्या हो जब किसी इंसान के किए हुए अपराध के सबूत कोई जानवर मिटा दे !

इन दिनों राहुल गांधी खूब चर्चा में हैं; वैसे वे चर्चा में हमेशा बने रहते हैं ! पिछले दिनों उन्होंने काठमांडू में एक मयखाने की सैर की ; साथ में उनके २-३ मित्र थे। शायद एक परिचित महिला या महिला मित्र भी थीं ! अमूमन जो होता है यदि खबर राहुल गांधी से संबंधित हो ; बातें बनी और खूब बनी ! खैर ! जो हुआ सो हुआ ! परंतु तरस आया तमाम कांग्रेसियों पर जिन्हें संकोच हो रहा था कि राहुल पब में थे ! सब सफाई देते फिर रहे थे कि क्या राहुल मित्र के शादी समारोह में नहीं जा सकते ? कई तो “वहां” तक पहुंच गए कि “उनको” तो शादी में कोई बुलाता नहीं ! "पब" मानों कोई "वर्जित"  जगह हो ! 

ताजा तरीन खबर एक बार फिर अदालत परिसर से है ! एक यंग बुजुर्ग दंपत्ति( फ़ोटो में उतने बुजुर्ग नहीं लग रहे हैं) ने अपने बेटे और बहु के खिलाफ हरिद्वार जिला न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और मामला घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा १२ के तहत दर्ज भी हो गया है। वजह अजीबोगरीब है क्योंकि बेटे और बहू पर बच्चा प्लान न करने का आरोप है। दावा पांच करोड़ का है यदि दोनों साल भर के अंदर ग्रैंड चाइल्ड की आस पूरी नहीं कर देते ; आखिर इसीलिए तो माता पिता ने बेटे को विदेश तक में पढ़ा लिखाकर पायलट बनाया , उसकी शादी करवाई और हनीमून के लिए बैंकाक भी भेजा ! सब कुछ जोड़ें तो खर्चा उनका दो करोड़ बैठता है और बाकी पोता पोती न देने से होने वाले मानसिक संताप की भी तो कीमत है !

भ्राता लक्ष्मण रेखा खींचते हुए !

आजकल लक्ष्मण रेखा का बहुत जिक्र हो रहा है ! जिक्र हो रहा है तो लक्षमण रेखा वाली स्टिक की याद आ रही है जहां पर चीटियां हो वहां गोल घेरा बना दें, चींटियां मर जाएंगी ! आराध्य राम के संदर्भ में जिस रेखा का जिक्र होता है वह भ्राता लक्ष्मण ने खींची थी मां सरीखी भाभी के चहुँ ओर सुरक्षा कवच के मानिंद ! सीता ने रेखा लांघी और अंजाम जो हुआ सो हुआ ; बहुतेरे जानते है चूंकि आस्था है  और बचे सब भी जानते हैं माइथोलॉजी ही सही ! लेकिन आज  लक्ष्मण रेखा का ज़िक्र तो बिना खींचे ही हो रहा है !  कुल मिलाकर आज की लक्ष्मण रेखा एक मान्यता है जिसे गढ़ लिया जाता है कभी निहित कारणों से तो कभी दूसरे पक्षकार  को नसीहत देने के लिए ! फिर “लक्ष्मण-रेखा” वो शब्द है जो सीमा नहीं लांघता जिस वजह से ना तो धमकाने का आरोप लग पाता है और ना ही किसी की अवमानना का मामला ! 

लक्ष्मण रेखा के चक्कर में बात कहीं रह ना जाए जो  केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कही ! उन्होंने कार्यपालिका और न्यायपालिका समेत तमाम संस्थानों के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ की बात कही और कहा कि किसी को इसे पार नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं. अदालत को सरकार, विधायिका का सम्मान करना चाहिए. इसी तरह सरकार को भी अदालत का सम्मान करना चाहिए। दरअसल ऐसा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह कानून के इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के निर्णय से क्षुब्ध होकर कहा क्योंकि भारत सरकार कानून में अपेक्षित बदलाव के लिए पुनर्विचार और जांच के लिए सहमति जता चुकी थी।    

परंतु तरस किस पर आएगा या हंसी किस पर आएगी ! पक्ष तो दो ही हैं ! एक है भारत सरकार और दूसरी है भारत की सर्वोच्च अदालत ! सत्य कहें तो एक पल किसी पर तरस आता है तो दूसरे ही पल उसपर हंसी आती है और वह "किसी" एक पल ‘भारत सरकार’ है तो दूसरे ही पल ‘सुप्रीम कोर्ट’ ! बोले तो कन्फ्यूज़न ही कन्फ्यूज़न ! पिछली बार कृषि कानूनों पर स्टे लगाया था तो सरकार ने कानून ही रद्द कर दिए थे।  परंतु तब और अब में एक बुनियादी फर्क है। तब कानून बने ही थे जिनको लागू होना था ! अब जो देशद्रोह कानून पर स्टे लगाया है वो तो अंग्रेजों के ज़माने से चला आ रहा है। फिर दुरुपयोग तो क्या अब नहीं होगा ? विशुद्ध देशद्रोह, भगवान ना करे, का मामला भी जाने अनजाने छूट जाएगा ! अवमानना की तलवार जो लटकी रहेगी ! अपना अपना विवेक विचार ही तो है ; कौन जाने विशुद्ध भी अशुद्ध बता दिया जाए ! 

दरअसल समस्या ईगो की है, अहंकार नहीं कह रहा क्योंकि कहा तो अवमानना न हो जाएगी ! सरकार की तरफ़ से जो कहा गया, ग़लत क्या था ? जो मामले हैं उनमें अविलंब जमानत दे दी जाएँ और नया मामला दर्ज तभी हो जब एसपी रैंक का अधिकारी पहले जांच कर राय दे दे ! फिर ऐसे निर्देश तो स्वयं सुप्रीम अदालत देती रही हैं ! तो इस बार क्या हो गया ? समझ में आता है कोई रॉकेट साइंस तो है नहीं ! भारत सरकार ने अचानक स्टैंड जो बदल लिया जिसकी सुप्रीम ने सोची ही नहीं थी ! 

एक बार फिर सुप्रीम फैसला आया है दुरूपयोग को वज़ह बताते हुए कानूनों को होल्ड पर डालने का लेकिन इस बार कॉम्प्लीकेशन्स हैं और इन्हीं जटिलताओं की वजह से संदेश वाकई अच्छा नहीं गया है !                

प्रकाश झा

और अब अंत में तरस खा लें या हंस लें फिल्मकार प्रकाश झा के बोलबचन पर ! वे फ़िल्में (दामुल , मृत्युदंड ,गंगाजल , अपहरण , राजनीति , परीक्षा आदि)  भारत में भारत के बॉलीवुड एक्टरों को लेकर बनाते हैं और अकूत पैसा भी कमा रहे हैं लेकिन उन्हीं की वॉट लगा रहे हैं।  दो दो नेशनल अवार्ड भी मिले !  4 दशकों से भी ज्यादा साल से फिल्में बना रहे प्रकाश झा ने अजय देवगन से लेकर शबाना आजमी  माधुरी दीक्षित , ओम पुरी , नाना पाटेकर  और रणबीर कपूर समेत कई बड़े स्टार्स संग काम किया। लेकिन उन्हें लगता है कि बॉलिवुड ऐक्टर्स को एक्टिंग नहीं आती। Goafest 2022 में बातचीत के दौरान प्रकाश झा ने बॉलिवुड ऐक्टर्स की एक्टिंग स्किल्स पर सवाल उठाते हुए कहा, 'मैं यहां ऐक्टर्स के साथ काम करके चिढ़ गया था। वो जानते ही नहीं कि एक्टिंग क्या है और किस बारे में है। आज तक किसी भी ऐक्टर ने मुझसे न तो शूट के दिनों के बारे में पूछा और न ही यह पूछा कि शूट की टाइमिंग क्या है, लोकेशन क्या है। एक्शन सीक्वेंस कैसे होंगे और भी बहुत कुछ।' भई ! आपको हॉलीवुड पसंद है, वहां के एक्टर पसंद है तो एकाध फिल्म वहां बना लीजिये, आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा ! साउथ इंडिया के फिल्मकारों  ने क्या कम वाट लगा रखी है कि अब ...... या तो उन्होंने "घर की मुर्गी दाल बराबर" समझ ली है या फिर  वही बात हो गई  "घर का भेदी लंका ढाये" ! 

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Prakash Jain

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