माने या न मानें क्रिकेट के लिए दीवानगी कम हुई है; इंडिया का इंटर्नैशनल टी २० मैच ही क्यों ना हों, ड्राइंग रूम में तभी खेल देखने के लिए चैनल बदला जाता है जब किसी ने बताया कि मैच आखिरी ओवरों में रोमांचक हो रहा है ! वर्ना तो सिर्फ़ हार जीत का नोट भर ही लिया जाता है चूँकि कभी जबरा फैन हुआ करते थे गेम के !
निःसंदेह जिम्मेदार है आईपीएल ! किसी ने कहावत चस्पा कर दी कि अति तो हर चीज़ की बुरी होती है ! लेकिन ग़लत है ऐसा कहना ! खेल कभी उबाऊ हो ही नहीं सकता और यदि क्रिकेट के खेल में लोगों की रुचि कम हो रही है तो ऊब के कारण दीगर होंगे क्रिकेट नहीं !
एक और बात मानें या न मानें आईपीएल २०२२ की खीझ का दुष्परिणाम क्रिकेट बेस्ड दो लीजेंडरी फिल्मों - 'तिरासी' और 'कौन प्रवीण तांबे ?' को भी भुगतना पड़ा !
एक बार फिर माने या न मानें हर साल होने वाले आईपीएल के तमाशे को सेटबैक फैंटसी क्रिकेट ने भी दिया है ! आईपीएल की टीमों के फॉर्मेट ने पब्लिक को दुविधा में जो डाल रखा था - अपने शहर, जहां जन्म हुआ था , की टीम को सपोर्ट करें या उस शहर की टीम को सपोर्ट करें जो उनकी कर्मभूमि है या फिर उस टीम को सपोर्ट करे जो बेस्ट दीखती है या उस टीम को सपोर्ट करें जिसके लिए उसके फेवरिट खिलाड़ी खेल रहे हैं ! और इन सारी दुविधाओं को ही तो बखूबी एक्सप्लॉइट किया है फैंटसी क्रिकेट ने ! शुरुआत की थी Dream11 ने और आज तो तक़रीबन पचास ऍप्स हैं मसलन Gamezy , Howzat , MyTeam 11 , BalleBaazi आदि !
प्रश्न है आईपीएल के मैचों की घटती टीआरपी की वजह क्या है ? एक नहीं कई हैं ! आईपीएल २०२२ के लिए मेगा नीलामी हुई, ७४ मैच ५८ दिन और १० टीमों वाले इस टूर्नामेंट को अब तक के सबसे बेहतर सत्र की टीआरपी मिलेगी, संभावना ऐसी ही जताई जा रही थी ! लेकिन बीसीसीआई को जोर का झटका लगा है कुछ वैसे ही जैसे पिछले दिनों सुपरस्टार प्रभास की फिल्म "राधे श्याम" को लगा ! सारे कयास धरे के धरे रह गए ! टीआरपी यानी टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट्स की बात करें तो पिछले सत्र की तुलना में ३३ फीसदी कम जा रही है। बार्क इंडिया की इनफार्मेशन को सही मानें तो पहले आठ मैचों में टीवीआर स्कोर २.५२ का रहा है जबकि पिछले सत्र में यही स्कोर ३.७५ का रहा था।
इसी तरह आईपीएल की कुल व्यूअरशिप में भी कमी आई है। पिछले साल के पहले हफ्ते की कुल व्यूअरशिप ३६७.७ मिलियन थी, जो कि इस सीजन १४ फीसदी घटकर २२९.०६ मिलियन हो गई है इसी तरह आईपीएल के दौरान आमतौर पर ब्रॉडकास्टर बार्क की सूची में सबसे ऊपर होते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है। आईपीएल का प्रसारण करने वाली स्टार स्पोर्ट्स 1 हिंदी तीसरे स्थान पर है। इससे यह साबित होता है कि इंडियन प्रीमियर लीग का जादू अब कम होता जा रहा है।
निःसंदेह बड़ा झटका है क्योंकि अगले साल से प्रस्तावित महिला आईपीएल के आयोजन की योजना भी खटाई में पड़ जायेगी।
सबसे बड़ी वजह ये है कि हर बार की तरह इस बार लीग में खेल रही टीमें और उनके प्लेयर्स उतना अच्छा परफॉर्म नहीं कर पा रहे हैं। जब से मैच शुरू हुए हैं, कोई ऐसी टीम या उसका प्लेयर नहीं है, जिसने रिकॉर्डतोड़ पारी खेली हो या उनके खेल की चर्चा हुई हो। इस बार मामला बहुत ठंडा है, जबकि दर्शक खेल या कोई प्रोग्राम तभी देखता है, जब उसे देखने में उसको मजा आता है। और मजा उन्हें तब आता है जब उनकी ड्रीम टीम और ड्रीम खिलाड़ी परफॉर्म करते हैं। आईपीएल के इतिहास में ९ ट्राफियां जीतने वाली दो टीमें चेन्नई सुपर किंग्स और मुंबई इंडियंस सबसे अच्छा खेलती आई है, लेकिन इस बार इन दोनों टीमों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और अब तक के लीडरबोर्ड पर नजर डालें तो दोनों ही टीमें आखिरी पायदानों क्रमशः नवें और दसवें पर हैं। चेन्नई सुपर किंग्स का तो अच्छा मजाक उड़ा है धोनी और जडेजा की वजह से और टीम की खराब हालत को देखते हुए धोनी को वापस कप्तानी दी गई है। इसके साथ ही देश-विदेश के अच्छे खिलाड़ियों की कमी भी हुई है। जैसे कि एबी डिविलियर्स, क्रिस गेल, जोफ्रा आर्चर और बेन स्टोक्स जैसे विदेशी खिलाड़ी आईपीएल का आकर्षण रहे हैं।
फिर एकाध मैच को छोड़कर फ्रैंचाइज़ी द्वारा रिटेन किये गए खिलाड़ी लय में नहीं हैं चाहे वह चेन्नई सुपर के धोनी और ऋतुराज गायकवाड़ हों या फिर केकेआर के वेंकेटेश अय्यर और सुनील नारायण हों या पंजाब के कप्तान मयंक और अर्शदीप ही क्यों ना हों ! मुंबई इंडियंस के रोहित शर्मा ए पोलार्ड भी फ्लॉप रहे हैं , संजू सैमसन और यशस्वी जैस्वाल (राजस्थान ) नहीं चल रहे हैं और बंगलौर के एक्स कैप्टेन तो लगते ही नहीं है कि वे विराट कोहली हैं !
आईपीएल मैचों की संख्या ७४ तक कर दी गयी है; फैन अपनी टीमों के मैच के इन्तजार से उकता जो रहे हैं। एक ख़ास बात, "टॉस जीतो , फील्डिंग करो और मैच जीतो" के इक्वेशन ने भी दिलचस्पी कम कर दी है। "प्ले ऑफ से स्थिति सुधरेगी, उम्मीद कम ही हैं !
कुल मिलाकर निष्कर्ष निकालें तो आईपीएल फॉर्मेट में कहीं न कहीं प्रतिस्पर्धा और लॉयल्टी का अभाव नजर आने लगा है जिस वजह से व्यूअर्स छिटक रहे हैं। और फिर वही खिलाड़ी, जो आईपीएल में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोककर खड़े हैं, इंडियन टीम में एक साथ नजर आते हैं, व्यूअर उनसे आनन फानन में कनेक्ट नहीं कर पाता ; खेल में खालीपन सा, वैक्यूम सा उसे लगता है।
एक विशेष बात और जिसपर शायद कोई बात कर ही नहीं रहा है। खिलाड़ियों ने भी शायद हुनरमंद होने से ज्यादा अच्छा आईपीएल फॉर्मेट में ढल जाने को ही क्रिकेट समझ लिया है। दो चार सत्र भी किसी फ्रैंचाइज़ी ने उठा लिया तो पैसों का अंबार जो लग जाएगा ! लाइफ सेट ! कहने का मतलब खिलाड़ियों में धैर्य की भी कमी आ गयी है। पृथ्वी शॉ को ही लीजिये ; बंदे ने ६२ आईपीएल मैच खेले जबकि देश के लिए कुल जमा ५ टेस्ट छह एकदिवसीय आउट सिर्फ एक टी २० खेला है। आईपीएल ने छप्पर फाड़ कर पैसे दिए हैं जिसकी बदौलत मुंबई में आलिशान घर और महँगी गाडी के मालिक हो गए हैं वे !
फैक्ट्स जो भी हों, क्रिकेट के कर्ता धर्ता बीसीसीआई के लिए चिंता की बात है कि कैसे दर्शकों की रूचि दीवानगी की हद तक बनी रहे ! दरअसल खेल कोई भी हो, व्यवसायीकरण ठीक है लेकिन एक सीमा तक ग्लैमर की हद तक नहीं ! अपवादों को छोड़ दें तो ग्लैमर ने हर खेल और हर खिलाड़ी का नुकसान ही किया हैं !
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