Theme song of EPF interest rate cut : “निवेश सुरक्षित रहे भले ही दो पैसे कम मिले !”

पिछले दिनों ईपीएफ की ब्याज दरें ८.५ फीसदी से घटाकर ८.१ फीसदी कर दी गयी ! किसी भी कदम या निर्णय की स्वस्थ आलोचना अपेक्षित है ताकि कदम उठाने वाला या निर्णय लेने वाला औचित्य सिद्ध कर सके और यदि ना कर सके तो अपेक्षित बदलाव करें या फिर कदम वापस खिंच लें ! 

परंतु तमाम आलोचनाएँ, चूँकि राजनीति से प्रेरित है, बजाए जनहित के जन अहित ना कर बैठे ! 

सामान्य सी बात क्यों नहीं समझ आती कि मामला अर्थ का है और कटौती की वजहें भी आर्थिक हैं।  वास्तविक दरें क्रैश हो गई हैं, ८.१ फीसदी तो अन्य सभी श्रेणियों की तुलना में काफी अधिक है। ईपीएफओ के ब्याज का भुगतान उसकी कमाई पर निर्भर करता है और जब लगा कि मौजूदा हालातों में ८.५ फीसदी का ब्याज घाटे की वजह बन  रहा है तो ब्रेक-ईवन लाना ही होगा ना ! और वह संभव हो पा रहा है ८.१ फीसदी के होने से !  

माना सामाजिक सुरक्षा महत्वपूर्ण है लेकिन दूरदर्शिता इसी बात में है कि बैलेंस बनाकर रखा जाये ! "जैसा चल रहा है वैसा चलने दें" की नीति निश्चित ही फौरी तौर पर लोकलुभावन होगी लेकिन  इससे दीर्घकालीन असुरक्षा होना तय हैं। दरअसल अर्थ का मामला अर्थ द्वारा अर्थ से अर्थ के लिए ही निपटा जाना चाहिए !  

आर्थिक मजबूरियां ही होती हैं कि ईपीएफओ की दरें साल दर साल  बदली जाती रही हैं। वित्तीय वर्ष २००१ में यही दर १२ फीसदी हुआ करती थी, जुलाई २००१ से २००५ तक ९.५ रखी गई,२००६ से २०१० तक ८.५ और उसके बाद तक़रीबन साल दो साल पर दरें बढ़ती घटती रही लेकिन ८.५ के इर्द गिर्द ही रही ! 

 दरअसल ईपीएफओ के हाथ भी बंधे हैं , पहले दो साल से कोविड और अब रूस यूक्रेन वॉर जनित अनिश्चितता से ओवरऑल रिटर्न का घटना तय हो चला है।फिर सब्स्क्राइबरों के पैसे सुरक्षित रखने है तो हाई रिस्क कैटेगरी के इंस्ट्रुमेंट्स से कन्नी काटनी ही होगी ! साथ ही देर सबेर देश की वास्तविक ब्याज दर  का एवरेज वर्ल्ड इंटरेस्ट रेट के समकक्ष आना भी वांक्षित है। 

तक़रीबन ५ करोड़ सब्स्क्राइबर हैं जिनमें से अधिकतर लोगों ने पेट काटकर भविष्य के लिए बचत इसलिए नहीं की है कि अधिक बढ़ौतरी के लालच में बचत ही रिस्क में पड़ जाए ! वर्तमान में भी सभी सुरक्षित समझे जाने वाले निवेशों की तुलना करें तो EPF कहीं ज़्यादा रिटर्न दे रहा है ! हाँ , एक बेंच मार्क तय होती , बोले तो ८ फ़ीसदी न्यूनतम हर हाल में तो शायद नेतागण वोटों के लिए इसे मुद्दा मानते ही नहीं ! वैसे बताते चलें ८ प्लस रेट की वजह से ही तक़रीबन डेढ़ दो लाख पैसे वालों ने भी ईपीएफ में पैसे डाल रखे हैं और लगभग ७ करोड़ रूपये प्रति साल इस हाई क्लास का जमा होता है !

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Prakash Jain

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