दिखावा भर है जिसे बखूबी दिखाया कार्टूनिस्ट संदीप अर्ध्व्यु ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया की "लाइन ऑफ़ नो कंट्रोल" वॉल पर ! संयोग ही था कि ७ मार्च को चुनाव हो रहे थे और अगले ही दिन ८ मार्च के दिन महिला दिवस की गूंज भी सुनाई दे रही थी ! सो सुयोग मिला और संयोग को एक्सप्लॉइट कर लिया कार्टूनिस्ट महोदय ने !
मतदान वाले दिन तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने अपने रेड कारपेट बिछा देती हैं और नेतागण वोटरों के लिए पलकें बिछाए रहते हैं ! ऐसा ही कुछ उत्सव सरीखा माहौल अगले दिन भी देखने को मिला था, महिला दिवस जो था और इस बार थीम भी ख़ास थी - स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता( Gender Equality Today For A Sustainable Tomorrow) !
रेड कारपेट की नियति अगले ही दिन लपेटे जाने में होती है, टेंट हाउस पहुँच जाने में होती है ! बाद की यही स्थिति वोटरों की होती है और महिलाएं भी यदि इस मुगालते में हैं कि उन्हें पुरुष समान दर्जा देंगे, वे गलत हैं। उनका उत्थान पुरुषों द्वारा हो ही नहीं सकता ! हाँ, वे जरूर पुरुषों के उत्थान को कंट्रीब्यूट करती हैं एक माँ के रूप में, फिर वह एक बहन है, वही अर्धांगिनी भी है ! हर रूप में उसकी स्वार्थहीन भावना है, पुरुष के मंगल की कामना है।
इंटरनेशनल वीमेन डे पर मार्च पास्ट हुआ - 'लड़की हूँ लड़ सकती हूँ' के उद्घोष के साथ ! अतिश्योक्ति नहीं होगी यदि कहें मार्च पास्ट करवाया गया क्योंकि अगले ही दिन ९ मार्च को उन्हीं के शासित राज्य के एक मंत्री ने रेप के मामले बढ़ने की वजह प्रदेश में "मर्दों" के होने से जोड़ दिया। जब उन्होंने विधान सभा में कहा "वैसे भी यह राजस्थान तो मर्दों का प्रदेश रहा है। उसका क्या करें?" तब उनके साथ साथ उनके अन्य साथी मंत्री भी हंस रहे थे ! किसी को गलती का अहसास नहीं हुआ। सरकार के मंत्री और सत्ताधारी पार्टी के विधायक हंसते रहे, किसी ने भी धारीवाल को टोका नहीं। सरकार में तीन-तीन महिला मंत्री भी हैं, उनमें से भी किसी ने नहीं टोका।
दरअसल महिला स्वयं भी कम जिम्मेदार नहीं है पितृसत्ता के लिए ! समाज वही है जहां सर्वमान्य है कि पुरुषों के पास सर्वोच्च ज्ञान और शक्ति है, घर चलाने की जिम्मेदारी पुरुषों की ही है और वे ऐसा कर सकें, घर की औरतें जी जान से उनकी सेवा और देखभाल करती है, पहले उनकी माताएं और फिर उनकी पत्नी !
चंदा कोचर कभी प्राइवेट सेक्टर की नामी गिरामी आईसीआईसीआई बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर एंड सीईओ हुआ करती थी ! साल दर साल वे दुनिया की पावरफुल औरतों में शुमार होती रही थीं। पितृसत्ता के लिए ही उनका पराभव हुआ था ! और हालिया एक अन्य सीईओ चित्रा रामकृष्ण के पराभव की वजह भी पितृसत्ता ही है जिसे उन्होंने अदृश्य शक्ति का नाम दे दिया !
वो दिन कब आएगा जब खिताबों की दुनिया में भी समानता आएगी; टॉप टेन मोस्ट पावरफुल मेन/वीमेन नहीं, टॉप टेन मोस्ट पावरफुल पर्सन में पुरुष भी होंगे और महिलाएं भी होंगी - फ्री एंड फेयर प्रतिस्पर्धा होगी बिना किसी जेंडर के ! हाँ, दिखावा भर नहीं होना जैसा "बैट्समैन" को "बैटर" से रिप्लेस कर महज खानापूर्ति की गई !
आजकल एक और ट्रेंड है लैंगिक समानता प्रदर्शित करने का ! जबकि निरा पाखंड है ! बिज़नेस में महिलायें पार्टनर हैं, कहीं कहीं तो पूर्ण स्वामित्व भी है महिला का, महिलायें जॉब भी कर रही हैं, और भी क्षेत्रों में महिलायें हैं ! पार्टनर या पूर्ण स्वामित्व है तो टैक्स बचाने के लिए है, दीगर छूटें भी काफी है महिलाओं के होने से ! जॉब में हैं तो इस ढिंढोरे के साथ कि हम तो आजाद ख्यालात के हैं, मॉडर्न हैं , बहू बेटियों की चॉइस का सम्मान करते हैं ! हकीकत देखें तो वर्चस्व तब भी पुरुषों का ही हैं ! घर में भी और बाहर भी !
आजकल लैंगिक समानता के नाम पर सोशल मीडिया में हाइप जरूर क्रिएट हो रहे है ! फ्लिपकार्ट का माफीनामा इसका ज्वलंत उदाहरण है। पता नहीं क्या सेक्सिस्ट महसूस करा दिया गया कि फ्लिपकार्ट को अपना प्रमोशन मैसेज “Dear Customer, This Women’s Day, let’s celebrate You. Get Kitchen Appliances from ₹299,” माफ़ी मांगते हुए वापस लेना पड़ा ! फ़िल्में और ओटीटी कंटेंट्स भी जेंडर इक्वलिटी को खूब एक्सप्लॉइट कर रहे हैं, इरोटिक विद्रूपता ही परोस रहे हैं !
एक शताब्दी से ज्यादा समय से विमेंस डे मनाया जा रहा है और आज भी जेंडर इक्वलिटी स्वप्न ही है तो कारण एक ही है कि दिवस सेलिब्रेट नहीं बल्कि एक्सप्लॉइट किया जा रहा है पुरुषों द्वारा जिसमें विमेंस की भी सहभागिता है !
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