नेटफ्लिक्स फिल्म 'कोबाल्ट ब्लू' रिव्यू : थैंक्स टू 'बधाई दो' फॉर "कोबाल्ट ब्लू" देखने की हिम्मत जुटा पाने के लिए !

"You and I are criminals in this country. There may be others like us. Thousands perhaps ! But who knows ….You are born this way. You are odd. In India you are a criminal. Unnatural ! The church thought so, so the queen thought so, and the British. And, once they left , we don’t know what we think. We are still governed by their laws. You and I are criminals in India. When I was your age, I grew up scared & frightened. I was caught with an American tourist, in the hotel. My father agreed, and our doctor gave me electric shocks to cure me of this illness. Six days, electric shocks. Forget about sx, it’s hard to find friends here in Kochi. As time goes on and as life goes on, you long for friendship, you become lonely. I’m hungry for friendship, companionship. We are living in a prison." 

पिक्चर क्या है और किस बारे में हैं ; फिल्म के ही एक किरदार द्वारा दूसरे से कही उपरोक्त बात से क्रिस्टल क्लियर है ! पिछले दिनों ही रिलीज़ हुई  'बधाई दो' ने बात यही कही थी लेकिन प्रस्तुति अपेक्षाकृत समकालीन संदर्भ में कमतर बोल्ड तरीके से अंततः स्वीकार्यता के साथ एक सार्थक और इमोशनल कॉमेडी के माध्यम से थी ! "कोबाल्ट ब्लू" की कहानी १९९६ में घटती है, जब इंडिया में गे या लेस्बियन होने को क्राइम माना जाता था। फिल्म का फोकस प्रेम और उससे उपजे दुःख पर है, प्रस्तुति सेंसुअल है,काफी बोल्ड है। ये वही साल था जिसमें दीपा मेहता ने रिलेशनशिप को लेकर फीमेल पर्सपेक्टिव में साहसिक फिल्म "फायर" दी थी। ‘कोबाल्ट ब्लू’ के एक सीन में इस फिल्म के पोस्टर भी नज़र आते हैं। 

फिल्म एक "अलीगढ" के नाम से हंसल मेहता की भी आयी थी, अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के गे प्रोफेसर की सच्ची कहानी थी ! उन्हें अपने समलैंगिक होने की सजा सस्पेंशन के रूप में भुगतनी पड़ी थी क्योंकि उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन ने लोगों को सख्त नाराज जो कर दिया था। मोरैलिटी के ठेकेदारों ने फिल्म को विवादास्पद करार दे दिया था। 

'कोबाल्ट ब्लू' इसी नाम से आई सचिन कुंडालकर की मराठी नॉवेल पर बेस्ड है और डायरेक्ट भी सचिन ने ही की है। लेकिन चूंकि सचिन कुंडालकर पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगे थे, नेटफ्लिक्स ने बतौर निर्देशक उनका नाम देने से परहेज किया है। सचिन मूलतः ऑफबीट मराठी फिल्मों और थिएटर के लिए जाने जाते हैं और उन्हें कॉम्प्लिकेटेड ह्यूमन रिलेशनशिप का पुरोधा कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने स्वयं भी मराठी नाटकों में होमोसेक्सुअल कैरेक्टर निभाए हैं और "कोबाल्ट ब्लू" तो तब (साल २००६)  लिख डाली थी जब वे मात्र २०-२२ साल के ही थे। 

निलय महांडले , प्रतीक बब्बर और अंजलि शिवरामन

खासियत है कि लड़का और लड़की यानी तनय (निलय महंडाले का डेब्यू है)और अनुजा (शार्ट फिल्मस 'जेनी' और 'इट्स कॉम्प्लिकेटेड' फेम एक्ट्रेस, सिंगर और मॉडल अंजलि शिवरमन) दोनों के पर्सपेक्टिव से कहानी बताई जाती है, दोनों भाई बहन है, मिडिल क्लास कंज़र्वेटिव महाराष्ट्रियन फॅमिली को बिलोंग करते हैं लेकिन लैंगिक झुकाव डिफरेंट है। एक अनाम पेइंग गेस्ट (प्रतिक बब्बर शायद ये उनका बेस्ट परफॉरमेंस है) उनकी लाइफ में आता है और सब कुछ बदल जाता है।   

बात ओरिएंटेशन की है,जिसमें लव निहित है। एक बेहद खूबसूरत कोस्टल टाउन में रची बसी खूबसूरत सी कहानी है जिसे कंट्रीब्यूट करते हैं घर के आंगन में सूखते मसाले, खूबसूरत होमस्टे, विहंगम प्रकृति, सिनेमा-साहित्य-पेंटिंग्स से सराबोर शहर, एक कोबाल्ट ब्लू रंग की सायकिल आदि। लव या प्यार के उन मायनों की खोज में ले जाती कहानी, जिसमें आदमी का आदमी से प्यार वो भाव है जो या तो पैदाइशी होता है या नहीं होता, शुरू होती है घर के सबसे बड़े सदस्य दादा के देहांत से जिससे दुखी होकर आहत दादी भी थोड़ी ही देर बाद प्राण त्याग देती है।  परिवार आहत है , दुखी है उनके जाने से लेकिन तनय और अनुजा कहीं इस बात से खुश हैं कि अब एक और कमरा स्पेयर हो जाएगा और उनके अपने अपने अलग कमरे हो जाएंगे। वैसे दादी का देहांत भाई बहन के लिए शॉक है। अनुजा कहती है कि दादाजी अज्जी को बहुत मारते थे, फिर भी वो उनके साथ ही कैसे मर सकती है? इसपर तनय के मुख से सर्वभौम वाक्य निकलता है , "Love is a habit ; habit ends, you die ."    

बात 'डिजायर' की है तो फॅमिली के केरल आने की वजह का जिक्र जरुरी हो जाता है। विद्याधर दीक्षित अपने परिवार को महाराष्ट्र (पुश्तैनी घर) से केरल में अपने काम की जगह पर बुलाते हैं जिसकी इकलौती वजह है ‘उसकी भूख’ जो खाना खाने से नहीं मिटती। स्पष्ट कहें तो उन्होंने बेशर्मी से अल्टीमेटम ही दे दिया कि उन्हें शारीरिक सुख चाहिए फिर भले ही बच्चों को पढाई लिखाई का कष्ट और वयोवृद्ध माता पिता को ट्रेवल का कष्ट ही क्यों ना उठाना पड़े ! सो शुरुआत से ही आभास हो जाता है कि पिक्चर सामाजिक आडंबर जनित वर्जनाओं के विरोधाभासों पर खुलकर बात करेगी ! 

तनय, अनुजा और पेयिंग गेस्ट के बीच प्रेम के धागों में गुथी फिल्म कई कड़े सवालों के जवाब तलाशती है।कथित वर्जित रिश्तों की रुमानियत इतने सलीके से प्रेजेंट करती है कि व्यूअर्स मंत्रमुग्ध सा होकर देखता चला जाता है। परंतु ऐसा नहीं है कि पिक्चर में खामियां नहीं हैं। फिल्म लड़की के पर्सपेक्टिव को ज़्यादा तवज्जो नहीं देती। अनुजा का करैक्टर सशंकित करता है क्योंकि फिल्म उसके फेमिनिन साइड को इग्नोर करती प्रतीत होती है। शायद राइटर निर्देशक स्वयं अनजान है इस विचित्र नजरिये से क्योंकि वे महिला जो नहीं है।  

प्यार क्या है? क्या किसी के साथ बिताया गया लंबा समय ही प्रेम होता है, या बिताए गए कुछ लम्हें भी प्रेम माने जाएं? क्या किसी को उम्र भर के लिए पा लेना ही प्रेम के सफल होने की निशानी है, या किसी को न पाकर भी खुद को पा लेना सफल प्रेम है? प्रेम इंसान को कमज़ोर बनाता है या मज़बूत? इन्हीं सवालों के साथ  Cobalt Blue चलती है, हालाँकि जवाब नहीं मिलते हैं क्योंकि दोनों किरदार स्वयं सवाल के जवाब की खोज में निकल जो पड़े हैं ! अब जब समय बदल चुका है, शायद नीले इश्क करने वालों के लिए चीजें आसान हो जाए ! फिल्म का उद्देश्य यही है।  

बात करें अभिनय की तो  तनय और अनुजा के किरदारों में  निलय और अंजलि ने मंत्रमुग्ध सा कर दिया है ! अनाम पेइंग गेस्ट के किरदार में प्रतीक बब्बर तो अद्भुत हैं।कुल मिलाकर नीले इश्क में पड़े दो प्रेमियों के मध्य भी वो केमिस्ट्री वाला एलिमेंट होता है कहने के लिए कि परदे पर निलय और प्रतीक की केमिस्ट्री जमती है !

कुल मिलाकर फिल्म क्लास है और क्लास ही इसे देखेगी और सराहेगी भी !

      

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Prakash Jain

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